Turning Points of Neeraj Chopra Life: नीरज चोपड़ा का नाम टोक्यो ओलंपिक से ही लोगों जुबान पर है। अपने बेहतरीन प्रदर्शन से गोल्डन ब्वॉय कहलाने वाले नीरज चोपड़ा एक बार फिर लोगों का दिल जीतने और भारत का नाम रौशन करने के लिए तैयार हैं। दरअसल, नीरज चोपड़ा ने विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लिया हैं और उन्होंने अपने बेहतरीन प्रदर्शन से विश्व चैंपियनशिप के फाइनल गोल्ड मेडल हासिल कर भारत का नाम रौशन किया है।
बात यहीं खत्म नहीं होती, विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में गोल्डन ब्वॉय नीरज चोपड़ा ने 88.77 मीटर का सीजन का बेस्ट थ्रो देते हुए 2024 में पेरिस में होने वाले ओलंपिक में भी अपनी जगह बना ली है। पिछले साल विश्व चैंपियनशिप में सिल्वर जीतने के बाद नीरज का इस साल गोल्डन जीतने का सपना था, जिसके लिए वह दिल-ओ-जान से तैयारी कर रहे थे। अपनी इस कड़ी मेहनत के साथ अपना ये सपना साकार कर दिखाया है।
नीरज चोपड़ा के बारे में
ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा का जन्म 25 दिसंबर 1997 में हरियाणा के खंडरा पानीपत में हुआ था। उनका परिवार बड़े पैमाने पर खेती से जुड़ा है। अपनी स्कूली शिक्षा उन्होंने बीवीएन पब्लिक स्कूल से प्राप्त की है, जिसके बाद अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वह चंडीगढ़ गए और दयानंद एंग्लो-वैदिक कॉलेज गए। उसके बाद उन्हें जालंधर, पंजाब में स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के बीए की शिक्षा प्राप्त की। लेकिन नीरज की लाइफ का सबसे बड़ा टर्निंग प्वॉइंट तब आया जब उन्होंने व्यायामशाला में दाखिला लिया।
लेकिन सवाल ये है कि वो टर्निंग प्वाइंट आखिर था क्या। इसके साथ ही नीरज के जीवन में कितने टर्निंग प्वॉइंट आए हैं। आइए आपको उन सबके बारे में बताएं।
मोटापे से परेशान व्यायामशाला में लिया दाखिला
नीरज को बचपन में बच्चे उनके मोटापे की वजह से बहुत चिढ़ाया करते थे। उनकी इस स्थिति को समझते हुए उनके पिता ने उन्हें मडलौडा के एक व्यायामशाला (Gymnasium) में दाखिला दिलाया, जिसके बाद उन्होंने पानीपत के एक जिम में नामांकन किया और अपने वजन को कम करने और खुद को शारीरिक रूप से एक्टिव बनाने पर काम किया।
कैसे जगी जुवेनाइल थ्रो में रूचि
पानीपत के शिवाजी स्टेडियम में खेलते समय नीरज ने कुल लोगों को जुवेनाइल थ्रो करते देखा। इसके देख उन्होंने इस खेल में हिस्सा लिया। यहां से उनकी इस खेल में दिलचस्पी बढ़ी।
चोपड़ा को मिला पहला कोच
पानीपत भारतीय खेल प्राधिकरण केंद्र के दौरे के दौरान जुवेनाइल थ्रोर अक्षय चौधरी से मिले, जहां उन्होंने 2010 मे प्रतिभा का अभ्यास किया। इस दौरान अक्षय ने बिना ट्रेनिंग के चोपड़ा को 40 मीटर का थ्रो करते देखा। उनके इस ड्राइव से प्रभावित होकर अक्षय चौधरी उनके पहले कोच बने।
अक्षय चौधरी और उसके अलावा कुछ अन्य अनुभवी एथलीटों से नीरज ने खेल की मूल बातें सीखीं।
जुवेनाइल थ्रो में जीता पहला पदक
चौधरी के अंडर ट्रेनिंग के दौरान नीरज ने अपना पहला पदक ब्रोंज मेडल जिला चैंपियनशिप में जीता और इसके बाद आगे की ट्रेनिंग के लिए उन्होंने पानीपत में रहने का फैसला लिया।
पंचकूला के ताऊ देवी लाल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में लिया दाखिला
