M Visvesvaraya Biography: कौन थे मैसूर के पूर्व दीवान मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया? यहां पढ़ें उनकी जीवनी

सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (1861-1962) भारत के महानतम अभियंताओं (इंजीनियर्स) में से एक थे। उनका जीवन और कार्य भारतीय समाज और इंजीनियरिंग क्षेत्र के लिए प्रेरणा का स्रोत है। अपने असाधारण तकनीकी ज्ञान और अनुकरणीय नेतृत्व के कारण, उन्हें भारत में 'आधुनिक अभियंत्रण के जनक' के रूप में भी जाना जाता है। उनके योगदान के कारण हर साल 15 सितंबर को उनकी जयंती पर 'इंजीनियर्स डे' मनाया जाता है।

 कौन थे मैसूर के पूर्व दीवान मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया? यहां पढ़ें उनकी जीवनी

जन्म और शिक्षा
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर, 1861 को कर्नाटक राज्य के चिक्काबल्लापुर जिले के एक छोटे से गाँव मुड्डेनहल्ली में हुआ था। उनके पिता, श्रीनिवास शास्त्री, संस्कृत के विद्वान थे, और उनकी माता, वेंकचम्मा, एक धार्मिक महिला थीं। विश्वेश्वरैया का बचपन आर्थिक कठिनाइयों में बीता, क्योंकि उनके पिता का निधन तब हुआ जब वे बहुत छोटे थे। इसके बावजूद, उन्होंने शिक्षा को महत्व दिया और हमेशा अपनी पढ़ाई में उत्कृष्टता हासिल की।

प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने बेंगलुरु के सेंट्रल कॉलेज में दाखिला लिया और अपनी स्नातक की डिग्री पूरी की। इसके बाद उन्होंने पूना (अब पुणे) के प्रसिद्ध कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से सिविल इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की। उनकी शैक्षिक योग्यता और ज्ञान ने उन्हें जल्द ही ब्रिटिश सरकार के अधीन एक सिविल इंजीनियर के रूप में नियुक्ति दिलाई।

करियर की शुरुआत और शुरुआती योगदान
सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद, विश्वेश्वरैया ने 1884 में बॉम्बे (अब मुंबई) सरकार में एक सहायक इंजीनियर के रूप में अपनी करियर की शुरुआत की। उनकी पहली बड़ी परियोजना पुणे के पास खड़कवासला बांध का निर्माण थी, जो उस समय के लिए एक क्रांतिकारी जल प्रबंधन प्रणाली थी। उन्होंने बांधों और जलाशयों के डिजाइन में महत्वपूर्ण योगदान दिया और कई ऐसे तकनीकी नवाचार किए, जो आज भी उपयोग में हैं।

उनकी सबसे बड़ी सफलता रही स्वचालित बाढ़ नियंत्रण प्रणाली का विकास, जिसे उन्होंने पुणे में खड़कवासला जलाशय के लिए डिज़ाइन किया। इस प्रणाली की प्रभावशीलता और सफलता के कारण, बाद में इसे गोदावरी नदी के जलाशयों में भी अपनाया गया। उनके इसी काम के कारण उनकी ख्याति पूरे देश में फैल गई, और उन्हें सिंचाई परियोजनाओं और जल प्रबंधन के विशेषज्ञ के रूप में पहचाना जाने लगा।

कृष्णा राजा सागर (KRS) बांध और मैसूर का विकास
सर एम. विश्वेश्वरैया का सबसे महत्वपूर्ण योगदान कृष्णा राजा सागर (KRS) बांध के निर्माण में था। यह बांध कर्नाटक राज्य में कावेरी नदी पर स्थित है और उस समय यह एशिया का सबसे बड़ा जलाशय था। KRS बांध का निर्माण 1930 में पूरा हुआ और इससे सिंचाई और बिजली उत्पादन के क्षेत्र में कर्नाटक को बहुत लाभ हुआ। इस बांध ने न केवल किसानों को सिंचाई का पानी प्रदान किया, बल्कि पूरे राज्य के औद्योगिक विकास के लिए बिजली भी उपलब्ध कराई।

