Daughters Day Speech 2022: सितंबर महीने के चौथे रविवार को भारत में बेटी दिवस मनाया जाता है। बेटी दिवस 2022 में 26 सितंबर को मनाया जा रहा है। 11 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। बेटी दिवस पर भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। बेटी दिवस पर भाषण लिखना और पढ़ना किसी कला से कम नहीं होता, लेकिन इसके लिए सही जानकारी होना अति आवश्यक है। करियर इंडिया बेटी दिवस पर भाषण आईडिया ड्राफ्ट लेकर आया है। जिसकी मदद से आप बेटी दिवस पर भाषण लिख व पढ़ सकते हैं।
बेटी दिवस पर भाषण | Speech On Daughters Day
घर में किसी को कोई तकलीफ हुई, परिवार पर कोई संकट आया, बेटियां विचलित हो जाती हैं। अपनों की तकलीफों को दूर करने के लिए, उनकी खुशी के लिए हर मुमकिन कोशिश करती है। बेटियां परिवार में ही नहीं समाज में भी कोई विपदा आने पर अपनी महत्व भूमिका निभाती है। अब तो बेटियां अंतरराष्ट्रीय जगत में देश का गौरव बन रही है। साबित कर रही है कि वे किसी से कम नहीं है। बेटियां कैसी-कैसी मिसाल कायम कर रही हैं, कैसे हमारी ताकत है। अंतरराष्ट्रीय बेटी दिवस पर घर परिवार देश समाज में बेटियों के महत्व पर एक नजर।
बचपन से लेकर सयाने होने तक बेटियां अपनों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरती रहती हैं। उनके होने से घर में रौनक रहती हैं। बेटियां घर आंगन की खुशियां होती हैं। घर में कोई संकट आ जाए तो बेटियों के रहते ज्यादा समय तक ठहरता नहीं। क्योंकि वह हर मुश्किल घड़ी में अपनों के साथ खड़ी हो जाती है। बेटियां अपनों का संबल बनती है। उनका प्यार, भरोसा, माता पिता और भाई की एक ताकत बनती है। ऐसे में किसी भी संकट को दूर होते देर नहीं लगती। साथी अपनी उपलब्धियों से भी बेटियां अपनों के जीवन को खुशियों से भर देती है। बेटी दिवस उनकी इसी भूमिका, उपलब्धियों को याद करने का दिन है। सिर्फ इस दिन नहीं हर दिन बेटियों की अहमियत को स्वीकारना चाहिए, क्योंकि उनसे ही घर-आंगन रोशन होता है।
बेटियों से अपनों की पीड़ा दुख देखा नहीं जाता। हर संभव प्रयास करती है कि अपनों का संबल बने, उनकी तकलीफ हो तो दूर करें। कोरोना के संकट काल में बेटियों ने अपनों की परेशानियों को कम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसे में कई उदाहरण हम अपने आसपास देख सकते हैं, जब बेटियों ने अपने परिवार की समस्याओं का समाधान किया। कोरोना संक्रमण की शुरुआत में एक बेटी ज्योति कुमारी अपने बीमार पिता को साइकिल पर गुरुग्राम से बिहार तक ले आई। इस बेटी के हौसले ने सबको हैरान कर दिया था। कुछ इस तरह उड़ीसा के कटक की रहने वाली एक कॉलेज छात्रा विष्णु प्रिया अपने परिवार का संबल बनी। दरअसल उसके ड्राइवर पिता की नौकरी कुछ महीनों पहले ही लॉकडाउन के चार कारण चली गई थी। विष्णु प्रिया ने घर की आर्थिक जिम्मेदारी संभाली। वह नामी फूड डिलीवरी एप के लिए के लिए खाना डिलीवर करने का काम करने लगी। इस काम के लिए बाइक चलाना भी विष्णु प्रिया ने सीखा। ऐसी कई मिसाले कोरोना काल में देखने सुनने को मिली, जहां संकटकाल में बेटियां अपनों का संबल बनी हैं। बेटियां सिर्फ अपने परिवार के सदस्यों को लेकर ही संवेदनशील नहीं होती, वह जहां भी किसी को दुखी परेशान देखती है, मदद के लिए हाथ थामती की है। वे पूरे समाज को अपने परिवार मानती है, अपनी सामर्थ्य अनुसार मदद करने के लिए आगे आती है।
