Gandhi Jayanti 2023: महात्मा गांधी ने अहिंसा के मार्ग पर चल भारत को स्वतंत्रता दिलाई। आज जिस आजाद भारत में आप और हम रह रहे हैं उसमें कई स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान रहा है, जिसमें से एक गांधी थे। उन्हें उनके योगदान के लिए राष्ट्रपिता के नाम से भी जाना जाता है। वह अहिंसा के मार्ग पर रह कर भारत को स्वतंत्रता दिलाना चाहते थे। उनका मानना था हिंसा से किसी का भला नहीं हुआ है यदि हम अहिंसा के साथ स्वतंत्रता प्राप्त करते हैं तो इससे बड़ी और कोई ताकत नहीं होगी।
आज जिन्हें अहिंसा का पुजारी कहा जाता है उसे अहिंसा का रास्ता किसने दिखाया ये कोई नहीं जानता। जो इतिहास हमनें स्कूलों में पढाया गया है उसमें केवल इतना ही लिखा है कि रंग भेद के शिकार हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जब भारत लौटे थे तो उन्होंने देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अहिंसा का मार्ग चुना था। यह कह सकते हैं कि उन्होंने अपने अहिंसात्मक आंदोलन की शुरुआत यहां सी की थी।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि अहिंसा का मार्ग दिखाने वाले उनके शिक्षक कौन थें। हम सभी पर्दे के आगे की कहानी तो जानते हैं लेकिन बैकस्टेज पर कोई ध्यान नहीं देता है। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको बैकस्टेज की कहानी यानी कि अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले उनके शिक्षक के बारे में आपको बताएंगे, उनका नाम सुन कर आप भी एक दम दंग रह जाएंगे। गांधी जी की आत्मकथा में इस बात का जिक्र किया गया है।
बहुत गुस्सैल थे गांधी के पिता
ये तो हम सभी जानते हैं कि महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता पोरबंदर के दीवान हुआ करते थे। गांधी जी के पिता सत्यप्रिय, उदार और कुटुम्ब प्रेमी तो थे ही लेकिन वह बहुत गुस्से वाले भी थे। गांधी जी ने अपने पिता का जिक्र अपनी आत्मकथा में किया है, उन्होंने अपने पिता के बारे में बताते हुए कहा कि पिताजी ने शिक्षा अनुभव से प्राप्त की थी। स्कूली स्तर की शिक्षा उन्होंने उतनी ही पाई थी जितनी आज के समय की प्राइमरी है। धार्मिक शिक्षा की बात करते हुए उन्होंने बताया कि पिताजी के पास उतनी ही धार्मिक शिक्षा थी जो कथा और पुराण सुनने से प्राप्त होती थी। वहीं अपनी आत्मकथा में अपनी मां का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा कि वो एक साध्यवी थीं, जो पूजा-पाठ बहुत ज्यादा किया करती थी। उन्होंने बताया कि उनकी मां बिना पूजा किए अन्न का एक दाना भी लेती थी और रोज वैष्णव मंदिर जाया करती थीं।
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गलत संगत में पड़े गांधी
शोध के अनुसार महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि युवा अवस्था में आते-आते वो गलत संगत में पड़ गये थे। उन्होंने एक बार चोरी भी की। और तो और पढ़ाई में मन नहीं लगने की वजह से दोस्तों के साथ इधर-उधर घूमते और दिन भर खलिहरों की तरह काट देते। नौकरों की जेब से पैसे चुराना और दोस्तों के साथ धूम्रपान करना, उनकी आदत बन गया था।
पत्नी पर करते थे हद से ज्यादा शक
