Guru Govind Singh: 10 लाइनों में जानिए सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह के बारे में

गुरु गोविंद सिंह जयंती सिख धर्म के अनुयायियों और भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती के रूप में मनाया जाता है। गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन न केवल सिख धर्म के इतिहास का एक अभिन्न हिस्सा है, बल्कि उनका व्यक्तित्व और उनके कार्य भारतीय समाज और संस्कृति को सदियों से प्रेरित करते आए हैं। उनके योगदान से सिख समुदाय को नई दिशा और प्रेरणा मिली।

आइए आज के इस लेख में हम आपको 10 महत्वपूर्ण बिंदुओं के माध्यम से गुरु गोविंद सिंह के जीवन और उनके योगदान के बारे में समझते हैं।

Guru Govind Singh: 10 लाइनों में जानिए सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह के बारे में

1. जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि
गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना साहिब, बिहार में हुआ था। उनका जन्मस्थान अब एक प्रमुख सिख तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है। उनका प्रारंभिक नाम 'गोबिंद राय' था। उनके पिता गुरु तेग बहादुर जी, सिखों के नौवें गुरु थे, और माता का नाम गुजरी कौर था। गुरु गोविंद सिंह जी का परिवार सिख धर्म में अत्यधिक धार्मिक और निष्ठावान था।

2. गुरु की उपाधि
गुरु गोविंद सिंह जी केवल 9 वर्ष की उम्र में सिखों के दसवें गुरु बने थे। 1675 में उनके पिता, गुरु तेग बहादुर जी ने कश्मीरी पंडितों की रक्षा के लिए बलिदान दिया था। इसके बाद, गुरु गोविंद सिंह जी को सिखों का नेतृत्व सौंपा गया और उन्होंने अपने जीवन को धर्म और न्याय की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया।

3. खालसा पंथ की स्थापना
गुरु गोविंद सिंह जी की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक 1699 में खालसा पंथ की स्थापना थी। वैशाखी के दिन, उन्होंने आनंदपुर साहिब में एक सभा बुलाई और पांच प्यारों को अमृत छकाकर सिख धर्म में एक नए अध्याय की शुरुआत की। खालसा पंथ सिखों के लिए आध्यात्मिक और सामरिक दृष्टिकोण का प्रतीक बना, जिसमें 'संत-सिपाही' का आदर्श स्थापित हुआ।

4. पांच ककार का महत्व
गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ के अनुयायियों के लिए पाँच ककार (केश, कड़ा, कंघा, कच्छा, और कृपाण) को अनिवार्य किया। ये पांच ककार सिखों के लिए अनुशासन, साहस, और सेवा के प्रतीक माने जाते हैं। उन्होंने सिखों को एक ऐसी पहचान दी जो उन्हें किसी भी स्थिति में अपने धर्म और आचरण के प्रति सचेत रखे।

5. साहित्य और काव्य प्रेम
गुरु गोविंद सिंह जी को एक महान योद्धा के रूप में तो जाना जाता है, लेकिन वे एक उच्च कोटि के कवि और लेखक भी थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण धार्मिक और साहित्यिक ग्रंथों की रचना की। उनका प्रसिद्ध ग्रंथ 'दशम ग्रंथ' उनके काव्य और विचारों का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें वे आध्यात्मिकता और नैतिकता के मूल्यों पर जोर देते हैं।

6. धार्मिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष
गुरु गोविंद सिंह जी ने धर्म की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने जीवनकाल में कई युद्ध लड़े। वे हमेशा धर्म की रक्षा और अन्याय के खिलाफ लड़ने के पक्षधर थे। उन्होंने मुगल शासन की तानाशाही और धार्मिक अत्याचारों का विरोध किया और अपने अनुयायियों को भी हमेशा अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की शिक्षा दी।

7. चार साहिबजादों का बलिदान
गुरु गोविंद सिंह जी के चार पुत्रों ने सिख धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। उनके दो बड़े पुत्रों, साहिबजादा अजीत सिंह और साहिबजादा जुझार सिंह, ने चमकौर की लड़ाई में वीरगति प्राप्त की। वहीं, उनके छोटे पुत्रों, साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह, को सरहिंद में मुगलों ने ज़िंदा दीवार में चुनवा दिया था। यह बलिदान सिख धर्म के इतिहास में अद्वितीय और प्रेरणादायक माना जाता है।

8. गुरु ग्रंथ साहिब को अंतिम गुरु घोषित करना
1708 में, गुरु गोविंद सिंह जी ने अपनी मृत्यु से पहले 'गुरु ग्रंथ साहिब' को सिख धर्म का अंतिम और शाश्वत गुरु घोषित किया। इसके बाद, सिख धर्म में किसी भी मनुष्य को गुरु की उपाधि नहीं दी गई, और गुरु ग्रंथ साहिब को ही सभी सिखों का मार्गदर्शक माना गया।

9. आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण
गुरु गोविंद सिंह जी ने समाज में समानता, न्याय और भाईचारे की भावना को प्रबल किया। उन्होंने जाति-पाति, धर्म, और लिंग के भेदभाव को नकारा और सभी को एक समान माना। उनके द्वारा खालसा पंथ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य समाज में ऊंच-नीच की भावना को समाप्त करना और सभी को एकजुट करना था।

10. मृत्यु और विरासत
गुरु गोविंद सिंह जी की मृत्यु 1708 में महाराष्ट्र के नांदेड़ में हुई थी। उन्हें वहाँ एक षड्यंत्र के तहत मुगल सैनिकों द्वारा घायल कर दिया गया था, जिसके बाद उनकी मृत्यु हुई। नांदेड़ में 'तख्त श्री हजूर साहिब' उनका प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहां सिख समुदाय उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करता है।

गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने जीवन से सिख धर्म को एक नई पहचान और दिशा दी। उन्होंने न केवल सिख धर्म की रक्षा की, बल्कि उनके योगदानों ने भारतीय समाज में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका साहस, उनकी शिक्षा और उनके बलिदान सदियों तक लोगों को प्रेरित करते रहेंगे। गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती का यह अवसर हमें उनके द्वारा दिए गए आदर्शों और शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाने की प्रेरणा देता है।

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English summary
Guru Gobind Singh Jayanti is an important occasion for the followers of Sikhism and Indian society. This day is celebrated as the birth anniversary of the tenth Guru of the Sikhs, Guru Gobind Singh Ji. The life of Guru Gobind Singh Ji is not only an integral part of the history of Sikhism, but his personality and his work have inspired Indian society and culture for centuries.
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