आजादी की लड़ाई सिर्फ उन चंद स्त्री-पुरुषों ने नहीं लड़ी जिनके नाम हम बचपन से अपनी इतिहास की पुस्तकों या पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ते आए हैं। ऐसे बहुत से नाम हैं जो चमक-दमक की भूखी इस दुनिया में कहीं पीछे छूट गए। 15 अगस्त 2021 के अवसर पर भारत 75वां स्वतंत्रता दिवस 2021 मना रहा है। आज स्वाधीनता दिवस यानि 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हम कुछ ऐसी ही कुछ गुमनाम महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बात करेंगे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम् भूमिका निभाई है। आइये जानते हैं भारतीय महिला स्वतंत्रता सेनानी के बारे में...
आबादी बानो बेगम
उत्तरप्रदेश के रामपुर में जन्मी थीं आबादी बानो बेगम। इन्हें बी अम्मां के नाम से भी जाना जाता है। एक रुढ़ीवादी परिवार में जन्मीं होने के बावजूद इनमें साहस कूटकूट कर भरा था। इन्हें राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाली पहली मुस्लिम महिला माना जाता है। आजादी की लड़ाई में इन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। अपने स्वतंत्रता सेनानी बेटे की गिरफ्तारी को विरोध करने के लिए ये घर से बाहर आईं और लखनऊ में एक विशाल भीड़ को अपनी ओज भरी वाणी में संबोधित किया। हालांकि उन्होंने इस दौरान बुर्का ओढ़ रखा था लेकिन उनकी बातों ने भीड़ के दिल जीत लिया और उनमें एक नया जोश भर दिया। 1917 में आल इंडिया मुस्लिम लीग की बैठक में भी उनके वक्तव्य ने लोगों के दिल को छू लिया था।
दुर्गाबाई देशमुख
इन्हें लोग लेडी देशमुख के नाम से भी जानते हैं। आजादी के आंदेलन में दुर्गाबाई देशमुख ने एक बड़ी भूमिका निभाई। इन्होंने बहुत सारे सत्याग्रह आन्दोलनों की अगुवाई की और अपनी ओजस्वी भाषणों के बूते कई महिलाओं को भी शामिल किया। बाद में से विधानसभा की सदस्य भी बनीं और फिर योजना आयोग में भी सक्रिय भूमिका निभाई। 1923 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की खादी प्रदर्शनी में उन्होंने जवाहरलाल नेहरु को तब तक भीतर नहीं घुसने दिया जब तक वे आयोजकों से टिकट लेकर नहीं आ गए। दुर्गाबाई देशमुख एक अच्छी वकील और सामाजिक कार्यकर्तामी थीं। ये सेंट्रल सोशल वेलफेयर बोर्ड की संस्थापक चेयरपर्सन बनीं। 1953 में इनका विवाह रिजर्व बैंक आफ इंडिया के पहले गवर्नर सी.डी. देशमुख के साथ हुआ।
कनकलता बरुआ
आसाम के निवासियों ने अपनी क्रांतिकारी महिला नागरिक कनकलता बरुआ को गर्व से भर कर 'बीरबाला' नाम दिया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कनकलता ने 'मृत्यु वाहिनी' नामक एक जांबाज समूह को ज्वाइन किया जो आसाम के गोहपुर सब डिवीजन के युवाओं ने तैयार किया था। 20 सितम्बर 1942 को इस बहादुर महिला को क्रूर अंग्रेज सैनिकों की गोली का शिकार होना पड़ा। मृत्यु के वक्त कनकलता भारत छोड़ो आन्दोलन के एक जुलूस में शामिल थीं और उनके हाथ में राष्ट्रीय ध्वज था। 15 साल की कनकलता 1942 की क्रांति की पहली शहीद थीं।
पंडिता रामबाई सरस्वती
