भारत में हरतालिका तीज का त्योहार मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। हरतालिका तीज को हरियाली तीज और कजरी तीज भी कहा जाता है। भारतीय हिंदू महिलाएं अपने सुहाग की कामना के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं। हर साल हरतालिका तीज का पर्व गणेश चतुर्थी से एक दिन पहले आता है। हिंदू पंचांग कैलंडर के अनुसार, इस वर्ष भाद्रपुद के शुक्ल पक्ष तृतीया 11 अगस्त 2021 को हरतालिका तीज का व्रत रखा जाएगा। आइये जानते हैं हरतालिका तीज का इतिहास, महत्व और निबंध कैसे लिखें।
हरतालिका तीज का इतिहास
हरतालिका तीज का संबंध माता पार्वती से जुड़ा हुआ है। प्राचीन समय में पार्वती के पिता हिमालय ने पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से करने का वादा किया था। देवी पार्वती ने अपनी सहेलियों से खुद का अपहरण करने को कहा, जिसके बाद वह उन्हें जंगल में ले गई। क्योंकि पार्वती शिव से विवाह करना चाहती थी, जिसके लिए उन्होंने तपस्या की और शिव की आराधना में लीन हो गई। शिव पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए और शिव ने पार्वती से विवाह करने का वरदान दिया। तब पार्वती ने कहा कि जो भी स्त्री अपने पति ली लंबी उम्र के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखेगी, उसे शिव परिवार का आशीर्वाद मिलेगा।
हरतालिका तीज का महत्व
हमारी संस्कृति तीज-त्यौहारों, पर्व-उत्सवों से सजी है। कहा भी जाता है, भारतीय संस्कृति में सात वार और नौ त्यौहार हैं। इस रंग-रंगीली संस्कृति की जान हैं हमारी परंपराएं। देष के हर प्रांत की अनूठी परंपराओं पर धड़कता है हमारी भारतीय संस्कृति का दिल। जब इन परंपराओं को भक्ति-भाव में डूबकर उपवास और आराधना के साथ मनाया जाता है तो लगता है ईष्वर स्वयं आशीर्वाद देने धरा पर उतर आए हों। सावन के आगमन के साथ ही बारिष की रिमझिम फुहारों से स्नान कर पूरी धरती हरी चुनर ओढ़ कर तैयार हो जाती है। विदा होता सावन हरी-भरी धरती की सौगात भादो के हाथ में सौंप देता है। अब जी भर के रसपान करो प्रकृति के इस नवीन रूप का। सौदंर्य-सुगंध को हर मन उतार लो भीतर तक अपनी सांसो के सहारे। हर प्राणी आनंद का अनुभव करता है। इस षीतल सुरम्य वातावरण में हमारे पर्वों-उत्सवों का मजा चौगुना हो जाता है। तीज-त्योहार प्रकृति के सौंदर्य के आभूषण से सज जाते हैं। महिलाओं के व्रत उपवासों में श्रद्धा भक्ति के साथ वातावरण की सुंदरता भी शामिल हो जाती हैं।
हरतालिका तीज पर निबंध
भाद्रपद या भादो मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र में आता है पर्व हरतालिका तीज। हरियाली मौसम में आने के कारण इसे हरियाली तीज भी कहते हैं। महिलाओं के लिए यह दिन सबसे खास होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना के लिए व्रत रखती हैं। कुआंरी लड़कियां मनचाहा वर पाने के लिए इस व्रत को रखती हैं। भक्ति-भाव से पूर्ण इस कठिन व्रत को पूरे दिन निर्जल रहकर किया जाता है। यानी न कोई आहार ग्रहण किया जाता है न पानी पिया जाता है। प्रात काल स्नान कर शिवजी की आराधना में पूरा दिन समर्पित किया जाता है।
व्रत विधि की बात करें तो पौराणिक कथा के अनुसार राजा हिमाचल की पुत्री पार्वती ने भगवान षिव को पाने के लिए इस व्रत को किया था। पार्वती ने मन ही मन षिवजी को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया था। उन्होंने षिवजी को पाने के लिए विषम परिस्थितियों में बारह साल तपस्या की। और इस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर भगवान षिव ने पार्वतीजी की मनोकामना पूर्ण की। प्राचीन समय से स्त्रियां इस व्रत को करती आ रही हैं। व्रत के दिन उपवास रखने के साथ ही पटिए पर शुद्ध बालू रेत के षिव-पार्वती की मूर्ति बनाकर उनका पूजन किया जाता है। विभिन्न प्रकार के फूल -पत्ते व मौसमी फल चढ़ाए जाते हैं। माता पार्वती को समस्त श्रंगार सामग्री चढ़ाई जाती है। व्रत की कथा पढ़ी जाती है। फिर रात भर जागरण कर भजन गाए जाते हैं। इस दौरान हर प्रहर में भगवान भोलेनाथ की पूजन व आरती की जाती है। फिर अगले दिन विधि-विधान से मूर्तियों का जल में विसर्जन कर जल ग्रहण किया जाता है।