जब गांधी महज 7 साल की उम्र में उनकी सगाई हुई थी। जब वह 13 साल के थे और कक्षा 10वीं में पढ़ रहे थे तब उनका विवाह पोरबंदर के एक व्यापारी गोकुलदासजी की पुत्री कस्तूरबा बाई से हुआ था। जैसे आज के समय में लोग अपने पार्टनर पर शक किया करते हैं वैसे ही कुछ हालात उस समय गांधी जी के भी थे। गांधी जी अपनी पत्नी के चाल-चलन पर पूरी तरह से नजर बनाए हुए थे। वे इसे अपना अधिकार माना करते थे।
एक शोध के अनुसार उन्होंने अपनी आत्मकथा में इसका जिक्र किया है। पत्नी पर शक का उनके पास कोई कारण नहीं था, लेकिन उनका मानना था कि मेरी स्त्री कहां जाती है क्या करती है उसके बारे में मुझे जानकारी होनी चाहिए। वह कहते थे कि मेरी पत्नी मेरी अनुमति के बिना कहीं नहीं जा सकती। उन्होंने पूरी तरह से अपनी पत्नी पर चौकसी लगा रखी थी।
वहीं उनकी पत्नी कस्तूरबा बाई कैद सहन करने वाले लोगों में से नहीं थी। गांधी की इस बात से दोनों में अक्सर झगड़ा भी हुआ करता था। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा की वह जहां जाना चाहती थी, जरूर जाती थी। ज्यों-ज्यों मैं दबाव डालता, त्यों-त्यों वह अधिक स्वतंत्रता दिखाती थी और इससे मैं बहुत अधिक चिढ़ता था। इस प्रकार का था उनका वैवाहिक जीवन, लेकिन बात यहां खत्म नहीं होती है। अपने अनुसार अपनी पत्नी पर अधिकार जमाने वाले गांधी को अहिंसा का पाठ किसने पढ़ाया ये कहानी इसके बाद ही तो शुरू होती है आइए आगे जानें...
किसने पढ़ाया गांधी जी को अहिंसा का पाठ
शंका ना होते हुए भी अपनी पत्नी के चाल-चलन पर नजर रखने वाले गांधी जी को इन्हीं संदेहों और आशंकाओं के दुख भरे दिनों से बहुत कुछ सीखने को मिला। अपनी पत्नी को अपने आगे झुकाने की कोशिश में उन्होंने अपनी पत्नी से अहिंसा के पालन का सबक जो सीखा था।
उन्होंने महसूस किया कि कस्तूरबा बाई एक और उनके द्वारा दिए विवेकहीन आदेशों का दृढ़ता से विरोध करती थी तो दूसरी तरफ उनके अविचार से जो उन्हें तकलीफ होती थी उसे वह चुपचाप सह लेती थीं। उनके इसी आचरण को देख एक समय ऐसा आया की गांधी जी को खुद पर शर्म आने लगी। यहां से उन्होंने पति होने के नाते अपनी पत्नी पर शासन के जन्मसिद्ध अधिकार जैसी भावना से अपना पीछा छुड़ाया। उसके बाद से गांधी ने अपने मन में कभी भी हिंसात्मक सोच नहीं लाए। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मेरी पत्नी कस्तूरबा वो शिक्षक है, जिसने मुझे अहिंसा की पहली शिक्षा दी।
इस प्रकार कस्तूरबा गांधी वो शिक्षक बनी जिसने गांधी जी को अहिंसा का पाठ पढ़ाया।
महात्मा गांधी ने किया कस्तूरबा बाई के स्वाभाव का वर्णन
महात्मा गाँधी कस्तूरबा बाई के स्वभाव को वर्णित करते हुए लिखते हैं , "कस्तूरबाबाई निरक्षर स्वभाव से सीधी, स्वतंत्र, मेहनती और मितभाषी थीं। उन्हें अपनी अज्ञानता से असंतोष नहीं था। उन्हें पढ़ाने की मुझे बड़ी हवस थी, किन्तु मेरी विषयवासना भी इस मार्ग में बाधक थी, काठियावाड़ में घूंघट का निकम्मा और जंगली रिवाज़ था, यह भी मेरे लिए प्रतिकूल था। नतीजा यह हुआ कि आज कस्तूरबा बाई मुश्किल से चिट्ठी भर लिख और साधारण गुजराती समझ सकती हैं।" तो इस प्रकार कस्तूरबा गांधी वो शिक्षक थीं, जिनके छात्र ने ही उन्हें पढ़ना लिखना सिखाया और उस छात्र ने अहिंसा का पाठ खुद तो पढ़ा ही साथ ही पूरी दुनिया को उसी दिशा में चलना सिखाया। उम्मीद है, यह आर्टिकल आप अपने मित्रों के साथ जरूर शेयर करेंगे।
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