पंचकुला में स्थित ताऊ देवी लाल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में उन दो फैसिलीट्स में से एक थी, जिसमें सिंथेटिक रनवे था। यहां नीरज ने अपनी ट्रेनिंग नसीम अहमद के अंडर एक लंबी दौड़ के साथ भाला फेंकने का प्रशिक्षण भी मिला। क्योंकि पंचकूला में जुवेनाइल थ्रो के कोच की कमी थी, इसलिए नीरज ने खिलाड़ी परमिंदर सिंह ने चेक चैंपियन जान ज़ेलेज़नी के वीडियो डाउनलोड किए और उनकी शैली की नकल करने का प्रयास किया। इस स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में नीरज ने 55 मीटर की थ्रो को हासिल किया।
लखनऊ में जीता गोल्ड मेडल
जुवेनाइल थ्रो में आगे बढ़ रहे नीरज ने जल्द ही अपने थ्रों की रेंज को बढ़ाया और 2012 में लखनऊ में हुए राष्ट्रीय जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 68.40 मीटर का थ्रो करके गोल्ड मैंडल तो जीता ही साथ ही नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी बनाया।
2015 में नीरज के करियर का टर्निंग प्वॉइंट
नीरज ने कुछ मीडिया चैनलों से बात करते हुए अपने टर्निंग प्वॉइंट के बारे में बताया है। उनके अनुसार उनके करियर का सबसे बड़ा टर्निंग प्वॉइंट नेशनल कैंप में शामिल होना था। उन्होंने बताया कि उन्हें अच्छी ट्रेनिंग की लेकिन आहार, उपकरण और अन्य आवश्यक सुविधाएं पहले प्रशिक्षण संस्थान में उतनी अच्छी नहीं थी, लेकिन जैसे ही ने नेशनल कैंप में शामिल हुए सब बदल गया। इसलिए उन्होंने कहा कि नेशनल कैंप में शामिल होने ही उनके करियर का सबसे बड़ा टर्निंग प्वॉइंट था।
अंतर्राष्ट्रीय खेलों में लिया हिस्सा
नीरज ने अंतर्राष्ट्रीय चैंपियनशिप में हिस्सा 2013 से लेना शुरू किया था। उनकी पहली इंटरनेशनल चैंपियनशिप थी विश्व यूथ चैंपीयनशिप। इसके बाद उन्होंने यूथ ओलंपिक में हिस्सा लिया और सिल्वर मेडल जीता। इस प्रकार उन्होंने विश्व जूनियर चैंपियनशिप (2016), साउथ एशियन गेम्स (2016), एशियन चैंपियनशिप (2017), कॉमनवेल्थ गेम्स (2018), एशियन गेम्स (2018) में गोल्ड मेडल जीता।
हड्डी में आई चोट से रिकवरी कर ओलंपिक में लाए गोल्ड
2019 में नीरज को दाहिनी कोहनी की हड्डी में आई चोट के कारण सर्जरी से गुजरना पड़ा। इस कारण वह विश्व चैंपियनशिप 2019 से चूक गए। 2020 में होने वाले टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा लेने के लिए चोपड़ा ने कड़ी मेहनत की और दक्षिण अफ्रीका के जर्मन बायोमैकेनिक्स विशेषज्ञ क्लाउस बार्टोनित्ज के अंडर रहकर ट्रेनिंग ली।
उसके बाद उन्होंने 2020 में टोक्यो ओलंपिक में 87.58 मीटर का थ्रो करके गोल्ड मेडल अपने नाम किया और गोल्डन ब्वॉय कहलाए।
इसके बाद 2022 में हुई विश्व चैंपियनशिप में नीरज को सिल्वर मेडल मिला। लेकिन इस बार नीरज विश्व चैंपियनशिप में अपना परचम लहराने के लिए काफी तैयार दिख रहे हैं।
भारतीय सेना में मिली नौकरी
साउथ एशियन गेम्स में नीरज का प्रदर्शन देख और उनकी क्षमता से प्रभावित होकर भारतीय सेना ने उन्हें राजपूताना राइफल्स में नायब सूबेदार के पद के साथ जूनियर कमीशंड अधिकारी के रूप में सीधी नियुक्ति की ऑफर दिया। नीरज ने भारतीय सेना की इस पेशकश को स्वीकार किया और स्पोर्ट्स कोटा के तहत सेना में शामिल हुए।