भारत में कई आदिवासी नेता है जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता में अपना योगदान दिया है। इन सभी के योगदान से ही भारत अपना 76वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। भारत की आजादी को 75 साल होने के उपलपक्ष में भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और इस महोत्सव पर इन स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानना और आवश्यक हो जाता है। भारत में आज भी कई आदिवासी समुदाय है जो अपना जीवन शांति से गुजर बसर कर रहें है। वह अपने पारंपरिक तरिको से शांति से रह रहे हैं। अकेले झारखंड की बात करें तो केवल झारखंड में 32 आदिवासी समुदाय हैं। आजादी के समय इन आदिवासी समुदायों ने भी स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया था। इस स्वतंत्रता दिवस के महाउपलक्ष में हम इस लेख के माध्यम से आपको झारखंड के आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बताने जा रहे हैं। आईए जाने झारखंड के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में।
दिवा-किशुन सोरेन
दिवा-किशुन सोरेन का जन्म 1820 में हुआ था। ये दोनों सगे भाई थे। इन्हें मुख्य तौर पर 1857 के विद्रोह के लिए जाना जाता है। उन्होंने इस विद्रोह के लिए कई बैठकों का आयोजन किया ताकि। उन्होंने राजा अब्रहिम सिंह और ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ विद्रोह की शुरूआत की। उनका ये विद्रोह काफी लंबा चला जिसे कमजोर करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने दिवा-किशुन सोरेन को पकड़ लिया और उन्हें फांसी की सजा दी गई।
सिद्धू और कान्हू
सिद्धू और कान्हू का जन्म झारखंड में हुआ था। इन दोनों भाईयों की जोड़ी ने जमींदारी प्रथा और ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ लड़ाई की शुरूआत की। इन दोनों को मुख्य तौर पर संथाल विद्रोह के लिए जाना जाता है।
नीलांबर और पीतांबर
नीलांबर और पीतांबर दो भाईयों की जोड़ी थी जिनका जन्म झारखंड के आदिवासी समाज में हुआ था। ये दोनों आदिवासी समुदाय के स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए योगदान दिया था। इन दोनों को मुख्य तौर पर 1857 के विद्रोह के लिए जाना जाता है।
जात्रा भगत झारखंड
जात्रा भगत का जन्म झारखंड के चिंगारी नवाटोली गांव में हुआ था। जात्रा भगत ब्रिटिश सरकार और जमींदारों के खिलाफ थें। इन्होंने ने 1912-14 में ब्रिटिश सरकार और जमींदार के खिलाफ अहिंसक आंदोलन की शुरूआत की। इसी के साथ इन्होंने कर देने और कुली की तरह काम करने के लिए साफ मना कर दिया था।