Gandhi's Students Life: जिन बच्चों का इस साल हाईस्कूल या इंटरमीडिएट है, उनके ऊपर तनाव सिर चढ़ कर बोल रहा होगा। पढ़ाई का तनाव जो है सो है, ऊपर से हर दूसरा व्यक्ति जब ये 'कहे जाओ पढ़ो हाईस्कूल है इस बार', तो मन ही मन क्रोध आ जाता है। और तो और आपके बड़े-बुजुर्गों ने अपने हाई स्कूल के दिनों की कहानी तो जरूर सुनायी होंगी। खैर अगर आपको राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हाईस्कूल की कहानी पढ़ने को मिले तो कैसा लगेगा? पढ़ना चाहेंगे न?
जी हां हम आज आपको इतिहास के उन पन्नों में ले जा रहे हैं, जब मोहनदास करमचंद गांधी दसवीं यानि मैट्रिक में थे। हर छात्र की तरह उनके लिए भी मैट्रिक की परीक्षा चुनौतियों से भरी थी। हो भी क्यों न उनकी शादी जो हो चुकी थी। जब आप उनकी इस कहानी को पढ़ेंगे तो आपको समझ आएगा कि बापू ने भी अपने जीवन में कई गलतियां की, लेकिन इन गलतियों से उन्होंने काफी कुछ सीखा भी। गांधी अपने चरित्र को अपनी योग्यता से अधिक महत्व देते थे। आज हम आपके गांधी की वो अनसुनी कहानी शेयर करने जा रहे हैं, जो बेहद खास है..
गांधी की विचारधाराओं से बेहद अलग थी पत्नी कस्तूरबा
बात उस समय की है, जब गांधी हाईस्कूल में पढ़ रहे थे। उस समय उनकी शादी कस्तूरबा बाई से हुई, लेकिन उस दौरान गांधी की विचारधारा पत्नी कस्तूरबा से बेहद अलग थी। ऐसे में गांधी सोचते थे कि उनकी पत्नी वही करें जो वे चाहते हैं, वही जाएं जहां वे चाहते हैं। लेकिन पत्नी बिल्कुल अलग प्रवृत्ति की थी। जितना गांधी उन पर रोक लगाते, वे उतना ही कस्तूरबा स्वतंत्रता दिखाती और जहां वह चाहती थी वहां जाती भी थी। लेकिन गांधी जी को कहां पता था कि ये कष्ट भरे दिन काफी शिक्षाप्रद होने वाले हैं और पत्नी के आगे झुकने की कोशिश ही उन्हें धीरे-धीरे अहिंसा के मार्ग पर भी ले गई। गांधी जी ने अपनी किताब में यह भी जिक्र किया है कि उनकी पत्नी ही वह शिक्षक थी, जिन्होंने उन्हें अहिंसा का पहला पाठ पढ़ाया।
जब मोहनदास ने परीक्षा में लिख दिया था गलत शब्द..
हाईस्कूल के प्रथम वर्ष की बात है, परीक्षा का समय चल रहा था और शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर बापू के कक्षा में आए और सभी छात्रों को पांच-पांच शब्द लिखने को दिए। इस दौरान गांधी ने केटल (Kettle) शब्द को गलत लिख दिया। तभी पास में खड़े कक्षाध्यापक ने उन्हें बगल के स्लेट से सही शब्द का नकल करने के लिए कहा लेकिन गांधी हठी थे और वे कहां मानने वाले थे। लेकिन एक बात तो थी गांधी में, वे समय के बेहद पाबंद इंसान थे। उन्हें नाश्ता टाइम पर चाहिए होता था, उनका मानना था कि अगर नाश्ता में देरी होगी तो इससे उनकी पढ़ाई पर भी असर होगा, इसलिए वे हमेशा अपना नाश्ता टाइम से किया करते थे।
गांधी जी को lesson याद नहीं होते थे
गांधीजी को स्कूली किताबों के अलावा और पुस्तकों को पढ़ने का शौक नहीं था। स्कूल में जो पढ़ाया जाता वो पूरी तरह याद करते थे क्योंकि मास्टर की डांट नहीं सही जाती थी और मास्टर को धोखा देने की आदत भी नहीं थी। गांधी जी ने खुद लिखा है कि उनमें आलस्य कूट-कूट का भरा था, इसलिए दसवीं की परीक्षा सिर पर होने के बावजूद वो कम पढ़ते थे। इसी वजह से जो लेसन (lesson) वो पढ़ते वो कच्चा रह जाता था। ऐसी स्थिति में और कुछ अलग से पढ़ने का अवसर ही नहीं मिलता था। गांधी जी ने लिखा है कि वो खेलकूद की क्रियाओं में भाग नहीं लेते थे। वह अपनी शिक्षा योजना में शारीरिक शिक्षा को महत्व देते थे।
जब बुरी संगती में फंस गए थे बापू
