आंध्र प्रदेश भारत के दक्षिण के स्थित एक राज्य है सभी दक्षिण के राज्यों की तरह ये राज्य भी इसकी सांस्कृति और खूबसूरती के लिए मशहूर है। भारत के सबसे ज्यादा क्षेत्र वाले राज्यों में ये राज्य 7वें स्थान पर स्थित है। इस राज्य की आबादी की बात करें तो सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्यों में 10वें स्थान पर है। भारत के दक्षिण राज्यों को मुख्य तौर पर उसकी संस्कृति के लिए जाना जाता है। भारत की स्वतंत्रता के दौरान जितना योगदान भारत के उत्तरी राज्यों ने भाग लिया है उतना ही भारत के दक्षिण के राज्यों ने भी योगदान दिया है। लेकिन आज लोग केवल भारत के उत्तर के क्षेत्रों के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में तो फिर भी जानते है लेकिन भारत के दक्षिण के इलाकों के स्वतंत्रता सेनानियों के नाम भूल गए है। क्योंकि उनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया है। लेकिन इसे थोड़ा खंगालने की जरूरत है और उसके साथ ही ये समझने की जरूर है कि इनका योगदान भी देश के लिए उतना ही जरूरी है जितना अन्य राज्यों का योगदान तो आज इस 76वें स्वतंत्रता दिवस पर इस लेख के माध्यम में हम आपको दक्षिण के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बताने जा रहें जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता में खुद को समर्पित किया है। इस महाउपलक्ष पर आपको बताते हैं आंध्र प्रदेश के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में।
उयन्यालवाड़ा नरसिम्हा रेड्डी
नरसिम्हा रेड्डी भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित एक और स्वतंत्रता सेनानी जिनका जन्म 24 नवंबर 1806 में रूपनागुडी में हुआ था। 1847 में उन्होंने और उनेक कमांडर-इन-चीफ वड्डे ओबन्ना ब्रिटिश कंपनी के खिलाफ स्वतंत्रका आंदोलन की शुरूआत की। वह इस स्वतंत्रता संग्राम के केंद्र थे और इस तरफ अंग्रेजों के खिलाफ उन्होंने दक्षिण भारत में स्वतंत्रता संग्राम की शुरूआत की। नांदयाल जिले से करीब 5000 किसान थे जो अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता के लिए लड़ने को खड़े हुए।
पारंपरिक कृषि में अंग्रेजों द्वारा किए बदलाव के और नई प्रणाली के खिलाफ नरसिम्हा रेड्डी ने आवाज उठाई। ये क्रांति उस दौरन सभी पास के इलाकों तक फैलने लगी और आंदोलन न गति पकड़नी शुरू की। नरसिम्हा रेड्डी ने अपने लोगों के साथ हो रहे शोषण और उनकी जमीन पर कब्जा करने वाले अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने का पूरा प्रयत्न किया। इस आंदोलन को रोकने और समाप्त करने के लिए उन्होंने नरसिम्हा रेड्डी को धोखे से पकड़ा और उनकी मृत्यु से इस स्वतंत्रता आंदोलन को खत्म कर दिया गया।
अल्लूरी सीताराम राजू
अल्लूरी सीताराम राजू भारत के स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम अपना योगदान दिया। ये आंध्र प्रदेश के आदिवासी समाज से थे। इनका जन्म 4 जुलाई को 1897-88 में हुआ था। 1882 में अंग्रेजों द्वारा लागू मद्रास वन अधिनियम के विरोधी थे। इस अधिनियम के अनुसार आदिवासी अपने वन आवसों में मुक्त रूप से कार्य करने, पारंपरिक अभ्यासों, और कृषि पर रोक लगा दी थी। इस प्रकार अंग्रेजों के प्रति बढ़ते असंतोष को देखते हुए 1922 में रम्पा विद्रोह का जन्म हुआ और इसके प्रमुख नेता की भूमिका सीताराम राजू ने निभाई। उन्होंने इस क्रांति के लिए के लिए किसानों को जुटा कर गोदावरी और विशाखापत्तनम जिले के मद्रास प्रेसीडेंसी के सीमावृती क्षेत्रों में ब्रिटीश अधिकारियों के घरों में छापामारी का अभियान शुरू किया। उनके इस प्रकार और बाहदूरी के लिए उन्हें "मन्यम वीरुडु" नाम से संबोधित किया गया।
गोट्टीपति ब्रह्मैया
रयोतु पेद्दा के नाम से जानें जाने वाले गोट्टीपति ब्रह्मैया का जन्म 3 दिसंबर 1889 में हुआ था। उन्हें मिले रयोतु पेद्दा नाम का अर्थ किसानों का नेता है। गोट्टीपति ब्रह्मैया को मुख्य तौर पर जमींदारी रैयत आंदोलन के लिए जाना जाता है। 1927 में ब्रिटिश सरकार के साइमन कमीशन का बहिष्कार वाले आंदोलन में भाग लिया था। इसके बाद 1930 में उन्हे मछलीपट्टनम यात्रा का विद्रोह कर काले झंडे के प्रदर्शन में हिस्सा लिया जिसके लिए उन्हें 6 महिने की जेल सजा काचनी पड़ी। इसे बाद भी वह रूके नहीं और उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया जिसके लिए उन्हें 2 साल की जेल सजा सुनाई गई। वह एक समाजिक कार्यकर्ता भी थे। 1933 में मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए भी उन्हें जिम्माजार माना गया था। इस तरह से वह लागातार भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते गए। 1942 में उन्हें एक बार फिर भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए गिरफ्तार किया गया। भारत की आजादी के बाद वह राजनीति में सक्रिय हुए और आंध्र प्रदेश कांग्रेस के प्रेसिडेंट बने और आंध्र प्रदेश की लेजिस्लेटीव काउंसिल के चेयरमैन भी रहें। वह भारत के स्वतंत्रता सेनानी थे। उनके इस योगदान और समर्पण के लिए भारतीय सरकार ने उन्हें 1982 में पद्म भूषण से सम्मानित किया था।
गौथू लचन्ना
सरदार गौथु लछन्ना का जन्म 16 अगस्त 1909 में हुआ था। उन्होंने किसानों, पिछड़ी जातियों और कमजोर वर्ग पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई थी। गांधी जी के नमक सत्याग्रह में अपने योगदान के लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया था। नमक सत्याग्रह में जब उन्होंने हिस्सा लिया था तब वह केवल 21 साल के थे। इसी के साथ वह भारत छोड़ो आंदोलन में भी शामिल थे और सक्रिय भूमिका निभाई थी। ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनकी जोरदार लड़ाई के लिए उन्हें सरादार के नाम से भी पुकारा गया था। उन्होंने गांधी जी द्वारा चलाए कई आंदोलनों में हिस्सा लिया जिसमें सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन शामिल है। जिसके लिए उन्हें कई बार गिरफ्तार भी किया गया। इसी के साथ उन्होंने किसानों के लिए बहुत कार्य किए और किसान नेता के तौर पर भी जाने गए।