क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसी कौन सी भावनाएं थी जिन्होंने हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों को अपने जीवन का बलिदान करने के लिए प्रेरित किया ताकि उनकी आने वाली पीढ़ियां एक स्वतंत्र देश में एक संयुक्त राष्ट्र के रूप में रह सकें और सांस ले सकें?
तो चलिए आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताते हैं उन महान भारतीय कवियों के बारे में जिनकी कविताओं के शब्दों ने भारत के युवा तोपों को विद्रोह करने और बेहतर कल के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।
1. हरिवंश राय बच्चन 'आज़ादी का गीत'
27 नवंबर 1907 को जन्मे हरिवंश राय बच्चन की सभी कविताएं जो मूल रूप से हिंदी में लिखी गई थी, उनका कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है। हरिवंश बच्चन को छायावाद साहित्यिक आंदोलन (रोमांटिकवाद) का एक महान कवि माना जाता है। उनकी कविता 'आज़ादी का गीत' एक ऐसे भारत की भावनाओं को खूबसूरती से सारांशित करती है, जिसने अपनी स्वतंत्रता जीती थी और एक उज्ज्वल भविष्य की ओर देख रहा था।
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल
चांदी, सोने, हीरे मोती से सजती गुड़िया
इनसे आतंकित करने की घडियां बीत गई
इनसे सज धज कर बैठा करते हैं जो कठपुतले
हमने तोड़ अभी फेंकी हैं हथकडियां
परम्परागत पुरखो की जागृति की फिर से
उठा शीश पर रक्खा हमने हिम-किरीट उजव्व्ल
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल
चांदी, सोने, हीरे, मोती से सजवा छाते
जो अपने सिर धरवाते थे अब शरमाते
फूल कली बरसाने वाली टूट गई दुनिया
वज्रों के वाहन अम्बर में निर्भय गहराते
इन्द्रायुध भी एक बार जो हिम्मत से ओटे
छत्र हमारा निर्मित करते साठ-कोटी करतल
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल
2. माखनलाल चतुर्वेदी 'पुष्प की अभिलाषा'
माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल, 1889 को हुआ था और वे हिंदी साहित्य के नव-रोमांटिक काल का हिस्सा थे। चतुर्वेदी, जिन्हें पंडित जी के नाम से भी जाना जाता था, न केवल एक कवि थे, बल्कि एक निबंधकार, एक लेखक और एक पत्रकार भी थे। स्वतंत्रता संग्राम में भी उनकी सक्रिय भूमिका थी। उनकी कविता पुष्प की अभिलाषा उस समय के स्वतंत्रता सेनानियों की भावनाओं को शानदार ढंग से दर्शाती है। माखनलाल की इस कविता को देशभक्ति की बेहतरीन कविताओं में से एक माना जाता है।
चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
3. श्यामलाल गुप्ता 'झंडा ऊंचा रहे हमारा'
सनातन हिंदी गीत 'विजय विश्व तिरंगा प्यारा... झंडा ऊंचा रहे हमारा..' के अमिट शब्द कौन याद नहीं रखता। यह गीत भारतीयों के दिलों में हमारे प्यारे झंडे के लिए देशभक्ति और अटूट प्रेम की भावना पैदा करना जारी रखता है, जैसा कि इस कविता ने स्वतंत्रता सेनानियों के दिलों में किया था, जो भारत को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त करने के लिए प्रेरित हुए थे।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला,
प्रेम सुधा सरसाने वाला
वीरों को हरषाने वाला
मातृभूमि का तन-मन सारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
स्वतंत्रता के भीषण रण में,
लखकर जोश बढ़े क्षण-क्षण में,
काँपे शत्रु देखकर मन में,
मिट जावे भय संकट सारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
इस झंडे के नीचे निर्भय,
हो स्वराज जनता का निश्चय,
बोलो भारत माता की जय,
