Uniform Civil Code क्या है? वर्तमान मे इसकी जरूरत क्यों है, मुस्लिम महिलाओं के लिए कैसे लाभकारी है जानिए

Uniform Civil Code: भारत विभिन्न धर्मों का राष्ट्र है, ये किसी एक धर्म पर आधारित नहीं है। भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और आदिवासी समुदाय है, जिनके अपने कुछ रीति-रिवाज, नियम और कानून हैं, जिसके कारण वर्तमान समय में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code -UCC) की मांग तेज हो गई है। ये विवाह, तलाक, गोद लेने, विरासत, रख-रखाव और संपत्ति के उत्तराधिकार जैसे कई क्षेत्रों को कवर करता है। समान नागरिक संहिता किसी भी धर्म की परवाह किये बिना नागरिकों के व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने के लिए कानून का एक सेट तैयार करता है।

Uniform Civil Code क्या है? वर्तमान में क्यों है जरूरी, मुस्लिम महिलाओं के लिए कैसे लाभकारी है,

बता दें कि समान नागरिक संहिता कोई नया कानून नहीं है। इसे लाने की बात भी आज की नहीं है। पिछले 75 वर्षों से समान नागरिक संहिता को लाने का प्रयास किया जा रहा है। समय-समय पर इसकी मांग तेज भी हुई है। पिछले एक साल से समान नागरिक संहिता का मुद्दा अधिक गरमाया हुआ है। कभी चुनाव को लेकर तो कभी अन्य किसी मामले को लेकर। फिलहाल सरकार समान नागरिक संहिता को लाने का पूरा प्रयास कर रही है। बीते दिनों मध्यप्रदेश में भाजपा बूथ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता को पुरजोर समर्थन किया था।

समान नागरिक संहिता का कार्य सभी के मौलिक और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना भी है। हाल ही में 22वें विधि आयोग द्वारा इस विषय की एक बार फिर जांच करने की सहमति व्यक्त की गई है, जिसके आधार पर यूसीसी (UCC) पर जनता की राय के साथ राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त धार्मिक निकायों से भी राय और सिफारिशों की मांग की गई है।

आज इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि समान नागरिक संहिता क्या है, इसकी शुरुआत कैसे हुई, वर्तमान में इसकी आवश्यकता क्यों है, किस प्रकार मुस्लिम महिलाओं के लिए आवश्यक है और आर्टिकल 44 से इसका क्या संबंध है? क्योंकि ये मुद्दा पिछले कुछ समय से चर्चा का बड़ा केंद्र रहा है, ये कहना गलत नहीं होगा कि इससे संबंधित प्रश्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में भी आ सकते हैं। ऐसी स्थिति में आपको समझाते हैं कि ये भारत के लिए क्यों जरूरी है, साथ ही साथ आपको बतायें ये क्या है, तो आइए आपको बताएं समान नागरिक संहिता के बारे में...

अनुच्छेद 44 क्या है? (What is Article 44)

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 44 राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के बारे में बताता है। समान नागरिक संहिता को अनुच्छेद 44 के तहत परिभाषित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है। आसान भाषा में आपको समझाएं तो इसका अर्थ है "एक भारत एक कानून है" भले की आप किसी भी धर्म से हो।

अनुच्छेद 44 का उद्देश्य कमजोर समूहों के खिलाफ होने वाले भेदभाव को संबोधित कर देश में विविध सांस्कृतिक समूहों का सामंजस्य स्थापित करना है। भारत संविधान के जनक कहे जाने डॉ.बी आर अंबेडकर ने भी यूसीसी को वांछनीय बताया था लेकिन उस समय के दौरान इसके स्वैच्छिक रखा गया था।

जब बात समान नागरिक संहिता की आती है तो कई लोग अनुच्छेद 25-28 की दुहाई देते हैं। संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के तहत सभी भारतीयों को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है। वहीं अनुच्छेद 44 भारतीय राज्य से अपेक्षा करता है कि वह राष्ट्रीय नीतियां बनाते समय सभी भारतीय नागरिकों के लिए निर्देशक सिद्धांतों और सामान्य कानून को लागू करें।

समान नागरिक संहिता क्या है? (What is Uniform Civil Code)