पंडिता रामबाई संस्कृत की जानीमानी विद्वान और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। ये एक मुखर नारीवादी भी थीं। वे हिन्दू समाज में व्यापक सुधार की पक्षधर थीं और जीवनभर महिलाओं की सामाजिक स्थिति को सुधार के लिए संघर्ष करती रहीं। ये बाल विवाह की कट्टर विरोधी थीं। और नारी शक्ति की पुरजोर वकालत करती थी। उन्होंने महिलाओं के लिए एक मेडिकल कॉलेज बनाने का अभियान छेड़ा और इसकी स्वीकृति हासिल करके इसे बनवा कर छोड़ा। भारत की पहली महिला डॉक्टर आनंदबाई जोशी इन्हीं की देन हैं। सामाजिक कार्यों के साथ-साथ ये आजादी के आन्दोलन में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेती थीं। उनकी पुस्तक 'हाई कास्ट हिन्दू वुमन' खूब चर्चित हुई। यह अंग्रेजी में लिखी गई उनकी पहली पुस्तक थी। इस किताब में उन्होंने बाल विधवाओं और बाल विवाहों के खिलाफ पुरजोर आवाज उठाई थीं।
वेलु नचियार
वेलु नचियार 1760-1790 तक शिवगंगा की रानी थी। ये पहली रानी थीं जिन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की। रामनाथपुरम की पूर्व राजकुमारी वेलु नचियार ने सिपाही विद्रोह से भी पहले ब्रिटिश शासन का विरोध किया था। इनकी लड़ाई लक्ष्मीबाई से भी पहले शुरु हो गई थी। ये तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र चलाने में पूरी तरह निपुण थीं। उनके पति को ब्रिटिश सैनिकों ने मार डाला था। 8 साल ये छिपकर रहीं। इस बीच इन्होंने अपनी एक सेना बना ली और 1780 में उनके पाथ बहादुरी से लड़ीं। अंत में उन्होंने सुससाइड अटैक करते हुए खुद को तेल डाल कर जला लिया था और शक्षुओं के ठिकानों में घुस गई। लेकिन वे बच गईं। उनकी स्त्री सेना का नाम 'उडईयाल' था। इसके बाद उन्होंने 8 साल तक शासन किया।
बेगम हजरतमहल
अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पहली पत्नी थीं बेगम हजरत महल। ब्रिटिश सरकार ने नवाब को सत्ता से बेदखल कर दिया। लेकिन जनता उन्हें बहुत चाहती थीं। नवाब साहब को निकाल कर बाहर किया गया तो जनता उनके साथ कानपुर पहुंच गई और विरोध के दुख भरे गीत गाए। 1857 की क्रांति पूरी तरह फैल चुकी थी जो अवध क्षेत्र में जबर्दस्त असर के साथ देखी गई। इस पूरे आंदोलन की अगुआई करने वाली बहादुर महिला थीं बेगम हजरत महल। उन्होंने लखनऊ पर अपनी मजबूत पकड़ बना ली थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें देश निकाला देकर नेपाल भेज दिया, जहां उनकी मृत्यु हो गई।
हंसा मेहता
हंसा मेहता गुजराती भाषा की साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी थीं। ये महात्मा गांधी की पक्की अनुयायी थीं। ये महात्मा गांधी के साथ जेल भी जा चुकी थीं। हंसा लैंगिक समानता की पुरोजर पक्षधर थीं। इन्होंने मानवाधिकार में अक्सर इस्तेमाल किए जाने वाले टर्म 'आल मेन' पर आपत्ति जताई औऱ इसे 'आल ह्यूमन बीइंग' करवा कर ही दम लिया। आजादी के आंदोलन में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हुए इन्होंने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करते हुए दुकानों पर प्रदर्शन किया और शराब का भी विरोध किया।
कित्तूर रानी चेनम्मा
कर्नाटक के चित्तूर राज्य की रानी थीं चेनम्मा। 1824 में 33 वर्ष की उम्र में उन्होंने 'डॉक्टरीन ऑफ लैप्स' का जबरदस्त विरोध करते हुए सेना का नेतृत्व किया था। राष्ट्र के लिए उन्होंने अपनी जान कुर्बान कर दी। आज उन्हें भारत के सबसे पहले उन शासकों की सूची में गिना जाता है जिन्होने आजादी की लड़ाई का सबसे पहले बिगुल बजाया था।
जय हिंदी जय भारत