NASA Moon Mission 2024: हाल ही में रूस और भारत ने अपने-अपने चंद्रमा मिशन के लिए स्पेश क्राफ्ट भेजा, जिसमें से रूस का लूना-25 कल ही क्रैश हो गया और अब दुनिया की निगाहें भारत के चंद्रयान-3 पर टिकी हुई है। ऐसे में अमेरिका का नासा भी पीछे नहीं है। दरअसल, नासा पिछले पांच सालों से अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा की सतह पर भेजने के लिए काम कर रहा है। खासकर इसलिए क्योंकि नासा ने भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का चुनाव किया है।
दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने का मुद्दा सबका एक ही है, पानी की खोज करना। इसीलिए अगले साल यानी 2024 तक नासा अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों को भेजेगा, क्योंकि पानी का उपयोग संभावित रूप से पीने, ठंडा करने वाले उपकरण, सांस लेने और सौर मंडल में मिशनों के लिए रॉकेट ईंधन बनाने के लिए किया जा सकता है। नासा को अब तक चंद्रमा पर जो अनुभव प्राप्त हुए हैं, उसे इस मिशन के लिए उपयोग में लाया जा रहा है।
पूरी तैयारी में जुटा है नासा
नासा मुख्यालय में विज्ञान मिशन निदेशालय के उप सहयोगी प्रशासक स्टीवन क्लार्क का कहना है कि दक्षिणी ध्रुव वाले क्षेत्र में बर्फ है और कक्षा से हमारे अवलोकन के आधार पर यह अन्य संसाधनों से समृद्ध हो सकता है, लेकिन अभी तक यहां कोई पहुंचा नहीं है, इसलिए इस जगह के बारे में अभी तक किसी को कुछ भी मालूम नहीं है। हेडक्वार्टर वाशिंगटन दक्षिणी ध्रुव और भूमध्य रेखा के चारों ओर फैले अपोलो लैंडिंग वाले स्थान से काफी दूर है, इसलिए वहां तक पहुंचने के लिए काफी मेहनत भी करनी पड़ेगी, जिसके लिए नासा पूरी तरह तैयार है। हालांकि, दक्षिणी ध्रुव के कई हिस्से ऐसे भी हैं, जहां सूरज की रौशनी पहुंचती है और वे सूरज की किरणों से सराबोर रहते हैं। इससे अध्ययन में काफी मदद मिलने वाली है।
क्यों है चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव अहम?
चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव इसलिए भी काफी अहम है। क्योंकि ये ऐसा हिस्सा है, जहां से काफी जानकारी हाथ लग सकती है और यहां काफी रिसर्च भी किया जा सकता है। इस क्षेत्र की आकृति, यहां का तापमान और संभावित जमे हुए पानी के स्थानों के बारे में सटीक जानकारी प्रदान की गई है, जिस पर रिसर्च करने से काफी कुछ पता लग सकता है और अगर ये मिशन सफल हो पाता है तो चंद्रमा के बारे में काफी जानकारी हाथ लग सकती है।
पानी के जमाव होने की संभावना
चंद्रमा के दक्षिणी पोल का तापमान काफी ठंडा हो सकता है। इसका मुख्य कारण है कि यहां सूरज की रौशनी का न पहुंचना। ऐसे में यहां ग्लेशियर भी होने की संभावना है या फिर पानी का कोई हिस्सा। ऐसे में इस स्थान पर खोज करने से अगर सफलता हाथ लगती है तो यह स्पेस स्टेशंस के लिए काफी ऐतिहासिक पल होगा। अगर यहां अंतरिक्ष यात्री पहुंच जाते हैं तो उनके बताए गए चंद्रमा के हिस्सों के हिसाब से वहां प्रणालियों को डिजाइन करने के लिए इंजीनियरों को जानकारी दी जाएगी, ताकि वहां भी नई व आधुनिक चीजों को डेवलप किया जा सकें।
248 सेल्सियस तक हो सकता है तापमान
बता दें कि इस हिस्से के कुछ स्थानों का तापमान -414 डिग्री फ़ारेनहाइट (-248 सेल्सियस) तक हो सकता है। इसीलिए अनुमान लगाया जा रहा है कि पानी के स्रोत यहां मौजूद हो सकते हैं। इतना ही नहीं, इस हिस्से पर गड्ढे भी काफी अधिक हैं, जहां बर्फ के रूप में पानी जमा हो सकता है। ये पानी करोड़ों-अरबों साल पुराना भी हो सकता है, जो इतने सालों से भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं से अछूता रहा हो। इससे हमें पता चल सकता है कि चंद्रमा की जलवायु और वातावरण हजारों सालों में कैसे और किस प्रकार से विकसित हुआ।
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