सरल भाषा में समान नागरिक संहिता एक देश एक कानून की बात करती है। जहां देश में रहने वाले सभी नागरिकों को एक कानून का पालन करना होगा, भले ही वह किसी भी धर्म के हो। इसमें विवाह, बच्चा गोद लेना, तलाक, संपत्ति का बंटवारा और अन्य संबंधित कई विषय शामिल है। क्योंकि वर्तमान समय में देश में कानून धर्म के आधार पर तय है, जिसके कारण कुछ विशिष्ट धर्मों में भेदभाव की स्थिति उत्पन्न होती है। इस स्थिति से बचने के लिए एक कानून की आवश्यकता है जिसे भविष्य में लागू किये जाने पर भारतीय सरकार जोर दे रही है।

समान नागरिक संहिता शुरुआत से ही संविधान का हिस्सा है। जैसा कि हमने आपको बताया कि इसे अनुच्छेद 44 के तहत परिभाषित किया जाता है। लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है। जब संविधान का निर्माण किया जा रहा था, तब कुछ लोग थे जो इस कानून के समर्थन में तो वहीं कुछ इसके लोग इसके विरोध में थे। समान नागरिक संहिता की जरूरत शुरुआत से ही देखी गई है लेकिन समय-समय पर इसकी मांग तेज हुई है और इसकी आवश्यकता को समझा गया है। आपने शाहबानो के मामले के बारे में सुना ही होगा, ये वो समय था जब कोर्ट को समान नागरिक संहिता की आवश्यकता महसूस हुई थी। उसी प्रकार एक बार फिर वर्तमान समय में स्थितियों को देख इस कानून की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

शाहबानो मामला क्या था

1985 में शाहबानो मामले में समान नागरिक संहिता एक महत्वपूर्ण विषय बना था। जहां, समान नागरिक संहिता की आवश्यकता सबसे अधिक महसूस की गई थी। इस मामले ने संविधान द्वारा प्राप्त धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को बिना नुकसान पहुंचाए नागरिकों के लिए कुछ समना कानून को लागू करने के मुद्दे को जन्म दिया था।

1985 में शाहबानो द्वारा आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ते की मांग की गई थी, जिसके लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की तरफ अपना रुख किया था। मामले के अनुसार उनके पति ने उन्हें 40 साल बाद तीन बार तलाक कह कर तलाक दिया और नियमित गुजारा भत्ता देने से भी इनकार किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर कार्यवाही की और फैसला शाहबानो के पक्ष में दिया गया। इसी मामले के देखते हुए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाई.वी. चंद्रचूड़ ने समान नागरिक संहिता कानून के प्रति लोगों की असमान निष्ठा को दूर किया और अदालत ने संसद को समान नागरिक संहिता -यूसीसी तैयार करने के निर्देश दिये।

वहीं दूसरी तरफ राजीव गांधी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द करने और तलाक के मामले पर मुस्लिम पर्सनल लॉ को प्रभावी बनाने के लिए मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 बनाया। इस अधिनियम के अनुसार मुस्लिम महिलाओं को तलाक देने के बाद केवल तीन महीने तक भरण-पोषण का अधिकार दिया है।

भारत में व्यक्तिगत नागरिक संहिता (Personal Law)

भारत में विभिन्न नागरिक संहिता है जो धार्मिक रीति-रिवाजों और ग्रंथों पर आधारित है। भारत में विभिन्न धर्म है और सभी धर्मों के अपने व्यक्तिगत कानून है। आइए आपको उनके बारे में बताएं...

हिंदू पर्सनल लॉ

हिंदू पर्सनल लॉ हिंदू धार्मिक ग्रंथों और रीति-रिवाजों पर आधारित है। इसमें हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 को शामिल किया गया है, जो विवाह और तलाक को नियंत्रित करने का कार्य करता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 है जो विरासत से संबंध रखता है, जिसमें पुरुषों की भांति हिंदू महिलाओं को माता-पिता की संपत्ति प्राप्त करने का समान अधिकार प्रदान करता है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ

मुस्लिम पर्सनल लॉ शरीयत आधारित है। मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 मुसलमानों के बीच विवाह, तलाक, विरासत और रखरखाव से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है।

ईसाईयों, पारसियों और यहूदियों के लिए भारतीय उत्तराधिकारी अधिनियम

भारत के ईसाईयों, पारसियों और यहूदियों के लिए भारतीय उत्तराधिकारी अधिनियम, 1925 लागू है, जिसमें ईसाई महिलाओं को बच्चों या अन्य रिश्तेदारों की उपस्थिति में पूर्व निर्धारित हिस्सा दिया जाता है और पारसी विधवाओं को उनके बच्चों के समान हिस्सा प्राप्त होता है।

