Janmashtami Speech In Hindi जन्माष्टमी पर भाषण: भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में भाद्रपद महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। कृष्ण देवकी और वासुदेव के पुत्र थे। जब कृष्ण का जन्म हुआ, मथुरा पर उनके चाचा राजा कंस का शासन था। भगवान श्री कृष्ण के जन्म से पहले ही राजा कंस को पता था कि उसकी मृत्यु भगवान कृष्ण के द्वारा होगी, इसलिए उसने अपनी बहन देवकी के 7 पुत्रों को मार दिया। लेकिन जब उन्होंने आठवें पुत्र को मारना चाहा तो ये संभव नहीं हो पाया। जब दुष्ट राजा ने बच्चे को मारने की कोशिश की, तो वह देवी दुर्गा में परिवर्तित हो गई और आकाशवाणी हुई की तेरा अंत करने के लिए कृष्ण का जन्म हो चुका है। इस तरह कृष्ण वृंदावन में पले-बढ़े और अंत में अपने चाचा कंस का वध कर दिया। आइए जानते हैं भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव जन्माष्टमी पर भाषण कैसे लिखें या पढ़ें।
निम्बार्क व गौड़िया परम्पराओं को मानने वाले राधा को कृष्ण की तुलना में अधिक सम्मानजनक स्थान देते हैं और इस संदर्भ में अक्सर उस घटना का उल्लेख करते हैं जब कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनकी या छोटी उंगली पर उठाया था। दरअसल, वर्षा के देवता इंद्र को गुस्सा आ गया था कि लोग उनकी पूजा का विरोध कर रहे थे, इसलिए उन्होंने अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए ऐसी मूसलाधार बारिश करनी शुरु की जिसमें किसी का बच पाना संभव न था। इस कहर से लोगों को सुरक्षित रखने के लिए कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। इस प्रकार पर्वत की शरण में आकर इंसान व जानवर इंद्र के गुस्सा यानी बारिश के कहर से बच सके।
कृष्ण के इस चमत्कार से गोप व गोपियां बहुत प्रसन्न हुए और वह कृष्ण का गुणगान करने लगे। उनकी तरफ शरारत से आंख मारते हुए कृष्ण ने कहा कि देखा मैंने तुम सबको केवल अपनी एक उंगली से ही सुरक्षित कर दिया है। उसी समय राधा कृष्ण की तरफ बनावटी गुस्से से देखती हैं और घोषणा करती हैं कि वह पर्वत की छाया से बाहर निकलकर जा रही हैं। राधा के ऐसा कहते ही पर्वत खतरनाक ढंग से एक तरफ को झुकने लगता है जिससे हर कोई डर जाता है। चारों तरफ हाहाकार मच जाता है और तब कृष्ण राधा से आग्रह करते हैं कि रुको राधे! मैं तो सिर्फ मजाक कर रहा हूं। तुम्हारी ऊर्जा के बिना मैं इस पर्वत को नहीं उठा सकता। यह तुम हो जिसने इस पर्वत को उठाया है। तुम मेरी ऊर्जा हो। कृपया मत जाओ।
राधा के भक्त कहते हैं कि गोकुल का शरारती माखन चोर कृष्ण इतना हृदयविहीन है कि वह पहले उनसे उनके सभी सहारे छीन लेता है और जब उनके हृदय प्रत्येक इच्छा व महत्वाकांक्षा से खाली हो जाते हैं तो वह उनके हृदय को भी चुरा लेता है। इसलिए कृष्ण से बड़ा कोई 'चोर' नहीं है। लेकिन राधा कृष्ण से भी बाजी मारने में सक्षम हैं, इसलिए वह कृष्ण का ही दिल चुरा लेती हैं। हमारे मौहल्ले में जो राधा-कृष्ण मंदिर है उसमें हर साल बरसाना और गोकुल के माहौल को फिर से दोहराने का सफल प्रयास किया जाता है। हमारे बुजुर्ग आपस में मिलकर बैठते हैं यह चर्चा करने के लिए कि कृष्ण को राधारानी का पीछा करने से कैसे रोका जाए? सवेरे के समय बरसाना व गोकुल के गोसाईं, दोनों रत्नों के जन्म की चर्चा करते हैं कि किस प्रकार उनके अपने अपने गांवों में इन दोनों रत्नों ने जन्म लिए हैं। साथ ही इनके भविष्य के संदर्भ में भी भविष्यवाणी की जाती है।