बात उस समय की है, जब गांधी के पिता बीमार पड़े, उस समय बापू और उनकी पत्नी पिता के साथ समय बिताते। इस दौरान उनका एक मित्र बना, जिसका नाम था- शेख मेहताब। अपने हाईस्कूल के इस मित्र के साथ उन्होंने चोरी-छिपे मांस-मछली खाना शुरू कर दी। धूम्रपान की ऐसी आदत लगी कि अपने काका की फेंकी हुई बीड़ी को भी उठाकर पी लेते थे। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने नौकरों के पैसे भी चुराए।
इस वजह से उनका जीवन काफी खराब होने लगा। एक समय आया कि मोहनदास जिंदगी से तंग आकर सुसाइड के बारे में सोचने लगे। समय रहते उन्होंने स्वयं का आंकलन किया और आत्महत्या करने के बजाय धूम्रपान से किनारा करना करना बेहतर समझा।
जब बापू ने चुराया था सोने का कड़ा
धूम्रपान छोड़ दिया, लेकिन बाकी बुरी आदतें अब भी उनके अंदर थीं। अपनी आत्मकथा में गांधी ने एक और किस्सा शेयर किया है, जो सोने के कड़े की चोरी की थी। दरअसल, गांधी ने 25 रुपए के करीब कर्ज लिया था, यानी कि आज की डेट में देखें तो करीब 80 हजार रुपए। उन्हें वो कर्ज हर हाल में चुकाना था, जिसके लिए उन्होंने सोने के कड़े में से सोना काटकर चुराया था। लेकिन गांधी की आत्मा ने उन्हें एक अपराधी की तरह महसूस कराया और इसके लिए उन्होंने अपने पिता को एक पत्र लिख कर पूरी कहानी बयां कर दी। जब पिता के पास यह पत्र पहुंचा पिता-पुत्र दोनों की आंखों में आंसू थे। पिता का दिल बेटे पर पिघल गया और उन्होंने मोहनदास को माफ कर दिया।
हाईस्कूल में फेल हुए मोहनदास
जिस समय मोहनदास का विवाह हुआ था उस समय वह हाईस्कूल में पढ़ते थे। विवाह के कारण गांधीजी की पढ़ाई को भी नुकसान पहुँचा। उनकी अनुपस्थितियों को जैसा कि दर्ज किया गया है कि उस अवधि के 222 दिन में से 148 दिन वह स्कूल नहीं गए और अन्तिम परीक्षा में बैठने में फेल हो गए। परीक्षा में फेल होना गांधी जी के लिए बहुत बड़ी बात थी। उन्होंने सारी बुरी आदतें छोड़ दीं और अगले साल की परीक्षा के लिए जी-तोड़ मेहनत की और कक्षा में चौथी रैंक पर आये।
इस परीक्षा के बाद उन्होंने पढ़ाई को परम मित्र बना लिया और आगे चलकर उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए भावनगर के सामलदास कॉलेज में दाखिला लिया। यहां उन्होंने बीच में पढ़ाई छोड़ दी और आगे की पढ़ाई करने लंदन चले गये। लंदन में पहले उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज में अंग्रेजी सीखी और फिर इन्स ऑफ कोर्ट स्कूल ऑफ लॉ से विधि की पढ़ाई की और आगे चलकर बैरिस्टर बने।
अखबारों के संपादक भी रहे महात्मा गांधी
गांधी जी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई ब्वॉयज़ स्कूल में की। पिता का तबादला होने पर वे राजकोट चले गए जहां एल्फ्रेड स्कूल में दाखिला लिया। इसके बाद उन्होंने सामलदास कॉलेज में पढ़ाई की लेकिन बीच में ही छोड़ दी। बाद मेंयूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में विधि की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने बतौर वकील प्रैक्टिस की।
आगे चलकर उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में इंडियन ओपिनियन नाम का अखबार निकाला। उन्होंने यह अखबार का उद्देश्य Moral, Political and Social Advancement of Indians in South Africa था। यानि कि वो दक्षिण अफ्रीका में रह रहे भारतीयों के उत्थान के लिए यह अखबार चला रहे थे।
इस अखबार का सब्सक्रप्शिन मूल्य दक्षिण अफ्रीका में 21 सेंट सालाना था, और छह महीने के लिए 11 सेंट। वहीं दक्षिण अफ्रीका के बाहर क्रमश: 22 सेंट व 12 सेंट था। खास बात यह है कि इस अखबार में दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजों द्वारा अफ्रीकी लोगों के साथ किए जाने वाले अन्याय कोभी उजागर किया जाता था।
भारत लौटने के बाद गांधी जी ने गुजरात में हरिजन, इंडियन ओपिनियन और नवजीवन का संपादन भी किया।