Teachers Day Article Script: शिक्षक सजग रहना सिखाते हैं। मन में संवेदनाएं भरते हैं। अपने अनुभवों से मिली सीख, सीखने वालों तक पहुंचाते हैं। टीचर्स किसी दूसरे की ग़लती से सबक़ लेने का पाठ भी पढ़ाते हैं। जीवन को व्यवस्थित कर, परिवेश को सहेजने का सबक़ देते हैं। जीवन यात्रा की सार्थकता का इल्म करवाते हैं। संकट में उद्वेलित ना होकर ठहराव और सतर्कता की पगडंडी पकड़ने की बात समझाते हैं। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, समय हमेशा से ही सिखाता रहा है, लेकिन पिछले दिनों उसने पूरी दुनिया को ही अपनी कक्षा बना लिया और एक-से सबक़ सबको सिखाए। टाइम टीचर की इस क्लास से किसी को छुट्टी नहीं थी, कोई छूट नहीं। सबने सीखा, सबने जाना। शिक्षक दिवस पर इस गुरु को नमन। आइये जानते हैं शिक्षक दिवस पर समय से मिली सबको 5 सीख।
लग रहा है न कि यही सब तो टाइम टीचर ने बीते डेढ़ साल में सिखाया-समझाया है! सचमुच, विपत्तिकाल में पूरा संसार ही एक क्लास रूम और समय सबका शिक्षक बन गया। इस क्लास में कई पाठ बेहद कठिन रहे और कई जाने-समझे सबक़ फिर याद किए गए। भूली हुई सहज-सी बातें भी दोहराई गईं और बिलकुल नए चैप्टर भी पढ़े गए। सख़्त टीचर-सा हाथ बांधे खड़ा समय, कितना कुछ सिखाता रहा और पूरा संसार स्तब्ध स्टूडेंट जैसा सब सीखता रहा। ना सवाल ना जवाब, हर विद्यार्थी बस इस तल्ख़ दौर के दिनों को किसी किताब के पन्ने पलटने की तरह बिताता रहा। सीखने के संकटकालीन सफ़र में नियम-अनुशासन की निबाह में फेल होने वाले भी रहे तो सजगता से सीखने वाले जीवन बचाने की इस जंग में अव्वल भी आए। कुल मिलाकर, विपदा के शिक्षक रूपी समय से मिली हर सीख बहुत कुछ सिखा गई।
वक्त से मिले गहरे सबक
वक़्त अच्छा हो या बुरा, कुछ सिखाकर ही जाता है। पीड़ा भी कई पाठ पढ़ाती है। सुख के साथ सीख भी आती है। समय का हर पल समझाइश का एक नया अध्याय खोलता है। कोरोना की वैश्विक आपदा का समय तो अनगिनत इल्म अपने साथ लाया। संभल जाने की चेतावनी भी दी और ग़लतियों पर अपनों को छीनकर सज़ा भी ऐसी दी जो सदा के लिए एक घाव दे गई। महामारी में पीड़ा और परवाह की सोच के मोर्चे पर भी पहली बार इतने कठोर सबक़ सारी दुनिया के हिस्से आए। इस ठहरे दौर में ज़िंदगी रुकी पर वक़्त की क्लास चलती रही। कभी गरम तो कभी नरम अंदाज़ में सबक़ देने वाले हमारे उस्ताद बने इस अरसे में हमारा मन संवेदनाओं के नए चैप्टर पढ़ता रहा, मस्तिष्क भावनाओं से परे, प्रैक्टिकल होने का पाठ समझता रहा।
आपदा में अवसर का पाठ