समान नागरिक संहिता के पक्ष विपक्ष

समान नागरिक संहिता समय और परिस्थितियों को देखते हुए महत्वपूर्ण मानी जा रही है, जिस पर पिछले एक साल से वाद-विवाद किया जा रहा है। लेकिन सभी जानते हैं कि हर चीज का पक्ष और विपक्ष दोनों होता है उसी प्रकार आपको बताएंगे कि समान नागरिक संहिता का पक्ष क्या है और विपक्ष क्या है?

समान नागरिक संहिता के पक्ष

समान नागरिक संहिता के माध्यम से सभी नागरिकों को समान दर्जा प्राप्त होगा, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, वर्ग, लिंग के क्यों ना हो। इसके माध्यम से पुरुषों और महिलाओं को समान दर्जा प्रदान किया जाएगा। लैंगिक आधार पर होने वाले भेदभाव से महिलाओं को छुटकारा प्राप्त होगा।

न्यायालय के समक्ष सभी नागरिक समान होंगे। उनके व्यक्तिगत कानून आपराधिक कानून और अन्य सिविल कानून के बीच रुकावट नहीं बनेंगे और समान रूप से काम करेंगे। इससे समानता को बढ़ावा मिलेगा और राष्ट्रीय एकता को भी बढ़ावा मिलेगा और पर्सनल लॉ में सुधार करने के मुद्दे को दरकिनार कर दिया जाएगा।

समान नागरिक संहिता के विपक्ष

भारत अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। ऐसे में एक समान कानून बनाना कठिन कार्य है। यहां कई ऐसे समुदाय है जो अल्पसंख्यक है और समान नागरिक संहिता हो वह अपने धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर अतिक्रमण मानते हैं। जिस कारण जब भी समान नागरिक संहिता का मुद्दा उठता है अनुच्छेद 25 से 28 की बात की जाती है जो हमें धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। विभिन्न धर्म होने के कारण हर धर्म के अपने रीति-रिवाज, परंपराएं और व्यक्तिगत कानून है। कई लोगों कहते हैं कि समान नागरिक संहिता व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों को बदलना चाहता है। यदि समान नागरिक संहिता को लाया जाता है तो उससे धर्म की स्वतंत्रता का दायरा कम हो सकता है।

विधि आयोग ने समान नागरिक कानून पर क्या कहा

वर्ष 2016 में बीजेपी सरकार ने भारत के विधि आयोग से हजारों व्यक्तिगत कानूनों की उपस्थिति में समान नागरिक संहिता को कैसे बनाया जाए, ये निर्धारित करने का अनुरोध किया था। इसके संबंध में विधि आयोग ने 2018 में पारिवारिक कानून में सुधार पर 185 पन्नों का परामर्श पत्र की प्रस्तुत किया था। इस पेपर के अनुसार ये कहा गया था कि एकीकृत राष्ट्र में एकरूपता की आवश्यकता नहीं है।

आयोग ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष देश की प्रचलित बहुलता का खंडन नहीं कर सकती है। इसके साथ रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि फिलहाल के स्तर पर यूसीसी न तो आवश्यक है और न हीं वांछनीय। उन्होंने कहा कि विशेष धर्म और उसके व्यक्तिगत कानूनों के भीतर भेदभावपूर्ण प्रथाओं, पूर्वाग्रहों और रूढ़िवादिता का अध्ययन और संशोधन किया जाना चाहिए। आयोग द्वारा विवाह और तलाक के लिए कुछ अन्य उपायों के सुझाव भी दिये, जिसमें विवाह के लिए आयु का निर्धारण, तलाक का आधार आर तलाक की प्रक्रिया को सरल बनाना भी शामिल है।

किन देशों में पहले से ही है समान नागरिक संहिता

भारत अभी समान नागरिक संहिता को लेकर बात कर रहा है लेकिन क्या आप जानते हैं कि विश्व में कई देश हैं जो पहले ही इस कानून को अपना चुके हैं। आइए आपको उन देशों के नाम बताएं...

