भारत में आजदी के लिए लड़ाई बहुत लंबे समय से चली आ रही है। लंबे समय की इस लड़ाई के बाद जाकर भारत को आजादी 1947 में मिली। लेकिन उससे पहले भारत के नागरिकों पर ब्रिटिश सरकार ने कई अत्यचार करे जिसके चलते समय समय पर विद्रोह की चिंगारी भारत के हर कोने से उठी। भारत आजादी के 75 साल पूरे होने की खुशी में आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। भारत की आजादी के लिए देश के कई लोगों ने अपनी जान तक न्योछावर कर दी है। कभी हिंसा तो कभी अहिंसा के सहारे स्वतंत्रता प्राप्त करने का प्रयास किया गया था। उत्तर से लेकर दक्षिण तक पूर्व से लेकर पश्चिम तक देश के हर राज्य, नगर और क्षेत्र में लोगों ने अपने देश को आजाद करने के लिए एक लडाई लड़ी है। कई आंदोलनों को चलाया गया है। कई तरह के आंदोलन की शुरूआत की ताकि अंग्रेजों के द्वारा किए जा रहे अत्याचारों को रोका जा सकें। 1857 के विद्रोह से 1947 तक कई क्रांतियां हुई जिसमें कई लोगों की जान गई, कई लोगों ने आजादी के लिए अपने आप को सर्मपित किया। आईए 1857 से आजादी तक चले मुख्य आंदोलनों और विद्रोह के बारे में जाने।
1857 की क्रांति
भारत में अंग्रेजों के खिलाफ सबसे पहली क्रांति 1857 में हुई थी। आजादी के लिए भारत ने सबसे पहली लड़ाई 1857 में की थी। ये लड़ाई 1858 तक चली। ब्रिटिश राज ने धीरे धीरे भारत के सभी क्षेत्रों पर कब्जा करना शुरू किया और भारतीय धर्मों आदि के रिवाजो आदी की कोई इज्जत नहीं की। ब्रिटिश राज ने भारतीयों को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में भर्ती किया और जानवरों की चरबी वाले कारतुसों को दांतो से काट कर इस्तेमाल करने के लिए मजबूर किया। ये कारतुस गाय और सुअर की चर्बी के बने होते थे। जो भारत के हिंदु और मुसलमान नहीं खाया करते थे उनके धर्म में इसकी मनाही थी। जिसकी लिए भारतीयों ने आवाज उठाई और दोनों धर्म के लोग इसके विरोद्ध में खड़े हुए। स्थिति को खराब न होने देने के लिए अंग्रेजों ने कारतूस बदलने के प्रयास किया। लेकिन उस समय भारतीयों के मन विद्रोह की भावन नहीं बदली। विद्रोह की मुख्य तौर पर शुरूआत तब हुई जब मंगल पांड़े ने ब्रिटिश हवलदार पर हमला किया। इस घटना के बाद जनरल हार्सी ने दूसर भारतीय सैनिक को मंगल पांडे को पकड़ने के कहा और उस सैनिक ने इससे इनकार कर दिया। बाद में इन दोनों भारतीय सैनिकों को पकड़ के फांसी की सजा दी गई।
भारत पर पूरी तरह से कब्जा करने के लिए अंग्रेजों ने अपनी गति और तेज की और ब्रिटिश सैनिकों को भारत बुलाया और देखते ही देखते भारतीयों और अंग्रेजों में लड़ाई हुई अंग्रेजों ने दिल्ली पर भी अपना कब्जा स्थाप्ति किया। पूरे भारत में 1857 का विद्रोह फैल गया और इस विद्रोह का अंतिम युद्ध जून 1858 में ग्वालियर में हुआ जिसमें झांसी की रानी की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद विद्रोह को दबाना और आसन हो गया।
स्वदेशी आंदोलन: लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन (1905)
