2024 में साल का आखिरी चंद्र ग्रहण 18 सितंबर को लगेगा। यह एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना होगी, जिसे लेकर धार्मिक और ज्योतिषीय दोनों दृष्टिकोण से काफी महत्व है। खासतौर पर यह चंद्र ग्रहण उस समय लगेगा जब पितृपक्ष चल रहा होगा और श्राद्ध पूर्णिमा के करीब होगा। इस दिन के धार्मिक महत्व के कारण इसे और भी विशेष माना जा रहा है।
आइए, इस लेख में विस्तार से जानें कि 18 सितंबर को लगने वाला चंद्र ग्रहण कब और कहां दिखेगा और पितृपक्ष श्राद्ध पूर्णिमा का क्या धार्मिक महत्व है।
चंद्र ग्रहण 2024 कब और कहां दिखेगा?
इस साल का आखिरी चंद्र ग्रहण 18 सितंबर 2024 को लगेगा। यह ग्रहण भारत के अलावा एशिया, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में देखा जा सकेगा। भारतीय समयानुसार, ग्रहण शाम को शुरू होगा और रात तक चलेगा। इसके अलावा, यह आंशिक चंद्र ग्रहण होगा, जिसका अर्थ है कि केवल चंद्रमा का कुछ हिस्सा पृथ्वी की छाया में आएगा।
यह ग्रहण उन लोगों के लिए भी खास होगा, जो ज्योतिषीय दृष्टिकोण से ग्रहणों का महत्व समझते हैं। चंद्र ग्रहण से चंद्रमा की ऊर्जा प्रभावित होती है, और यह व्यक्ति की मानसिक स्थिति और भावनाओं पर भी असर डालता है। ज्योतिष के अनुसार, इस ग्रहण का प्रभाव विभिन्न राशियों पर अलग-अलग होगा। खासकर मकर और कर्क राशि वालों के लिए यह ग्रहण विशेष महत्व रखता है।
पितृपक्ष और श्राद्ध पूर्णिमा का महत्व
पितृपक्ष: पूर्वजों की आत्मा की शांति का समय
हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। यह 16 दिनों का समय होता है, जिसे श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विभिन्न धार्मिक कर्मकांड करते हैं। पितृपक्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में पड़ता है, जो आमतौर पर सितंबर-अक्टूबर के बीच आता है। इस समय लोग तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करते हैं, ताकि उनके पूर्वजों की आत्माएं प्रसन्न हों और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सके।
पितृपक्ष में किए गए श्राद्ध कर्म को बेहद पवित्र माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान हमारे पितृ यानि पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने परिवार के लोगों से आशीर्वाद लेने आते हैं। वे इस दौरान अपने परिवार के लोगों से भोग और तर्पण की अपेक्षा रखते हैं, और अगर परिवारजन उनकी आत्मा की शांति के लिए सही विधि से कर्म करते हैं, तो उन्हें आशीर्वाद मिलता है।
श्राद्ध पूर्णिमा: पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने का दिन
पितृपक्ष की समाप्ति श्राद्ध पूर्णिमा के साथ होती है, जिसे 'महालय अमावस्या' भी कहा जाता है। यह दिन उन लोगों के लिए खास होता है, जिन्होंने पितृपक्ष के दौरान किसी कारणवश श्राद्ध नहीं किया हो। श्राद्ध पूर्णिमा के दिन तर्पण और पिंडदान करके पूर्वजों की आत्मा को तृप्त किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किया गया श्राद्ध सभी पूर्वजों तक पहुँचता है, और उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
श्राद्ध पूर्णिमा को लेकर एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि इस दिन पितरों को संतुष्ट करने से वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं, जिससे परिवार में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है। इस दिन किए गए तर्पण और दान को पवित्र और लाभकारी माना जाता है।
चंद्र ग्रहण और पितृपक्ष का संबंध
18 सितंबर को लगने वाला चंद्र ग्रहण पितृपक्ष के दौरान हो रहा है, जिससे इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है। ऐसा माना जाता है कि ग्रहण काल में किसी भी प्रकार के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। खासकर श्राद्ध कर्म और पूजा-पाठ से बचना चाहिए। ग्रहण के समय ध्यान, जाप और ध्यान करने से विशेष लाभ होता है, लेकिन इस दौरान भोजन करने, पानी पीने और अन्य दैनिक कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है। ग्रहण काल में पवित्रता का ध्यान रखना बेहद आवश्यक होता है, क्योंकि यह समय नेगेटिव ऊर्जा का होता है।
ग्रहण समाप्त होने के बाद, स्नान करके पवित्र जल से शुद्धिकरण करना जरूरी होता है। इसके बाद ही श्राद्ध कर्म किया जाना उचित माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, ग्रहण के दौरान किए गए तर्पण और पिंडदान का उतना अच्छा फल नहीं मिलता है, इसलिए ग्रहण समाप्त होने के बाद ही इन कर्मों को करने की सलाह दी जाती है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से चंद्र ग्रहण का प्रभाव
ज्योतिष में चंद्र ग्रहण का विशेष महत्व होता है, क्योंकि चंद्रमा हमारी भावनाओं, मनोदशा और मानसिक स्थिति पर सीधा प्रभाव डालता है। इस ग्रहण का विभिन्न राशियों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ेगा। विशेष रूप से मकर और कर्क राशि वालों के लिए यह ग्रहण कुछ कठिनाइयाँ और मानसिक उलझनें ला सकता है। ऐसे में ज्योतिषी सलाह देते हैं कि इस दौरान मानसिक शांति बनाए रखें और अनावश्यक तनाव से बचें। ध्यान और प्राणायाम जैसे साधन ग्रहण के समय मानसिक शांति प्रदान कर सकते हैं।
इसके अलावा, जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा कमजोर होता है, उन्हें विशेष ध्यान रखना चाहिए। ग्रहण काल में चंद्रमा की स्थिति प्रभावित होती है, जिससे उनकी मानसिक स्थिति पर असर पड़ सकता है।
कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि 18 सितंबर 2024 को लगने वाला चंद्र ग्रहण और पितृपक्ष का मेल धार्मिक और खगोलीय दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। पितृपक्ष के दौरान किए गए श्राद्ध कर्म हमारे पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए होते हैं, और इस ग्रहण के दौरान इन कर्मों को करने से बचने की सलाह दी जाती है। ग्रहण के बाद ही इन कर्मों को करना उचित माना जाता है। धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से इस दिन का महत्व काफी अधिक है, और यह समय आध्यात्मिकता और धार्मिक कर्मकांडों में ध्यान केंद्रित करने का है।