एक गोसाईं राधा के पिता वृषभानु की भूमिका अदा करता है और बताता है कि किस तरह उसने एक नवजात कन्या को यमुना में कमल की बड़ी पत्ती पर तैरते हुए पाया। जब वह यह सोच रहा था कि इस कन्या का क्या किया जाए तभी ब्रहमा और नारद प्रकट हुए और उन्होंने भानु को बताया कि यह दैविक कन्या उसके पूर्व जन्मों की तपस्या का फल है। यह सुनकर अन्य गोसाईं प्रसन्न होते हैं कि उनका गांव दैविक योजना का हिस्सा बन गया है। वर्षों बाद बरसाना के गोसाईं शिकायत करते हैं कि उनकी सुंदर राधा के लिए कृष्ण एक बहुत बड़ी मुसीबत बन गए हैं। कृष्ण हर रोज उनके गांव आते हैं कभी मनिहार यानी चूड़ी बेचने वाले के भेष में तो कभी गांव के वैद्य के रूप में। केवल इसलिए कि उन्हें राधा के नाजुक हाथों को पकड़ने का अवसर और राधा को देखने का मौका मिल जाए। राधा की सखियां कृष्ण को भगाने का प्रयास करती हैं, लेकिन कृष्ण हर बार उन्हें बेवकूफ बना देते हैं। गोसाईं शिकायत करते हैं कि राधा का पीछा करते समय कृष्ण मक्खन भरी मटकियों को तोड़ते हैं और अपने गोपों व बंदरों की टोलियों से ग्रामीणों को परेशान करते हैं।
लेकिन दूसरी ओर गोकुल के गोसाईं कृष्ण का जबरदस्त बचाव करते हैं और गर्व से कहते हैं कि रोजाना यशोदा के घर के सामने लड़कियों के परिजन कतार लगाते हैं ताकि काले रंग के कान्हा के लिए विवाह का प्रस्ताव दे सकें। इसलिए गोकुल के गोसाईं सवाल करते हैं तो फिर कृष्ण अपने से उम्र में बड़ी लड़की (राधा) का पीछा क्यों करेंगे। उन्होंने सुन रखा है कि राधा कृष्ण से 11 दिन या संभवतः कुछ वर्ष बड़ी हैं। बरसाना के गोसाईं गुस्से में भड़कते हैं कि गोकुल का बेबाक ग्वाला हमेशा अकेला या कुंवारा ही रह जाएगा। यशोदा को रोता हुआ देखकर, राधा की मां किराती गोसाइंयों से आग्रह करती हैं कि वह उनके बच्चों के भविष्य के बारे में चर्चा करना बंद कर दें। यशोदा को दिलासा देते हुए किराती उनसे कहती हैं कि वह खुशी खुशी अपनी बेटी की शादी कृष्ण से कर देंगे। बदले में यशोदा वायदा करती हैं कि वह अपने बच्चे को शांत स्वभाव का बनाएंगी। यशोदा को राहत मिलती है कि उनके लड़के को दुल्हन मिल जाएगी।
बरसाना गांव का एक बुजुर्ग किराती को सावधान करता है कि हृदयविहीन कृष्ण से वह अपनी नाजुक बेटी राधा की शादी करके उसे नुकसान पहुंचाएगी। राधा एक राजकुमारी है इसलिए उसे वर के तौरपर एक सुंदर व रईस राजकुमार मिलना चाहिए, ऐसा वह बुजुर्ग राधा की मां से कहते हैं। जन्माष्टमी से लेकर राधाष्टमी तक वातावरण में दैविक प्रेेम ही बसा रहता है। पूरा माहौल अंतरंग-शक्ति से भरा रहता है। केवल प्रेम भक्ति से ही कोई व्यक्ति राधा और कृष्ण की लीला का आनंद ले सकता है। बिना किसी स्वार्थ के विधि भक्ति का पालन करने के बाद जीव के भीतर खामोश सकारात्मक परिवर्तन उत्पन्न होता है और वह प्रेम भक्ति की ओर अग्रसर होता है, लेकिन इस बदलाव में कई जन्म भी लग सकते हैं। जब कृष्ण को अपने प्रेम की शुद्धता का अहसास होता है तो वह उसे कसकर पकड़ लेते हैं और उसका आनंद उठाते हैं।
सांसारिक मोहमाया को त्यागने और अपने अपने गुरुओं की कृपा से चैतन्य महाप्रभु, रूपा गोस्वामी और जीवा गोस्वामी, जो गौड़िया वैष्णव परम्परा के महान संत हैं, राधा-कृष्ण के मधुर भाव की परिकल्पना करने में सफल हो सके थे और उन्होंने लीला को ऐसे देखा जैसे कि वह फिल्म देख रहे हों। इन महान संतों का कहना है कि पुरूष और प्रकृति की दैविक एकता को उसी समय समझा जा सकता है जब आप निःस्वार्थ और मुक्तिप्राप्त किए हुए व्यक्ति हों। राधा-कृष्ण को कभी अलग नहीं किया जा सकता जैसे पुरूष अपना विस्तार करता है अपने लिए आनंद (राधा) उत्पन्न करने के लिए, इसलिए वह दो नहीं बल्कि एक हैं। यही अद्वैतवाद हैं। अगर आप कृष्ण और राधा को अलग अलग समझते रहेंगे तो इसका अर्थ है कि आप मोह माया में फंसे हुए हैं। लेकिन जिस समय आप कृष्ण-राधा की परिकल्पना एक के रूप में करते हैं तो आपको यह पूरी लीला समझ मंे आ जाती है और तभी आप इसका आनंद ले पाते हैं।