भारत में हर जगह आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। स्वतंत्रता दिवस अब कुछ ही दिन दूर है। इस वर्ष (2022) भारत अपना 76वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है और इस स्वतंत्रता दिवस पर स्वतंत्रता सेनानियों को याद न किया जाए ये कैसे हो सकता है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई छोटे बड़े व्यक्तियों के योगदान से भारत आजाद हुआ है। हर व्यक्ति ने अपने राज्य और क्षेत्र के स्तर पर कार्य किया और अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई। भारत में अंग्रेजों के खिलाफ कई बार विद्रोह हुआ है। जिसके बारे में आप जानते हैं। इन्हीं विद्रोह में भारत के कई सेनानियों ने अपना योगदान दिया जिनका नाम आज ज्यादा सुनने में भी नहीं आता है। आज हम उन्हीं कुछ गुमनाम नायकों के बारे में बात करेंगे।
भारत में कई आदिवासी समुदाय रहे हैं जिन्होंने अपने लोगों और अपने क्षेत्र को बचाने और अंग्रेजों को वहां से भगाने के लिए विद्रोह किया है। लेकिन इनके नाम गुमनामी में कहीं खो से गए है। जिन्हें याद किया जाना और आने वाली जनरेशन के सामने रखना आवश्यक है। ये वो सेनानी थे जिन्होंने देश के लिए अपने आप को न्योछावर तक कर दिया है। उनका ये समर्पण भूला ही नहीं जा सकता। विद्रोह 1857 का हो या स्वतंत्रता आंदोलन 1946 का कई सेनानी इसके लिए सामने आए हैं। लड़ाई उत्तर भारत में भी हुई लड़ाई दक्षिण भारत में भी सभी ने मिल जुल कर आखिरकार भारत को आजाद बना ही दिया। आईए जाने आदिवासी स्वतंत्रात सेनानियों के बारे में जिन्होंने देश की आजादी में अपना योगदान दिया था।
5 आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी
शहीद वीर नारायण सिंह
शहीद वीर नारायण सिंह का जन्म 1795 में छत्तीसगढ़ में हुआ था। उन्हें छत्तीसगढ़ के पहले स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाना जाता है। वीर नारायण सिंह अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के विद्रोह में शामिल थे। वह गोंड आदिवासी समुदाय से थे। इनकी बहादुरी को देखते हुए अंग्रेजों ने इन्हें वीर के नाम से पुकारा। वह 35 वर्ष के थे जब उन्हें जमींदारी अधिकार उनके पिता से मिले और वह सोनाखान के जमींदार बने। उस क्षेत्र के वह सबसे कम उम्र के जमींदार थे। उन्हें वीर की उपाधि तब दी गई जब सोनाखान क्षेत्र के पास एक नरभक्षी शेर आया जिसे देख के वहां को सभी लोग डरे हुए थे। जैसे इस बाता की जानकारी नारायण सिंह को मिली तो उन्होंने अपनी तलवार उठाई और वह शेर की ओर निकल पड़े। शेर को देखते ही देखते नारायण सिंह ने उस शेर को मार गिराया। अंग्रेजों ने उनकी इस बहादुरी को देखते हुए उन्हें वीर नारायण सिंह की उपाधि दी। इसके बाद 1857 की क्रांति के दौरान उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ आर्मी एकत्रित कर हमला किया लेकिन ब्रिटिश सेना उस समय ज्यादा ताकतवर साबित हुई और वीर नारायण सिंह को पकड़ लिया और 10 दिसंबर 1857 को उन्हें जमालपुर चौक पर फांसी की सजा दी गई।
बिरसा मुंडा
मुंडा आदिवासी समुदाय के नेता या भगवान माने जाने बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 में हुआ था। वह भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्होंने अंग्रजों और उनके द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ अवाज उठाई थी। बिरसा मुंडा ने धर्मांतरण के खिलाफ आवाज उठाई और अपना खुद का एक धर्म शुरू किया जिसका ना बिरसैट था और इस धर्म का उन्होंने अपने आपको भगवान घोषित किया। इस नए भगवान को देखने के लिए आस पास के सभी समुदाय सामने आए। उनके नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ एक विद्रोह की शुरूआत हुई जिसे उलगुलान के नाम से जना जाता है।
श्री अल्लूरी सीता राम राजू
अल्लूरी सीता राम राजू का जन्म 4 जुलाई 1897-98 के दौरान आज के समय के आंध्र प्रदेश में हुआ था। ये भी एक आदिवासी समुदाय के थे और अंग्रेजों के खिलाफ उन्होंने आवाज 1882 में लागू हुए मद्रास जंगल एक्ट पर उठाई थी। इस एक्ट के अनुसार जंगल में रहने वाले आदिवासी समुदाय को अपने ही क्षेत्र में कई कार्य करने से रोक दिया गया था। इसके साथ पोडु नाम पारंपरिक कृषि को करने से भी रोका जाने लगा था। जिसे देखते हुए उन्होंने इसके खिलाफ विद्रोह किया। 1922 में उन्होंने रम्पा विद्रोह की शुरूआत की और इस पूरे विद्रोह का नेतृत्व किया। इसके बाद उन्होंने एक छापामारी अभियान की शुरूआत की इस अभियान में इन्होंने कई पुलिस थानों पर छापा मारा। इस छापेमारी के समय 1924 में ब्रिटिश सरकार ने अल्लूरी सीता राम राजू को पकड़ लिया और पेड़ से बांध दिया गया और कई बार गोली मार के अंग्रेजों ने उनकी हत्या कर दी।
रानी गाइदिनल्यू पैसे
रानी के नाम से जाने गाइदिनल्यू पैसे का जन्म 26 जनवरी 1915 में मणिपुर में हुआ। उन्होंने 13 साल की उम्र से भी अंग्रेजों के खिलाफ हो रहे आंदोलनों में हिस्सा लेना शुरू किया। रानी गाइदिनल्यू पैसे भी एक आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थीं जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए लड़ाई की। 16 सााल की उम्र में अभियानों में भाग लेने के लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। नेहरू जी द्वारा उनकी बहादुरी और योगदान को देखते हुए उन्हें रानी के नाम से पुकारा गया। रानी गाइदिनल्यू पैसे रोंगमेई नागा आदिवासी समुदाय से थी।