अध्यापक बने इस अरसे ने विद्यार्थियों को कोई बहाना बनाने की छूट भी नहीं दी। सदैव स्मरण रखने योग्य यह सबक़ रोबदार ढंग से समझाया कि ठहराव में भी ज़िंदगी गतिशील रहनी चाहिए। भावी जीवन की बेहतरी के रास्ते तलाशने की कोशिशें जारी रहनी चाहिए। विपत्ति में अवसर ढूंढने का ऐसा पाठ इस टीचर ने पढ़ाया कि जद्दोजहद कर संकट से जूझने और जीतने के अवसर सदा मौजूद रहते हैं, हमें केवल मेहनत करते रहकर इन्हें तलाशना होता है।
दूसरों की परेशानियों को समझा
यह समय ग़लतफ़हमियां दूर करने वाला भी रहा। जिन देशों की ज़िंदगी परफ़ैक्ट कही जाती थी, वहां के नागरिकों को ख़ुद खाना बनाने में भी उलझन हुई। वे सुविधासंपन्न घरों में रहकर भी ऊब गए जबकि भारतीय रसोई कमियों में भी ख़ूब चली। हमने अपनी ही नहीं औरों की आर्थिक परेशानियों को भी समझा। एक-दूजे की मदद करने का नज़रिया मिला। समय से मिले सबक़ से ही दुनियाभर के समाचारों को जानने में रुचि भी ली, अपनी सीमाएं भी समझीं।
प्रक्रति पर सबका हक
सांस का आना-जाना भी कोई ध्यान देने वाली बात है? हां है- उखड़ती सांसों और ऑक्सीजन की कमी के संकट के दौर में समय ने बहुत कड़ा संदेश देकर हर विद्यार्थी का ध्यान इस ओर खींचा। वक़्त से मिले सबक़ का असर देखिए कि एक डॉक्टर ने प्रिसक्रिप्शन में ही आने वाली पीढ़ियों की सांसों को सहेजने वाला काम करने की सलाह दे डाली। महाराष्ट्र के लोनावला में एक डॉक्टर ने मरीज़ के पर्चे ही लिख दिया कि जब तुम ठीक हो जाओगे तो एक पेड़ लगाना तो कभी ऑक्सीजन की कमी नहीं होगी। जाने क्यों और कब इंसान यह समझने लगा कि धरा पर जो कुछ भी है, उसे मनचाहे ढंग से बनाने और बिगाड़ने का हक़ उसके पास है। जबकि हम प्रकृति का एक हिस्सा भर हैं। अध्यापक बनी इस आपदा ने समझाया कि हम अपने ही अस्तित्व की नींव पर चोट कर रहे हैं।
निकला नया रास्ता
भागती-दौड़ती दुनिया को समय ने कड़क टीचर बन मानो यह आदेश दिया कि बहुत हुई मनमानी अब ज़रा बंधकर रहो। थमकर चलो। ठहरकर सोचो। ज़रा अपनी ज़िंदगी भी टटोलो। इन गुरुजी ने पाठ हमारे हिस्से किए कि आपाधापी को जीने वाले घर में ठहर गए और घर तक सिमटी ज़िंदगी को रफ़्तार मिल गई। कोई क्या चाहता है, इन परिस्थितियों में कितना सहज-असहज है- कुछ ना पूछा उस्ताद बने वक़्त ने। सिखाया तो बस यह कि तमाम मुश्किलात होने के बावजूद जीया जा सकता है। नियमों के पालन की आनाकानी हमेशा बच निकलने का रास्ता नहीं देती। इस अनदेखी की कठोर सज़ा भी मिलती है। जिन देशों के नागरिकों ने वक़्त के दिशा-निर्देश नहीं माने, उनके हिस्से में सबक़ भी कड़े आए। जो लोग मनमानी करते रहे, वे अपने लिए ही नहीं अपनों के लिए भी ख़तरा बने।
अर्थव्यवस्था व सेहत
अर्थ संबंधी मामलों से अमूमन आम जन दूर रहते हैं। उनकी सोच केवल उनकी जेब और उनके ख़र्चों तक ही सीमित रही है लेकिन महामारी के दौर में बंद हुए बाज़ार, इसके देश व विश्वव्यापी असर तथा दूसरों के संकट को समझने की सीख भी मिली।