Bahadur Shastri Speech In Hindi लाल बहादुर शास्त्री पर भाषण: निःसंदेह भारतीय राजनीति में महात्मा गांधी से बड़ी कोई शख्सियत नहीं है। महात्मा गांधी अकेले ऐसे भारतीय राजनेता हैं, जिनका देश के हर कोने में ही नहीं बल्कि दुनिया के हर कोने में सम्मान है। इसी तरह अगर राजनयिक प्रभाव के नजरिये से देखें तो दुनिया में भारत की श्रेष्ठता का प्रतिनिधित्व पंडित जवाहरलाल नेहरू करते हैं। लेकिन अगर बात सम्मान की हो तो हिंदुस्तान में लाल बहादुर शास्त्री से ज्यादा सम्मान किसी भी दूसरे राजनेता का नहीं है। आपको राजनीति में हर नेता का कोई न कोई वैचारिक विरोधी मिल जायेगा। महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के वैचारिक विरोधी तो बहुत बड़ी संख्या में हैं। लेकिन हिंदुस्तान की सियासत में किसी भी राजनीतिक पार्टी के किसी भी नेता के द्वारा शायद ही किसी ने कभी भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की आलोचना सुनी हो।
लाल बहादुर शास्त्री जी भारत की राजनीति में अकेले ऐसे शख्स हैं, जिनका जितना सम्मान आम लोगों में है, उतना ही सम्मान राजनीतिक लोगों और पार्टियों में भी है। आखिर इसकी क्या वजह है? इसकी सबसे बड़ी वजह है व्यक्तिगत जीवन में उनके द्वारा अपनायी गई कठोर नैतिकता। यूं तो भाषण देने में शायद ही कोई राजनेता ऐसा हो, जो नैतिकता की बड़ी बड़ी डींगे न हांकता हो, लेकिन अपने व्यक्तिगत जीवन में व्यवहारिक रूप से नैतिकता का जिस तरह से ताउम्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने पालन किया, वैसा कभी किसी दूसरे राजनेता ने नहीं किया। सच तो यह है कि दूसरा कोई इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता। शायद यह उनकी व्यक्तिगत नैतिकता का ही कमाल था कि जब उन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए देश के लोगों से सप्ताह में एक दिन उपवास का आग्रह किया तो सचमुच हफ्ते में एक दिन लोगों के घर में चूल्हा नहीं जलता था।
लेकिन उपवास की यह घोषणा लाल बहादुर शास्त्री जी ने अचानक यूं ही नहीं कर दी थी। इसका पहले उन्होंने अपने घर और परिवार के बीच बकायदा रिहर्सल किया था। उनके पुत्र अनिल शास्त्री ने कुछ साल पहले मीडिया के साथ इस संबंध में एक संस्मरण को साझा किया था, जिसके मुताबिक, एक दिन पिताजी ने (प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री) घर में घोषणा की कि आज खाना नहीं बनेगा, सब लोग उपवास रहेंगे। इस पर मेरी मां (सुश्री ललिता शास्त्री) ने पूछा ऐसा क्यों तो पिताजी ने जवाब दिया कि मैं देखना चाहता हूं कि मेरे बच्चे एक दिन भूखे रह सकते हैं या नहीं। उस दिन घर में खाना नहीं बना और जब किसी ने खाना न बनने पर कोई विशेष संकट नहीं खड़ा किया तो अगले दिन पिताजी ने देशवासियों से सप्ताह में एक दिन उपवास रखने का आह्वान कर दिया ताकि सूखे की विकट समस्या से पैदा हुए खाद्यान्न संकट से निपटा जा सके।
दुनिया के इतिहास में इससे पहले कभी किसी देश के किसी राजनेता ने ऐसी घोषण नहीं की और न ही किसी देश ने ऐसी किसी घोषणा पर अमल किया। यह अकेले लाल बहादुर शास्त्री का कद था और आत्मविश्वास कि देशवासी उनकी बात सुनेंगे और उसे मानेंगे भी। कहना चाहिए उनका विश्वास बिल्कुल दुरुस्त था, आज भी लोग बताते हैं कि लोगों के घरों में सचमुच चूल्हा नहीं जलता था। आजकल जबकि लोग नवरात्रि और जन्माष्टमी के व्रत पर भी अच्छा खासा खाते हैं, उन दिनों इस तरह का व्रत रखना उनके प्रति सम्मान का बहुत बड़ा प्रमाण है।
यूं तो प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अपनी कई खूबियों के लिए चर्चा में रहते रहे हैं, लेकिन जिस तरह से उन्होंने 'जय जवान और जय किसान' का नारा दिया, उससे सचमुच में उनका प्रभाव भारत के तमाम दूसरे राजनेताओं के मुकाबले बहुत ज्यादा है। जय जवान का नारा उन्होंने देशवासियों से सीमा से लड़ रहे जवानों के साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए दिया था ताकि हमारे सैनिकों को देश के आम लोगों का नैतिक बल और समर्थन हासिल हो। जबकि जय किसान नारे के पीछे मकसद किसानों को अधिक से अधिक अन्न उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित करना था, ताकि उन दिनों जो भारत में खाद्यान्न संकट था और जिसके चलते हम पर अमेरिका अपनी अप्रत्यक्ष गुलामी थोपने की कोशिश कर रहा था, उससे मुक्ति मिल सके।
जब शास्त्री जी ने भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी, तब भारत में विकट खाद्य पदार्थों का संकट था। हम अमेरिका की पीएल-480 स्कीम के तहत लोग लाल गेहूं खाने के लिए बाध्य थे। 1965 में एक तरफ पाकिस्तान के साथ जंग और दूसरी तरफ भयानक सूखे ने इस संकट को और भी बहुत ज्यादा बढ़ा दिया था। तभी लाल बहादुर शास्त्री जी ने देश के लोगों से दो महत्वपूर्ण आह्वान किये थे। एक तो हर खाली जमीन पर अनाज और सब्जियां बोई जाएं और दूसरा यह कि हर कोई सप्ताह में एक दिन उपवास रखे। उनका यह आह्वान किसी विशेष जाति वर्ग या उम्र समूह के लिए नहीं था बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए था जिसको ऐसा करने से शारीरिक नुकसान न हो। कहते हैं हर किसी की जिंदगी में एक दो मौके या काम ऐसे होते हैं, जो उन्हें हमेशा हमेशा के लिए अजर अमर कर देते हैं। किसानों और जवानों के प्रति प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जो आदर प्रकट किया था, उससे न केवल वह देश के सबसे सम्मानित राजनेता बन गये बल्कि उनकी इसी नैतिकता के चलते भारत के लोगों ने जल्द ही खाद्यान्न संकट पर विजय पा ली।