Who is Hockey Player Dhanraj Pillay Biography: हॉकी के जादूगर ध्यानचंद का नाम तो आपने सुना ही होगा। लेकिन क्या आपको पता है कि हॉकी के धुआंधार खिलाड़ी के रूप में कौन पहचाने जाते हैं? हम बात कर रहे हैं हॉकी के शानदार खिलाड़ियों में से एक धनराज पिल्ले की। धनराज पिल्ले भारतीय फील्ड हॉकी खिलाड़ी और भारतीय राष्ट्रीय टीम के पूर्व कप्तान रह चुके हैं। वे कंवर पाल सिंह गिल के बाद भारतीय हॉकी महासंघ की तदर्थ समिति के सदस्य चुने गये। एक खिलाड़ी के रूप में उन्हें भारत के अब तक के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक माना जाता है।
भारत के ऑल टाइम बेस्ट हॉकी खिलाड़ियों में से एक और भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान धनराज पिल्ले को हॉकी खेल के प्रति उनकी असाधारण उत्कृष्टता और समर्पण तथा खेल में उनके प्रयासों के माध्यम से उनके योगदान के लिए वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स द्वारा सम्मानित किया गया। आज उनके जन्म दिवस के अवसर पर आइए जानते हैं धनराज पिल्ले के बारे मे विस्तार से-
कौन हैं धनराज पिल्ले, एक नजर में...
- पूरा नाम: धनराज पिल्ले
- जन्म तिथि: 16 जुलाई, 1968
- जन्म स्थान: खड़की, पुणे, महाराष्ट्र, भारत
- स्थिति: फॉरवर्ड
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भागीदारी: 1989
- ओलंपिक भागीदारी: 1992, 1996, 2000, 2004
- विश्व कप भागीदारी: 1990, 1994, 1998, 2002
- उल्लेखनीय उपलब्धियां: 1998 एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक, 2002 एशियाई खेलों में रजत पदक, 1998 राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक
- पुरस्कार: अर्जुन पुरस्कार (1995), राजीव गांधी खेल रत्न (1999-2000), पद्म श्री (2000)
साधारण परिवार में पले बढ़े धनराज पिल्ले, कैसे बनें हॉकी के दिग्गज प्लेयर?
आज धनराज पिल्लै का जन्मदिवस है। उनका जन्म भारत के महाराष्ट्र के पुणे के पास एक छोटे से शहर खड़की में 16 जुलाई 1968 को हुआ था। हॉकी के धुआंधार खिलाड़ी धनराज पिल्ले एक साधारण परिवार में ताल्लुक रखते हैं और बड़ेही साधारण तरह से उनका लालन-पालन हुआ। उनके पिता नागलिंगम पिल्लै आयुध कारखाने में काम करते थे और उनकी माँ अंदलम्मा पिल्लै गृहिणी थीं। वे पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। हॉकी के प्रति पिल्लै का जुनून छोटी उम्र में ही जग गया था। इसका मुख्य कारण उनके बड़े भाई रमेश पिल्लै थे, जो खुद भी प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी थे।
कितने पढ़े लिखें हैं धनराज पिल्ले?
पिल्ले ने खड़की के यूनियन स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और बाद में पुणे के सेंट जोसेफ हाई स्कूल में दाखिला लिया। अपने बढ़ते हॉकी करियर के कारण, उन्होंने पारंपरिक अर्थों में उच्च शिक्षा हासिल नहीं की, बल्कि खुद को इस खेल में महारत हासिल करने के लिए समर्पित कर दिया।
हॉकी में धनराज पिल्ले ने हासिल की कई उपलब्धिया
अंतर्राष्ट्रीय टीम में जगह: पिल्ले ने 1989 में मात्र 21 वर्ष की आयु में भारतीय राष्ट्रीय टीम में जगह बना लिया।
ओलंपिक में धनराज पिल्ले हुए शामिल: उन्होंने चार ओलंपिक खेलों - 1992 बार्सिलोना, 1996 अटलांटा, 2000 सिडनी और 2004 एथेंस में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
विश्व कप में उपस्थिति: उन्होंने चार विश्व कप - 1990 लाहौर, 1994 सिडनी, 1998 उट्रेच और 2002 कुआलालंपुर में खेला।
चैंपियंस ट्रॉफी: पिल्ले ने 1995 से 2004 तक चैंपियंस ट्रॉफी में भाग लिया।
एशियाई खेल: वे 1998 बैंकॉक एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम और 2002 बुसान में रजत पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा थे।
राष्ट्रमंडल खेल: 1998 में कुआलालंपुर में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में टीम को रजत पदक दिलाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
धनराज पिल्ले के नाम खेल रत्न से लेकर पद्म श्री पुरस्कार
अर्जुन पुरस्कार: हॉकी में धनराज पिल्ले की उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए भारत सरकार द्वारा 1995 में प्रदान किया गया।
राजीव गांधी खेल रत्न: 1999-2000 में भारत का सर्वोच्च खेल सम्मान प्राप्त किया।
पद्म श्री: 2000 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित हुए।
धनराज पिल्ले की खेल शैली और उनका स्टिक वर्क
धनराज पिल्ले अपनी गति और बेहतरीन स्टिक वर्क के लिए जाने जाते थे। वे फॉरवर्ड के रूप में खेलते थे और अक्सर अपनी टीम के लिए प्लेमेकर होते थे। वे स्कोरिंग के अवसर पैदा करने के लिए जाने जाते थे। मैदान पर पिल्ले का नेतृत्व को बेहद महत्व दिया जाता था और साथी खिलाड़ी उनके द्वारा दिये गये निर्देशों का पालन करते थे। धनराज पिल्ले अक्सर युवा खिलाड़ियों का मार्गदर्शन करते थे और टीम का मनोबल बढ़ाते थे।
वर्ष 2004 में धनराज पिल्ले ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी से संन्यास ले लिया। सेवानिवृत्ति के बाद, वे भारत में हॉकी को बढ़ावा देने में सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं। युवा प्रतिभाओं को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न संगठनों और अकादमियों के साथ काम कर रहे हैं। उन्होंने भारतीय हॉकी टीम के मैनेजर के रूप में भी काम किया है।