Chhath Puja: 4 दिन क्यों मनाया जाता है छठ पूजा का पर्व? जानिए इन चारों दिनों के महत्व के बारे में

भारत में छठ पूजा एक प्रमुख पर्व के रूप में मनाया जाता है, विशेषकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में। यह पर्व पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ सूर्य देवता और छठी मैया को समर्पित है। छठ पूजा की खास बात यह है कि इसे चार दिनों तक मनाया जाता है। इन चार दिनों में भक्तगण कठिन उपवास, नियमों और परंपराओं का पालन करते हैं। प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व और उद्देश्य होता है।

4 दिन क्यों मनाई जाती है छठ पूजा? जानिए इन चारों दिनों के महत्व के बारे में

आइए जानते हैं कि छठ पूजा के इन चार दिनों का महत्व क्या है और क्यों इसे चार दिनों तक मनाया जाता है।

पहला दिन - नहाय खाय

छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रती (जो व्रत रखते हैं) सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी, तालाब या किसी अन्य जलाशय में स्नान करते हैं। इस स्नान का उद्देश्य शारीरिक और मानसिक शुद्धता को प्राप्त करना होता है। स्नान के बाद घर में पूरी सफाई की जाती है, और इस दिन भोजन को शुद्धता के साथ तैयार किया जाता है। भोजन में कद्दू-भात (चावल) और चने की दाल प्रमुख रूप से बनाई जाती है। यह भोजन पूरी तरह से सात्विक होता है और इसमें लहसुन-प्याज का प्रयोग नहीं किया जाता।

नहाय खाय का मुख्य उद्देश्य व्रती को आंतरिक रूप से शुद्ध करना और उन्हें आने वाले तीन दिनों के कठिन उपवास के लिए तैयार करना होता है। इस दिन को उपवास की शुरुआत के रूप में देखा जाता है और इसका धार्मिक महत्व है कि व्यक्ति अपने तन, मन और आत्मा को शुद्ध करके पूजा के लिए तैयार हो।

दूसरा दिन - खरना

छठ पूजा का दूसरा दिन खरना के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जल उपवास रखते हैं और शाम को प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना के समय खासतौर पर गन्ने के रस से बनी खीर, रोटी और केला का प्रसाद तैयार किया जाता है। इस प्रसाद को पूरी शुद्धता और पवित्रता के साथ बनाया जाता है। खरना के प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रती अगले दिन तक निर्जल उपवास का संकल्प लेते हैं।

खरना का महत्व यह है कि इस दिन व्रती अपने जीवन में संयम, अनुशासन और संकल्प की भावना को जागृत करते हैं। यह उपवास का सबसे कठिन चरण होता है, क्योंकि इसके बाद व्रती अगले दो दिनों तक बिना जल के उपवास रखते हैं। खरना के इस प्रसाद को ग्रहण करने से व्रती का मनोबल और आत्मबल बढ़ता है, जिससे वे आगे के कठिन उपवास के लिए तैयार होते हैं।

तीसरा दिन - संध्या अर्घ्य

छठ पूजा का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन व्रती और उनके परिवार के सदस्य सूर्यास्त के समय सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य देने के लिए व्रती नदी, तालाब या किसी जलाशय के किनारे इकट्ठा होते हैं और सूर्यास्त के समय सूर्य देव को जल अर्पित करते हैं।

अर्घ्य देने के समय विशेष रूप से बांस की टोकरियों में ठेकुआ, चावल के लड्डू, गन्ना, नारियल, केला और अन्य फलों को प्रसाद के रूप में सजाया जाता है। यह प्रसाद पूरी श्रद्धा और प्रेम के साथ सूर्य देवता को अर्पित किया जाता है। संध्या अर्घ्य का महत्व यह है कि इस समय सूर्य देव को प्रणाम कर उन्हें धन्यवाद दिया जाता है और उनसे आशीर्वाद की कामना की जाती है। सूर्य देव के प्रति श्रद्धा और आभार प्रकट करते हुए व्रती अपने परिवार और समाज के कल्याण की कामना करते हैं।

चौथा दिन - उषा अर्घ्य

छठ पूजा का चौथा और अंतिम दिन उषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती सुबह जल्दी उठकर उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तैयार होते हैं। उषा अर्घ्य का समय सूर्योदय से ठीक पहले का होता है। व्रती अपने परिवार और समाज के लोगों के साथ नदी या तालाब के किनारे एकत्र होते हैं और उगते सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी पूजा का समापन करते हैं।

इस अर्घ्य का महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि यह उगते सूर्य की शक्ति और ऊर्जा का स्वागत करने के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। उषा अर्घ्य के समय सूर्य देव से अपने परिवार की खुशहाली, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना की जाती है। इस अंतिम अर्घ्य के बाद व्रती अपना उपवास समाप्त करते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस दिन छठी मैया और सूर्य देव का विशेष धन्यवाद और आभार व्यक्त किया जाता है।

छठ पूजा का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

छठ पूजा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और सामाजिक त्योहार भी है। इस पर्व में समाज के लोग एकजुट होते हैं और एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ खड़े होते हैं। यह पर्व जीवन में अनुशासन, संयम, और आस्था के महत्व को भी दर्शाता है।

छठ पूजा में पारंपरिक गीत गाए जाते हैं, जो इस पर्व का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। इन गीतों में छठी मैया और सूर्य देव की महिमा का गुणगान किया जाता है। छठ पूजा का उद्देश्य हमें पर्यावरण और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने की शिक्षा भी देता है। सूर्य, जल और प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी और कर्तव्य को यह पर्व पुनः स्मरण कराता है।

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English summary
Chhath Puja is celebrated as a major festival in India, especially in Bihar, Jharkhand, Uttar Pradesh and some parts of Nepal. This festival is dedicated to the Sun God and Chhathi Maiya with full devotion and faith. The special thing about Chhath Puja is that it is celebrated for four days. During these four days, devotees follow strict fasting, rules and traditions. Each day has its own special significance and purpose.
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