आषाढ़ पूर्णिमा को क्यों कहा जाता है गुरु पूर्णिमा और व्यास पूर्णिमा? जानिए इस बात का रहस्य

गुरु पूर्णिमा, जिसे आषाढ़ पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। इसे गुरु-शिष्य परंपरा के सम्मान और गुरु की महिमा के लिए मनाया जाता है। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना और उनके ज्ञान का सम्मान करना है। इस दिन को विशेष रूप से महर्षि वेदव्यास को समर्पित किया जाता है, जिन्होंने महाभारत और वेदों की रचना की थी।

आषाढ़ पूर्णिमा को क्यों कहा जाता है गुरु पूर्णिमा और व्यास पूर्णिमा? जानिए इस बात का रहस्य

गुरु का महत्व

हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान माना गया है। यह तीनों देवताओं की तरह ही गुरु को भी सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता और संहारक के रूप में देखा जाता है। गुरु शिष्य को अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान की रोशनी में लाते हैं।

गुरु का महत्व नीचे दिए गए श्लोक में स्पष्ट किया गया है:

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

इस श्लोक का अर्थ है कि गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं, और वे साक्षात परब्रह्म हैं। ऐसे गुरु को प्रणाम है।

आषाढ़ पूर्णिमा को क्यों कहा जाता है गुरु पूर्णिमा और व्यास पूर्णिमा?

गुरु पूर्णिमा की उत्पत्ति महाभारत के रचयिता और वेदों के संपादक महर्षि वेदव्यास से जुड़ी हुई है और वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था, इसलिए इस दिन को 'व्यास पूर्णिमा' और 'गुरु पूर्णिमा' भी कहा जाता है। वेदव्यास जी ने वेदों का विभाजन और महाभारत की रचना करके भारतीय ज्ञान और धर्म के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

गुरु पूर्णिमा का पर्व कैसे मनाया जाता है?

  • पूजा-अर्चना: इस दिन भक्तगण अपने गुरु की विशेष पूजा करते हैं। मंदिरों में और आश्रमों में विशेष पूजा-अर्चना और हवन का आयोजन होता है। शिष्य अपने गुरु के चरणों में फूल, माला, मिठाई और वस्त्र अर्पित करते हैं।
  • ध्यान और साधना: गुरु पूर्णिमा के दिन विशेष ध्यान और साधना का भी महत्व है। इस दिन शिष्य गुरु द्वारा बताए गए मार्ग पर ध्यान और साधना करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
  • भजन और कीर्तन: कई स्थानों पर भजन और कीर्तन का आयोजन होता है। शिष्य भक्ति गीत गाकर और कीर्तन करके अपने गुरु की महिमा का गुणगान करते हैं।
  • विद्यादान: गुरु पूर्णिमा के दिन ज्ञान का आदान-प्रदान भी होता है। गुरु अपने शिष्यों को विशेष ज्ञान प्रदान करते हैं और शिष्य अपने गुरु से आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं।
  • समाज सेवा: इस दिन कई स्थानों पर समाज सेवा के कार्य भी किए जाते हैं। गुरु और शिष्य मिलकर समाज के जरूरतमंद लोगों की सेवा करते हैं और उनके लिए भोजन, वस्त्र और अन्य आवश्यक सामग्री की व्यवस्था करते हैं।

गुरु पूर्णिमा के विभिन्न आयाम

गुरु पूर्णिमा का पर्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसका आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व भी है।

  • आध्यात्मिक महत्व: गुरु पूर्णिमा का पर्व शिष्य को आत्मबोध और आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है। यह शिष्य को आत्मा के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करने का अवसर देता है।
  • सामाजिक महत्व: गुरु पूर्णिमा समाज में गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व को स्थापित करता है। यह पर्व समाज में शिक्षा और ज्ञान के प्रसार को बढ़ावा देता है और गुरु के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का भाव जागृत करता है।
  • नैतिक मूल्य: गुरु पूर्णिमा का पर्व नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को स्थापित करने में मदद करता है। यह शिष्य को सदाचार, नैतिकता और धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।

गुरु पूर्णिमा का आधुनिक समय में महत्व

आज के आधुनिक युग में भी गुरु पूर्णिमा का पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि शिक्षा और संस्कृति के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

  • शिक्षा का महत्व: आधुनिक शिक्षा प्रणाली में भी गुरु का स्थान महत्वपूर्ण है। शिक्षक और प्रोफेसर आज के युग के गुरु हैं, जो विद्यार्थियों को ज्ञान प्रदान करते हैं और उनके भविष्य को संवारते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच संबंधों को मजबूत करने का अवसर मिलता है।
  • सांस्कृतिक महत्व: गुरु पूर्णिमा का पर्व भारतीय संस्कृति और परंपरा को जीवित रखने में मदद करता है। यह पर्व हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है और हमें हमारे संस्कारों का महत्व समझाता है।
  • मानवता और सेवा: आधुनिक समाज में गुरु पूर्णिमा का पर्व सेवा और मानवता के कार्यों को बढ़ावा देता है। यह पर्व हमें समाज सेवा और जरूरतमंदों की सहायता करने की प्रेरणा देता है।

गुरु पूर्णिमा का पर्व भारतीय संस्कृति और धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह पर्व गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व को दर्शाता है और गुरु के प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। आधुनिक समय में भी इस पर्व का महत्व बना हुआ है, जो शिक्षा, संस्कृति और समाज सेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देता है। गुरु पूर्णिमा का पर्व हमें नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को स्थापित करने और सदाचार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

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English summary
The origin of Guru Purnima is associated with Maharishi Ved Vyas, the author of the Mahabharata and the editor of the Vedas, and Ved Vyas ji was born on Ashadh Purnima, so this day is also called 'Vyas Purnima' and 'Guru Purnima'. Ved Vyas ji made a significant contribution to the field of Indian knowledge and religion by dividing the Vedas and composing the Mahabharata.
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