Raja Ram Mohan Roy Death Anniversary: राजा राममोहन राय भारत के एक महान समाज सुधारक थे। उन्होंने कई कुप्रथाओं को खत्म करने में बड़ा योगदान दिया। राजा राममोहन का जन्म 22 मई 1772 में पश्चिम बंगाल में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके लिए शिक्षा काफी महत्वपूर्ण थी। मात्र 15 वर्ष की आयु में उन्होंने बंगाली, संस्कृत, अरबी और फारसी का ज्ञान अर्जित किया था। उन्होंने न केवल ईस्ट इंडिया कंपनी में काम किया था, बल्कि उन्होंने विदेश में भ्रमण भी किया था।
इसी बीच उन्होंने मूर्ति पूजा को खत्म करने के लिए ब्रह्म समाज की स्थापना भी की। राजा राम मोहन राय ने अपने समाज में सुधार करने के लिए कई प्रथाओं को समाप्त किया। इतना ही नहीं, उन्होंने कई रीति-रिवाजों और आडंबरों को खत्म करने का प्रयास भी किया। राजा राम राय की मृत्यु 27 सितंबर 1833 में हुई थी। इस बार साल 2023 में राजा राम मोहन राय उनकी 190वीं पुण्यतिथि है। आइए आज आपको उनकी पुण्यतिथि पर बताते हैं उन प्रथाओं के बारे में.. जिसके खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई और किस घटना के बाद से उनमें हिंदू पूर्वाग्रहों के खिलाफ आग भड़की।
हिंदू पूर्वाग्रहों के खिलाफ भड़की राममोहन राय के दिल में आग
राजा राममोहन राय ने अपना जीवन महिलाओं के लिए संघर्ष में बिताया था। उनके दर्द को समझते हुए उनके साथ रीति-रिवाज और प्रथाओं के नाम पर हो रहे दुर्व्यवहार को देखते हुए उन्होंने कई प्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाई थी। लेकिन इस दर्द का अहसास उन्हें कब हुआ ये जान कर आप भी हैरान हो जाएंगे। आपने अक्सर सुना होगा कि बदलाव की शुरुआत की प्रेरणा घर से ही आती है लेकिन इस बार क्रांति की भावना और हिंदू पूर्वाग्रहों के खिलाफ की लड़ने की आग जो उनके दिन में भड़की उसकी शुरुआत उनके घर से ही हुई थी।
सब जानते हैं कि राजा राममोहन राय सती प्रथा के विरोधी थे। लेकिन इस विरोध की शुरुआत कैसे हुई ये कम लोग जानते हैं। बात तब की है जब राजा राममोहन राय किसी काम के चलते विदेश यात्रा पर गए थे। इसी दौरान उनके पास उनके भाई मृत्यु की खबर आई। उन्हें महिलाओं पर हो रहे अत्याचार का दर्द तब महसूस हुआ जब उनके भाई की मृत्यु पर उनकी भाभी को सती प्रथा के नाम पर जिंदा जला दिया गया।
बस इस घटना से सीने में भड़की आग से उन्होंने इस प्रथा के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा को खत्म करने के लिए गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक की मदद ली और 1829 में सती प्रथा के खिलाफ कानून बनवाया। इसके बाद लगातार समाज की इस प्रकार की कुरीतियों के खिलाफ वह आवाज उठाते रहे।
समाज की किन कुप्रथाओं का किया था राम मोहन राय ने विरोध
- 1929 में सती प्रथा को किया समाप्त।
- मूर्ति पूजा के विरोधी थे और इसलिए उन्होंने की ब्रह्म समाज की थी स्थापना।
- ब्रह्म समाज आंदोलन की शुरुआत कर बाल विवाह (कम आयु में शादी की प्रथा) के खिलाफ आवाज उठाई।
- बहुविवाह प्रथा को समाप्त किया था। बहुविवाह प्रथा में कोई पुरुष या स्त्री एक से अधिक पुरुष या स्त्री से विवाह कर सकते थे। भारतीय संविधान में भी इसे अनुचित माना गया है।
- छुआछूत और अंधविश्वास के खिलाफ उठाई थी आवाज।
- राजा राममोहन राय ने हिंदू धर्म की कथित बुराइयों, रिवाजों और आडंबरों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।
सामाजिक योगदान
- विधवा पुनर्विवाह और महिलाओं को संपत्ति रखने के अधिकार के लिए चलाया था अभियान।
- महिलाओं को शिक्षित करने पर दिया था जोर।
- छुआछूत को खत्म कर नीची जाति के लोगों अधिकार के लिए चलाया था अभियान।