"सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़तिल में है" ये पक्तियां तो हम सभी ने सुनी ही है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश शासन के खिलाफ युद्ध में नारा बन गई थी। बता दें कि ये पंक्तियां राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा लिखी गई एक कविता से ली गई है जो कि सदा के लिए अमर हो चुकी है।
राम प्रसाद बिस्मिल एक प्रतिभाशाली कवि थे, जिन्होंने राम, अज्ञेय और बिस्मिल के नाम से उर्दू और हिंदी में कविताएं लिखते थे। वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (जो हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन बन गया) के संस्थापक सदस्य भी थे, जिनके अधिक लोकप्रिय क्रांतिकारी सदस्य भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद थे।
कौन थे राम प्रसाद बिस्मिल?
राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून, 1887 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम मुरलीधर और माता का नाम मूलमती था। एक बच्चे के रूप में, बिस्मिल ने उन क्रूर अत्याचारों को देखा था जो ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन ने भारतीयों पर थोपे थे। जिसके बाद वे गहराई से प्रभावित हुए और क्रांतिकारी आदर्शों की ओर झुकाव करने लगे। उन्होंने आग्नेयास्त्र चलाने की कला में भी महारत हासिल की थी और फिर बंगाली क्रांतिकारियों सचिंद्र नाथ सान्याल और जादूगोपाल मुखर्जी के साथ मिलकर उत्तर भारत में एक क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) की स्थापना की, जिसने भारत को ब्रिटिश शासन की बेड़ियों से मुक्त करने की कसम खाई थी।
बिस्मिल ने अपनी देशभक्त मां, मूलमती से अपनी किताबें, 'देशवासियों के नाम', 'स्वदेशी रंग', 'मन की लहर' और 'स्वाधीनता की देवी' लिखने और प्रकाशित करने के लिए पैसे उधार लिए, ताकि जनता का ध्यान उनकी ओर आकर्षित किया जा सके। बिस्मिल क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम के अन्य प्रमुख शख्सियतों जैसे अशफाकउल्लाह खान, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी से मिले और उनके करीबी दोस्त बन गए थे।
बिस्मिल ने चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह जैसे गतिशील युवाओं को एचआरए की तह में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) बन गया। दरअसल, बिस्मिल ने ही चंद्रशेखर आजाद को उनकी चपलता, बेचैनी और नए विचारों के लिए हमेशा उत्साहपूर्वक रहने के सम्मान में 'क्विक सिल्वर' नाम दिया था।
बिस्मिल ने अशफाकउल्लाह खान के साथ एक समान विचारधारा, आदर्श और गहरी देशभक्ति साझा की। वे एक साथ रहते थे, एक साथ काम करते थे और हमेशा एक-दूसरे का साथ देते थे। अपनी आत्मकथा में, बिस्मिल ने एक पूरा अध्याय अशफाकउल्लाह खान के नाम समर्पित किया है। दोनों ने 1925 की प्रसिद्ध काकोरी ट्रेन डकैती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
राम प्रसाद बिस्मिल को कब और क्यों लटकाया गया फांसी पर?
काकोरी ट्रेन डकैती ने ब्रिटिश शासकों की जड़ें हिला दी थी और औपनिवेशिक अधिकारियों ने हमले के एक महीने के भीतर बिस्मिल सहित करिब 24 से अधिक एचआरए सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया था। जिसके बाद राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्लाह खान, रोशन सिंह और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को मौत की सजा सुनाई गई और उन्हें अलग-अलग जेलों में भेज दिया गया। जबकि अन्य एचआरए सद्स्यों को जेल में कैदी के रूप में रहने की सजा सुनाई गई।
लखनऊ सेंट्रल जेल के बैरक नंबर 11 में रहने के दौरान, बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा (1928 में पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा प्रकाशित) लिखी, जिसे आज भी हिंदी साहित्य की बेहतरीन कृतियों में से एक माना जाता है। यहीं पर उन्होंने एक ऐसा गीत प्रस्तुत किया जो स्वतंत्रता पूर्व युग के सबसे प्रतिष्ठित गीतों में से एक बन गया। गाना है "मेरा रंग दे बसंती चोला"।
19 दिसंबर, 1927 को जह हिंद शब्दों के साथ बिस्मिल को फांसी पर लटका दिया गया था। फांसी पर चढ़ने से पहले बिस्मिल ने अपनी मां को अपना अंतिम पत्र लिखा। उनका अंतिम संस्कार राप्ती नदी के तट पर किया गया था। कहा जाता है कि बिस्मिल को ये मालूम था कि वो अपने इस जन्म में जीवित रहते स्वतंत्र भारत को नहीं देख पाएंगे। जिसके लिए उन्होंने फिर से अपनी मातृभूमि की सेवा करने के लिए पुनर्जन्म की कामना करते हुए एक कविता लिखी थी।