हमारे समाज और परिवार में परंपराओं के निर्वहन से लेकर संबंधों को मजबूत बनाने में सबसे अहम भूमिका महिलाओं की होती है। माताएं अपनी बेटियों को रीति रिवाज, तीज त्यौहार से जुड़ी परंपराओं का महत्व समझाती रहती हैं। बेटियां भी इस बात का महत्व समझते हुए, अपनी उत्सवधर्मी संस्कृति को आगे बढ़ाती है। इसी तरह मायके से ससुराल आने के बाद भी दोनों घरों के बीच संबंध की कड़ी को बेटी ही मजबूत करती है। किसी सेतु की तरह दोनों परिवारों को जोड़ कर रखती है। ससुराल में वे अपने रिश्तो को हमेशा सहेजती है, परिवार की खुशहाली के लिए क्या-क्या नहीं करती। बेटियों के इस प्रयासों के कारण ही परिवार और समाज जैसी संस्थाएं टिकी हुई हैं।
आज बदलते समाज के साथ बेटियां परिवार, समाज को गर्व करने का अवसर भी दे रही है। बोर्ड एग्जाम से लेकर यूपीएससी की सभी परीक्षाओं में टॉप करने की बात हो या खेल के मैदान में दमखम दिखाना हो, सब जगह उन्होंने अपनी क्षमता का परिचय दिया है। इस साल भी सीबीएसई की दसवीं बोर्ड परीक्षाओं में लड़कियों का ओवरऑल पास परसेंटेज 99.24 रहा वहीं 12वीं का पास परसेंटेज 99.37 रहा है। कई सालों से यूपीएससी की परीक्षाओं में टॉप करने वाली लड़कियों ने साल 2020 में भी टॉप 10 में अपने लिए जगह बनाई। इसी तरह हाल ही में हुए टोक्यो ओलंपिक और पैरा ओलंपिक में भारत की बेटियों ने देश का नाम रोशन किया। तमाम अभावों और संघर्षों को पार करके टोक्यो में मीराबाई चानू ने सिल्वर मेडल जीता। मणिपुर की मीराबाई चानू अपने गांव से कोचिंग सेंटर 50 किलोमीटर का सफर साइकिल से तय करती थी। उनकी राह में आर्थिक समस्या भी बहुत थी, क्योंकि परिवार बहुत संपन्न नहीं था। लेकिन मीराबाई चानू ने अपने सपने को छोड़ा नहीं, आगे बढ़ती रहीं। उन्होंने टोक्यो में मेडल जीत कर दिखाया। ओलंपिक में वूमेन बॉक्सिंग में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली असम की लवलीना बोरगोहेन की कहानी संघर्ष से भरी हुई है। पिता छोटे व्यापारी हैं, इसलिए लवलीना को भी आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा। लेकिन वह भी हारी नहीं और अपने माता-पिता ही नहीं देश का मस्तक भी ऊंचा किया। वहीं वूमेन सिंगल बैडमिंटन में पीवी सिंधु ने भी ब्रॉन्ज मेडल जीता। उनका अपने खेल के प्रति समर्पण हम सभी सालों से देख रहे हैं। ठीक इसी तरह टोक्यो ओलंपिक में अवनी ने अलग-अलग एयर राइफल शूटिंग में गोल्ड और ब्रॉन्ज मेडल जीते। भावना पटेल ने भी वूमेंस सिंगल टेबल टेनिस गेम में सिल्वर मेडल जीता। अवनी और भावनी अपने शारीरिक अक्षमता को अपने सपनों की राह की बाधा नहीं बनने दिया। आज ये सभी बेटियां सबके लिए प्रेरणा हैं। आज बेटी दिवस पर हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि बेटियों को हर तरह से सबल-सशक्त बनाएंगे। उनकी राह में आने वाली बाधाओं को दूर करेंगे। उनको ऊंची उड़ान भरने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। तभी सही मायने में बेटी दिवस की सार्थकता है।