उस व्रत के माध्यम से महिलाओं को एक दिन अपने तरीके से जीने का मौका मिलता है। वे बाग बगीचों में जाकर फूल-पत्तियां चुनने के दौरान प्रकृति के सौंदर्य और सुगंध का एहसास कर पाती हैं। भांति-भांति के पेड़ पौधें से परिचित होती हैं। सुरम्य वातावरण में उनके मन का क्लेष और तनाव कम हो ताजे हैं। मन स्वच्छ निर्मल हो जाता है। अपनी सखियों के साथ समय गुजारने का अवसर मिलता है तो वे अपने पीहर की यादों को साझा करती हैं। हंसी ठिइौली के साथ खट्टी-मीठी यादें दोहराई जाती हैं। सजने संवरने और मेहंदी लगाने के बाद वे खुद के रूप को महसूस कर उस पर गर्व करती है। पेड़ों पर डले सावन के झूलों का आनंद भी इस दिन जी भर के लिया जाता है। इन सबका अनुभव अनूठा ही होता है। इसके साथ ही महिलाएं व्रत रखकर स्वयं की परीक्षा लेती हैं कि वे कितने समय तक अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रख सकती हैं। बिना अन्न जल के प्रसन्न भाव से पूजन-अर्चन करने और रात भर जागरण करने की क्षमता उनमें है या नहीं।
अपनी सखियों के साथ वे हर काम में तालमेल बैठा पाती हैं या नहीं। उनमें सहयोग की भावना कितनी है । अपने रिती रिवाजों से वे कितनी परिचित हैं। हर महिला स्व मूल्यांकन कर अपनी क्षमताओं का आकलन कर पाती है। यह सिर्फ भारतीय संस्कारों में ही संभव है। परिवर्तन के इस दौर के प्रभाव से हमारे व्रत-त्योहार भी अछूते नहीं रह पाए है। इस व्रत का अस्तित्व तो है पर स्वरूप में बहुत भिन्नता आ गई है। समय की कमी का हवाला देकर सारा सामान बाजार से खरीद लिया जाता है। सौंदर्य निखारने के लिए पार्लर का बाजार सदा तैयार रहता है। पति के लिए उपवास रखा जा रहा है तो बदले में उनसे महंगे उपहारों की फरमाइष पहले से कर दी जाती है। घर-परिवार की महिलाओं को देने के बजाय उनसे लेने की अपेक्षा अधिक हो गई है। शिवलिंग घर में बनाने के बजाय मंदिरों में पूजा करने का चलन हो गया है। वहां भी पूजन के समय होड़ सी लगी रहती है , पहले करने की। दबे रूप में महिलाएं एक-दूसरे की पूजन थाली देखकर कमियां निकालने से भी नहीं चूकती।
कई महिलाएं सहनषीलता की कमी होने या स्वास्थ्य के साथ न देने से पहली पूजा के बाद जल-फल ग्रहण कर लेती है। जो अनुचित भी नहीं है। रात जागरण की परंपरा को फिल्म देखकर या खेल खेलकर पूरा किया जाता है। पर इन सबमें महिलाएं भूल ही जाती हैं कि भगवान षिव सिर्फ भक्ति-भाव के भूखे हैं। तभी तो वे भोलेनाथ भी कहे जाते है। व्रत-पूजन में श्रद्धा भक्ति और भावनाएं कहीं गुम सी गई है। जबकि मूल में देखें तो भावनाएं ही सर्वोपरि थीं। आधुनिक विचारों के चलते व्रत के दूसरे पहलू पर भी गौर किया जाना चाहिए। माता पार्वती ने भगवान षिव को पाने का अपना जीवन लक्ष्य निर्धारित कर लिया था। इस लक्ष्य को पाने के लिए वे चाहती तो अपने पिता या अन्य षक्ति का सहारा ले सकती थीं। पर उन्होंने स्वयं बारह साल तक तपस्या की। कई समस्याओं का सामना किया।
विषम परिस्थितियों में भी लक्ष्य से विचलित नहीं हुई। आरंभिक प्रयासों में असफल होने पर भी हार नहीं मानी । और अंततः लक्ष्य प्राप्त किया। वास्तव में यह व्रत हमें अपने लक्ष्य के प्रति निष्ठा और समर्पण की सीख देता है। एक जिद हो मनचाहा पाने के लिए। हम कठिन से कठिन डगर भी पार कर लें उस जिद की खातिर। और रूकें तभी जब लक्ष्य प्राप्त हो जाए। तो इस बरस मनाएं हरतालिका व्रत को पुराने रीति-रिवाजों के साथ , पूर्ण भक्ति भाव मन में रखकर एक लक्ष्य प्राप्ति के उददेष्य के साथ। और अपना मूल्यांकन करना न भूलें ईमानदारी से परखें जो अंक हासिल कर पाए उन्हें। फिर आप भी महसूस करेंगी इस अनुपम व्रत की के महत्व को और षिव पार्वती का आषीर्वाद आपकी खुषियों को कई गुना कर देगा।