स्वदेशी आंदोलन की शुरूआत 1905 में हुई थी। यह एक आत्मनिर्भर आंदोलन था। ये आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। इतना ही नहीं इस आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में योगदान भी दिया। बंगाल बटावरे का फैसला दिसंबर 1903 में सार्वजनिक किया गया इस फैसले के बाहर आने से पहले ही भारतीयों में असंतोष की स्थिति पैदा हो चुकी थी। मुख्य तौर पर स्वदेशी आंदोलन को 7 अगस्त को 1905 में शुरू किया गया ताकि लोग घरेलू उत्पादन पर निर्भर रहे और विदेशी वस्तुओं पर अंकुश लगाया जा सकें। इस आंदोलन को गांधी जी द्वारा स्वराज की आत्मा बताया गया। इस आंदोलन को और बड़ा बनाने के लिए भारतीय अमीर लोगों ने धन और भूमि का दान किया जिसकी वजह से आंदोलन और विशाल बना और इस आंदोलन ने हर घर में कपड़ा अभियान की शुरूआत की। कांग्रेस ने इस आंदोलन को शस्त्रगार के रूप में प्रयोग किया।
गदर आंदोलन
गदर आंदोलन की शुरूआत 1914 में हुई थी। यह एक अंतराष्ट्रीय राजनीतिक आंदोलन था। इस आंदोलन की स्थापना प्रवासी भारतीयों द्वारा की गई थी ताकी वह अंग्रेजों को भारतीय जमीन से उखाड़ फेंके। इस आंदोलन में सबसे अधिक पंजाबी भारतीय थे। धीरे धीरे ये आंदोलन दुनिया भर में भारतीय प्रवासी समुदायों में फैल गया। ये आंदोलन आधिकारिक तौर पर 15 जुलाई 1913 में शुरू हुआ। 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद गदर पार्टी के कुछ सदस्य भारत लौटे जो कैनेड़ा में निवासकर रहें थे और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति की शुरूआत की। इन्होंने हथियारों की तस्करी की और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की शुरूआत की और इसका नाम गदर विद्रोह रखा गया। इसके बाद जब लाहौर षड्यंत्र हुआ तो 42 के आस पास विद्रोहियों को मार दिया गया। 1914-17 में गदरियों ने जर्मनी और तुर्की में भूमिगत उपनिवेशी कार्यवाहीयां जारी रखी जिसे हिंदु-जर्मन के षड्यंत्र के रूप में जाना गया। गदर आंदोलन में प्रमुख तौर पर भाई परमानंद, विष्णु गणेश पिंगले, सोहन सिंह भकना, भगवान सिंह ज्ञानी, हरदयाल, तारक नाथ दास, भगत सिंह थिंड, करतार सिंह सराभा, अब्दुल हाफिज, मोहम्मद बाराकतुल्लाह, राशबिहारी बोस और गुलाब कौर शामिल थे। इस आंदोलन ने गांधी जी के अहिंसा के विरोध भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन को प्रभावित किया।
होम रूल आंदोलन
होम रूल आंदोलन की शुरूआत 1916 में हुई थी। इस आंदोलन का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंटी द्वारा किया गया था। होम रूल आंदोलन 1916 से 1918 में 2 साल तक चला। होम रूल आंदोलन ने भारत में राष्ट्रीवादी गतिविधियों को पुनर्जीवित किया था। इस आंदोलन की वजह से ब्रिटिश शासन पर बहुत अधिक दबाव था। इस होम रूल आंदोलन ने आगे भी लोगों में राष्ट्रयवादी भावनाएं जगाई रखी। जिसकी बाद 1947 में भारत को आजादी प्राप्त हुई। 1920 में इस ऑल इंडिया होम रूल का नाम बदला गया। ऑल इंडिया होम रूल का नाम बदलकर स्वराज्य सभा रखा गया था।
चंपारण आंदोलन
महात्मा गांधी द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के लिए चंपारण आंदोलन सविनय अवज्ञा का पहला कार्य था। इस आंदोलन की शुरूआत 1917 में बिहार के चंपारण क्षेत्र में हुई थी। नील किसान और राजकुमार शुक्ला ने गांधी जी को चंपारण किसानों की स्थित को देखने के लिए बुलाया था जो दमनकारी नियमों और उच्च करों के अधीन था। गांधी जी ने चंपारण की अपनी यात्रा में स्थानीय किसानों और जनता को बागान मालिकों और जमींदारों के खिलाफ अहिंला के मार्ग पर चलते हुए विरोध प्रदर्शन करने को कहा।
रॉलेट सत्याग्रह
ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित अराजक और क्रांतिकारी अपराध नियम 1919 को रॉलेट के तौर पर जाना जाता है। इस अधिनियम के अनुसार किसी भी व्यक्ति आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के लिए गिरफ्तार कर बिना किसी मुकदमे के दो साल की सजा दी जाती थी। इसी एक्ट के विरोध में गांधी जी ने 6 अप्रैल 1919 को एक अहिंसक सत्याग्रह के रूप में शुरू किया गया जिसे रॉलेट स्त्याग्रह के नाम से जाना गया। इस विरोध प्रदर्शन में राष्ट्रव्यापी हड़ताल की घोषणा की गई। दिल्ली में ये हड़ताल सफल रही लेकिन भारत के कुछ हिस्सों में जैसे पंजाब में इस प्रदर्शन ने हिंसा का रूप ले लिया। इसी के साथ 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड भी इस रॉलेट एक्ट के विरोध का नतीजा था।
असहयोग आंदोलन
असहयोग आंदोलन की शुरूआत 5 सितंबर 1920 में हुई थी। ये आंदोलन गांधी जी के नेतृत्व में हुआ था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य सभी बड़े स्कूलों, दफ्तरों और कार्यकर्मों का बहिष्कार करना था ताकि भारत की स्वतंत्रता का प्रतिध्वनित हो पाए। इस आंदोलन में गांधी जी ने घोषणा करते हुए कहा की वह चाहते हैं कि लोग स्वदेशी सिद्धांतों को अपनाएं और समाज में अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए काम करें। गांधी के इस आंदोलन में हजारों की तादाब में लोग आए और उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहिंसक विरोध किया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन
सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत 1930 में हुई थी। इस आंदोलन की शुरूआत गांधी जी ने अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए की। इस आंदोलन को नमक सत्याग्रह, दांडी मार्च और दांडी सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है। 1930 में कांग्रस पार्टी ने अपनी एक घोषणा में कहा था कि मुक्ति आंदोलन का मुख्य लक्ष्य पूर्ण स्वराज है। इसलिए 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज दिवस की घोषणा की गई। 1930 में गांधी जी ने साबरमति आश्रम से आंदोलन की शुरूआत की। इस आंदोलन में गांधी जी के साथ 60 हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया। साल 1931 में आखिरकार गांधी जी को जेल से रिहा किया गया।
व्यक्तिगत सत्याग्रह
1939 में दूसरे विश्व युद्ध में भारत को शामिल करने के लिए कांग्रेस के नेता ब्रिटिश सरकार से नाखुश थे। भारतीय राष्ट्रवादियों के द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश का समर्थन करने के लिए अंतरिम सरकार की मांग कर अगस्त प्रस्ताव 1940 में भारतीयों को अपना संविधान बनाने की स्वतंत्रता को स्वीकृति मिली। इसके बाद अगस्त 1940 में ही कांग्रेस ने वर्धा की एक बैठक में इस प्रस्ताव को अस्वीकार किया और पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की। इसी के बाद व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरूआत की गई। इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार पर बहुत अधिक दबाव बना दिया।
भारत छोड़ो आंदोलन
भारतीय स्वतंत्रता के लिए भारत छोड़ो आंदोलन की शुरूआत 1942 में हुई थी। कांग्रेस कार्य समिति ने वर्धा की बैठक में 14 जुलाई 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन को स्वीकार किया। अगस्त 1942 में गांधी जी अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने शुरू किया। इस आंदोलन का नतीजा ये आया की कांग्रेस पार्टी को गैरकानूनी संघ घोषित किया गया और पूरे भारत में कांग्रेस के कार्यालयों छापे मारे गए नेताओं की गिरफ्तारी की गई।