1. अमेरिका
2. मलेशिया
3. आयरलैंड
4. बांग्लादेश
5. तुर्किये
6. इंडोनेशिया
7. सूडान
8. मिस्र
9. पाकिस्तान

इन देशों के अलावा कई अन्य देश है जहां समान नागरिक संहिता लागू है।

भारत के किस राज्य में लागू है समान नागरिक संहिता

गोवा एकमात्र भारतीय राज्य है जहां समान नागरिक संहिता लागू है। गोवा जब 1961 में पुर्तगाली शासन से मुक्त हुआ था, उसके बाद उसने अपने सामान्य पारिवारिक कानून को कायम रखा, जिसे आज गोवा नागरिक संहिता के रूप में भी जाना जाता है।

मुस्लिम महिलाओं के लिए कैसे होगा लाभकारी

शाहबानो मामले में देखा गया था कि किस प्रकार 40 साल बाद उन्हें तीन तलाक, जिसे एक तरफा तलाक भी कहा जा सकता है, दिया गया था और उसमें गुजारा भत्ता शामिल नहीं था। इसकी मांग के लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

तीन तलाक समाप्त होगा

समान नागरिक संहिता के आने से तीन तलाक की प्रथा समाप्त हो जाएगी। जहां मुस्लिम पुरुष द्वारा तीन बार तलाक बोलकर अपनी पत्नी को तलाक दिये जाने का अधिकार है। इस प्रथा से मुस्लिम समुदाय में सबसे अधिक तलाक के मामले देखे जाते हैं। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद तलाक की प्रक्रिया अदालत की कार्यवाही के माध्यम से पूरी की जाएगी।

बहुविवाह का उन्मूलन

मुस्लिम समाज में बहुविवाह एक व्यापक प्रथा है। जहां एक से अधिक महिलाओं से शादी करने की प्रथा है। समान नागरिक संहिता आने से बहुविवाह प्रथा समाप्त हो जाएगी।

तलाक के बाद गुजारा भत्ता

मुस्लिम समाज में तलाक बाद महिलाओं को गुजारा भत्ता नहीं दिया जाता था। शाहबानो मामले के बाद से मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 लाया गया, जिसके माध्यम से महिलाओं को तलाक के बाद 3 महीने का गुजारा भत्ता दिया जाएगा। लेकिन समान नागरिक संहिता के माध्यम से मुस्लिम महिलाओं को अपने जीवनकाल के लिए भरण-पोषण के दावे के अनुमति देगा।

दत्तक ग्रहण (गोद लेना)

हिंदू कानून को छोड़ कर किसी भी अन्य धर्म के व्यक्तिगत कानून के तहत गोद लेने की प्रथा नहीं है। यदि समान नागरिक संहिता लागू की जाती है, तो सभी धर्मों के जोड़ों को बच्चा गोद लेने का अधिकार प्राप्त होगा।

विवाह में अब संविदात्मक बाध्यता नहीं होगी

मुस्लिम विवाह को संविदात्मक दायित्व माना जाता है। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत दोनों पार्टियों के बीच विवाह संपन्न किया जाता है। एक पक्ष प्रस्ताव रखता है और दूसरा पक्ष द्वारा इसे स्वीकार किया जाता है। समान नागरिक संहिता लागू होने से विवाह की प्रथा अनुबंध के रूप में समाप्त हो जाएगी।

deepLink articlesExplainer: क्या है पोषण भी पढ़ाई भी कार्यक्रम? जानिए इसके उद्देश्यों और लक्ष्यों के बारे में

deepLink articlesडर लगता है लेकिन किस चीज से... आज जान लीजिए क्या है Phobia, यहां मिलेगा सबकुछ..

For Quick Alerts
ALLOW NOTIFICATIONS  
For Daily Alerts

English summary
Uniform Civil Code: Uniform Civil Code is not a new law. It is not even a matter of bringing it today. For the last 75 years, efforts are being made to bring the Uniform Civil Code. Recently, the 22nd Law Commission has agreed to re-examine the subject, on the basis of which opinions and recommendations were sought from nationally recognized religious bodies along with public opinion on UCC. Is.
--Or--
Select a Field of Study
Select a Course
Select UPSC Exam
Select IBPS Exam
Select Entrance Exam
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
Gender
Select your Gender
  • Male
  • Female
  • Others
Age
Select your Age Range
  • Under 18
  • 18 to 25
  • 26 to 35
  • 36 to 45
  • 45 to 55
  • 55+