Speech On Savitribai Phule Essay Teachers Day 2023 भारत में शिक्षक दिवस डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के रूप में मनाया जाता है। भारत में पहली बार राष्ट्रीय शिक्षक दिवस 5 सितंबर 1962 को मनाया गया। शिक्षक के बिना एक अच्छे करियर की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। लेकिन क्या आप जानते हैं भारत की पहली महिला शिक्षिका कौन थी? भारत की पहली महिला शिक्षका का नाम सावित्रीबाई फुले था। सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं को शिक्षा के प्रति जागरूक करने का कार्य किया। शिक्षक दिवस पर आज हम सावित्रीबाई फुले के जीवन के बारे में जानेंगे। यदि आप शिक्षक दिवस पर भाषण के लिए किसी टॉपिक का चयन कर रहे हैं तो आप सावित्रीबाई फुले पर भाषण लिख व पढ़ सकते हैं। यह काफी अलग और छात्रों के लिए प्रेरणादायक होगा। तो आइये जानते हैं सावित्रीबाई फुले पर भाषण कैसे लिखें।
सावित्रीबाई फुले पर भाषण | Speech On Savitribai Phule Essay
मंच पर मौजूद सभी आतिथि गण का स्वागत करें और उन्हें प्रणाम करें
अपना परिचय दें और फिर भाषण शुरू करें?
यहां मौजूद सभी अतिथियों और शिक्षकों को मेरा प्रणाम
साथियों आज हम सब यहां शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में मौजूद हुए हैं। वैसे तो यह दिन भारत के माहन शिक्षक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को समर्प्ती है। लेकिन महिलाओं को शिक्षा के लिए प्रेरित करनी वाली भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की कहानी आपको पता होना जरूरी है। सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव गांव में हुआ था। उनका जन्मस्थान शिरवल से लगभग पांच किमी दूर था। सावित्रीबाई फुले मां लक्ष्मी और पिता खंडोजी नेवासे पाटिल की सबसे बड़ी बेटी थीं, वह माली समुदाय से ताल्लुक रखती थीं। सावित्रीबाई और जोतिराव की अपनी कोई संतान नहीं थी। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने एक ब्राह्मण विधवा के पुत्र यशवंतराव को गोद लिया था। हालांकि, इसका समर्थन करने के लिए अभी तक कोई मूल प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
सावित्रीबाई फुले के जीवन परिचय की बात करें तो, सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका थीं। उन्होंने भारत में समाज सुधारक, गर्भपात विरोधी, शिक्षिका और कवि के रूप में भी काम किया। वह महाराष्ट्र क्षेत्र से ताल्लुक रखती थीं। सावित्रीबाई फुले का प्रारंभिक जीवन काफी कठनाइयों से भरा हुआ था। वर्ष 1981 में सावित्रीबाई फुले का जन्म हुआ, उनका जन्मस्थान नायगांव था, जो महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित है। जब वह नौ साल की थीं, तब उनके माता-पिता ने उनकी शादी ज्योतिराव फुले से कर दी, जो उनसे दो साल बड़े थे। वह अपने विवाहित जीवन को धीरे-धीरे चला रही थीं, लेकिन उनके अपना कोई बेटा नहीं था, फिर कुछ साल बाद उन्होंने एक ब्राह्मण विधवा के बेटे यशवंतराव को गोद लिया।
सावित्रीबाई फुले का करियर की बात करें तो, शादी और बच्चा गोद लेने के कुछ वर्षों के बाद, महात्मा ज्योतिराव फुले ने वर्ष 1848 में लड़कियों के लिए स्कूलों की शुरुआत की। सावित्रीबाई एक भाग्यशाली महिला थीं, उन्होंने महात्मा फुले से शादी इसलिए की, क्योंकि वह महिलाओं के प्रति हो रहे अनन्य के खिलाफ थे। महात्मा ज्योतिराव फुले ने अपनी पत्नी को पढ़ना और लिखना सिखाया। उनके इस प्रयास से वह अपने समय की अद्वितीय महिला गई, क्योंकि उस समय में लड़की की शिक्षा को कोई महत्व नहीं दिया जाता था। सावित्रीबाई फुले हमेशा से महिलाओं की इस स्थिति को बदलना चाहती थीं, उन्होंने अन्य लड़कियों को शिक्षा देने का विचार किया और और लड़कियों को पढ़ना शुरू किया, इस तरह वह भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं।
थोड़े समय बाद सावित्री बाई फुले ने अपने पति की मदद से पुणे के भिड़ेवाड़ा में लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला। सावित्रीबाई और ज्योतिबा फुले ने अपने पूरे जीवन में लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले। बाल विवाह के कारण उस दौरान लड़की-लड़के की शादी में काफी अंतर होता था। जिसकी वजह से लड़कियां बहुत कम उम्र में विधवा हो जाती थीं। बाल विधवा को अपना सिर मुंडवाने के लिए मजबूर किया जाता था और उनका यौन शोषण भी किया जाता था। सावित्रीबाई ने उनके साथ हो रहे सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। दोनों पति पत्नी ने विधवाओं की देखभाल के लिए केंद्र खोला और गर्भवती विधवाओं को रूढ़िवादी समाज से बचाने के लिए अथक प्रयास किए। उन्होंने विधवाओं की देखभाल के लिए अपने ही घर में केयर सेंटर खोल दिया था। उन दिनों छुआछूत जैसे सामाजिक कुरीतियों के कारण कई महिलाओं को अपनी जान देनी पड़ी। सावित्रीबाई ने महिलाओं के लिए एक अलग से कुआं भी खुदवाया, ताकि उनक लोगों को पानी की कोई समस्या न हो।
सावित्रीबाई फुले की पढ़ाई की बात करें तो, सावित्रीबाई फुले बालिकाओं के साथ होने वाले भेदभाव के खिलाफ एक कविता लिखती थीं। उन्होंने काव्या फुले और भवन काशी सुबोध रत्नाकर दो पुस्तकें थीं, जो दुनिया भर में प्रकाशित हुईं। सावित्रीबाई फुले का निधन महामारी प्लेग फैलने के कारण हुआ था, दरअसल, सावित्रीबाई ने अपने पुत्र यशवंतराव के साथ प्लेग से बीमार लोगों के लिए एक क्लिनिक खोला। जब सावित्रीबाई पीड़ित रोगी की सेवा कर रही थी, वह इस बीमारी से संक्रमित हो गई और 10 मार्च 1987 को उनका निधन हो गया। अपना पूरा जीवन समाज और देश के लिए समर्पित करने वाले ऐसी महिला को को शत शत नमन।