स्वतंत्रता ही ध्येय हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
आओ प्यारे वीरों आओ,
देश-जाति पर बलि-बलि जाओ,
एक साथ सब मिलकर गाओ,
प्यारा भारत देश हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
इसकी शान न जाने पावे,
चाहे जान भले ही जावे,
विश्व-विजय करके दिखलावे,
तब होवे प्रण-पूर्ण हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
4. राम प्रसाद बिस्मिल 'सरफरोशी की तमन्ना'
आर्य समाजी राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा लिखित यह उर्दू ग़ज़ल स्वतंत्रता के बारे में लिखी गई कविता की सबसे प्रेरक रचनाओं में से एक है। ये ग़ज़ल उन स्वतंत्रता सेनानियों की प्रेरणा और भावना को दर्शाती है जिन्होंने भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। ये ग़ज़ल इस तथ्य के आलोक में अधिक महत्व रखती है कि बिस्मिल को स्वयं 30 वर्ष की आयु में अंग्रेजों द्वारा मार डाला गया था। लेकिन अंग्रेजों को ये नहीं पता था कि बिस्मिल ने इन शब्दों में अपनी आत्मा को पीछे छोड़ दिया था, जो कई युवाओं को देश की आज़ादी के लिए प्रेरित करेगा।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
वाए क़िस्मत पाँव की ऐ ज़ोफ़ कुछ चलती नहीं
कारवाँ अपना अभी तक पहली ही मंज़िल में है
रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत रह न जाना राह में
लज़्ज़त-ए-सहरा-नवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है
शौक़ से राह-ए-मोहब्बत की मुसीबत झेल ले
इक ख़ुशी का राज़ पिन्हाँ जादा-ए-मंज़िल में है
आज फिर मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार बार
आएँ वो शौक़-ए-शहादत जिन के जिन के दिल में है
मरने वालो आओ अब गर्दन कटाओ शौक़ से
ये ग़नीमत वक़्त है ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है
माने-ए-इज़हार तुम को है हया, हम को अदब
कुछ तुम्हारे दिल के अंदर कुछ हमारे दिल में है
मय-कदा सुनसान ख़ुम उल्टे पड़े हैं जाम चूर
सर-निगूँ बैठा है साक़ी जो तिरी महफ़िल में है
वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है
अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में है
5. रवींद्र नाथ टैगोर 'जहां मन बिना भय के होता है'
गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध, रवींद्र नाथ टैगोर निस्संदेह भारत के अग्रणी कवियों, लेखकों, चित्रकारों और बुद्धिजीवियों में से एक हैं। उन्होंने 19वीं और 20वीं शताब्दी के अंत में बंगाली साहित्य और संगीत के साथ-साथ भारतीय कला को आधुनिकता के साथ नया रूप दिया। टैगोर का प्रभाव न केवल भारत के राज्यों बल्कि दुनिया भर के देशों की सीमाओं से परे है। यह कविता उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति 'गीतांजलि' से ली गई है जिसके लिए उन्हें 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार भी मिला था।
जहां, मन हो भय से मुक्त और सिर फ़क्र से ऊँचा.
जहां ज्ञान हो आज़ाद.
जहां, दुनिया न हो टूटी-बिखरी
संकीर्ण घटिया दीवारों के ज़रिए..
जहां, सच की गहराई से निकलकर बाहर उतरें शब्द.
जहां, कोशिशें बिना थके फ़ैलाए अपनी बाहें,
सबसे बेहतरीन को पाने.
जहां, रूढ़ आदतों की मरूस्थली रेत में
वजहों को तलाशती निर्मल धाराएं
ना भटक गई हों अपनी राह.
जहां, (मैं से उबर कर) 'आप' को पाने
निरंतर विस्तार पाते विचारों और कर्मों की ओर
मन बढ़ता हो आगे.
मेरे परमेश्वर!
मेरे देश को जाग्रत करें
स्वतंत्रता के स्वर्ग की ओर..