उनकी योजनाओं और बांध के निर्माण से हजारों किसानों की ज़िंदगी में सुधार हुआ और कर्नाटक की कृषि और औद्योगिक क्षमता में वृद्धि हुई। इसी परियोजना ने उन्हें एक उत्कृष्ट अभियंता के रूप में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई।

मैसूर राज्य के दीवान के रूप में कार्यकाल
1912 में, विश्वेश्वरैया को मैसूर राज्य (वर्तमान कर्नाटक) का दीवान (प्रधानमंत्री) नियुक्त किया गया। उन्होंने इस पद पर 1918 तक कार्य किया। उनके कार्यकाल के दौरान मैसूर राज्य ने असाधारण प्रगति की। उन्होंने राज्य के आर्थिक, शैक्षिक और औद्योगिक विकास के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएँ लागू कीं। उनके नेतृत्व में मैसूर राज्य में उद्योगों का विकास हुआ, जिसमें मैसूर सैंडल ऑयल फैक्ट्री, मैसूर आयरन एंड स्टील वर्क्स और मैसूर विश्वविद्यालय जैसी प्रतिष्ठित संस्थानों की स्थापना की गई।

विश्वेश्वरैया ने न केवल तकनीकी विकास पर ध्यान दिया, बल्कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की दिशा में भी बड़े कदम उठाए। उनके प्रयासों के कारण मैसूर राज्य को पूरे देश में सबसे प्रगतिशील राज्यों में से एक माना जाने लगा।

समाज सुधारक और उनके विचार
सर विश्वेश्वरैया केवल एक महान अभियंता ही नहीं थे, बल्कि एक समाज सुधारक भी थे। उनका मानना था कि शिक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता से ही समाज का समग्र विकास संभव है। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया और महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के प्रयास किए।

उनके विचारों में अनुशासन, परिश्रम, और समर्पण का महत्व था। वे एक सख्त अनुशासनप्रिय व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने जीवन में उच्च आदर्शों का पालन किया और दूसरों को भी यही सीख दी। उनका मानना था कि एक राष्ट्र की प्रगति उसके नागरिकों की मेहनत, ईमानदारी और तकनीकी क्षमता पर निर्भर करती है।

पुरस्कार और सम्मान
सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के योगदान को देखते हुए, उन्हें 1955 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा 'नाइट कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द इंडियन एम्पायर' (KCIE) की उपाधि से भी सम्मानित किया गया। उनके नाम पर कई विश्वविद्यालयों, संस्थानों और सड़कों का नाम रखा गया है, जो उनकी महानता को दर्शाता है।

अंतिम समय और विरासत
100 साल से अधिक की आयु में 14 अप्रैल, 1962 को सर एम. विश्वेश्वरैया का निधन हुआ। उनकी विरासत आज भी जीवित है और उनके योगदान को भारत के हर कोने में याद किया जाता है। उन्होंने जिस तरह से भारतीय समाज और इंजीनियरिंग क्षेत्र को प्रभावित किया, वह अनुकरणीय है।

उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि कड़ी मेहनत, समर्पण और नवाचार से हम समाज और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। उनका जीवन और कार्य भारत के प्रत्येक युवा के लिए प्रेरणा का स्रोत है, और उनकी यादें भारतीय इंजीनियरिंग के इतिहास में हमेशा अमर रहेंगी।

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English summary
Sir Mokshagundam Visvesvaraya (1861-1962) was one of the greatest engineers of India. His life and work are a source of inspiration for Indian society and the engineering sector. Due to his exceptional technical knowledge and exemplary leadership, he is also known as the 'Father of Modern Engineering' in India. Due to his contribution, 'Engineers Day' is celebrated every year on his birth anniversary on 15 September.
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