विराट कोहली का नाम सुनते ही हमें क्रिकेट के मैदान पर उनके शानदार खेल और दृढ़ संकल्प की याद आ जाती है। एक महान क्रिकेटर होने के अलावा, विराट की शख्सियत में एक आकर्षक सादगी और साहस है, जिसने उन्हें करोड़ों प्रशंसकों का चहेता बना दिया है। उनकी शिक्षा और पढ़ाई के बारे में जानना भी दिलचस्प है, क्योंकि एक खिलाड़ी के रूप में उनकी सफलता का सफर आम जीवन की कठिनाइयों और सीखों से भरा हुआ है।
आइए किंग कोहली के शैक्षिक सफर पर नज़र डालते हैं।
शुरुआती जीवन और स्कूलिंग
विराट कोहली का जन्म 5 नवंबर 1988 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता प्रेम कोहली एक वकील थे, और माता सरोज कोहली गृहिणी हैं। एक मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले विराट ने अपनी स्कूली शिक्षा दिल्ली के विशाल भारती पब्लिक स्कूल से शुरू की। उनकी पढ़ाई में रुचि शुरू से ही खेलों की ओर अधिक थी, और इस दौरान उन्होंने क्रिकेट के प्रति गहरी रुचि और जुनून विकसित किया। विराट की मां के अनुसार, विराट बचपन से ही पढ़ाई के बजाय खेल में ज्यादा ध्यान देते थे, लेकिन परिवार ने उन्हें हमेशा खेल में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
क्रिकेट में दिलचस्पी और शिक्षा पर असर
स्कूल के दौरान ही विराट की क्रिकेट के प्रति बढ़ती रुचि ने उन्हें पढ़ाई के बजाय मैदान की ओर खींच लिया। उनकी प्रतिभा को देखते हुए परिवार ने उनका दाखिला वेस्ट दिल्ली क्रिकेट अकादमी में करवा दिया, जहाँ उन्होंने प्रसिद्ध कोच राजकुमार शर्मा के मार्गदर्शन में अपने खेल को संवारना शुरू किया। इस अकादमी में ही उन्होंने अपनी बुनियादी क्रिकेट की शिक्षा और अभ्यास किया, जिसने उन्हें आगे बढ़ने में मदद की।
जब विराट ने क्रिकेट में गंभीरता से करियर बनाने का फैसला किया, तो उनका ध्यान पढ़ाई से धीरे-धीरे हटता चला गया। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा को जारी रखते हुए क्रिकेट में अपने सपनों को पूरा करने की दिशा में मेहनत की। विराट ने 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की और उसके बाद अपने करियर पर पूरी तरह से फोकस करने के लिए औपचारिक शिक्षा को छोड़ दिया। उनका मानना था कि क्रिकेट में उन्हें अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए अधिक समय और प्रयास देना जरूरी है।
शिक्षा छोड़कर क्रिकेट में करियर बनाने का फैसला
12वीं के बाद विराट ने उच्च शिक्षा को छोड़कर पूरी तरह से क्रिकेट में करियर बनाने का फैसला किया। इस निर्णय के पीछे उनके आत्म-विश्वास और अपने सपनों को पूरा करने की दृढ़ता थी। विराट का यह निर्णय तब काफी जोखिम भरा था, लेकिन उनकी मेहनत और दृढ़ संकल्प ने उन्हें सही साबित किया। धीरे-धीरे वे अंडर-19 क्रिकेट में भारत का प्रतिनिधित्व करने लगे और फिर उन्होंने भारतीय सीनियर टीम में जगह बनाई।
विराट का क्रिकेट करियर उस समय गति पकड़ चुका था, और वे 2008 में अंडर-19 वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम के कप्तान बने। इस जीत ने उनके करियर को नई ऊंचाईयों पर पहुंचा दिया। इसके बाद वे राष्ट्रीय टीम में शामिल हुए और अपनी बेहतरीन बल्लेबाजी और नेतृत्व कौशल से भारतीय क्रिकेट टीम में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया।
पढ़ाई से ज्यादा सीखने पर जोर
विराट कोहली ने औपचारिक शिक्षा को भले ही छोड़ दिया हो, लेकिन जीवन के अनुभवों से उन्होंने बहुत कुछ सीखा। क्रिकेट के मैदान पर हर चुनौती ने उन्हें और भी मजबूत बनाया। उन्होंने इस सफर में जो अनुभव प्राप्त किए, वे किसी भी शिक्षा से कम नहीं हैं। विराट का मानना है कि खेल और जीवन में अनुभव ही सबसे बड़ा शिक्षक होता है। वे अपनी गलतियों से सीखते रहे और हर बार एक नई ऊर्जा और जुनून के साथ मैदान पर लौटे।
प्रेरणा और जीवन के सबक
विराट कोहली का शैक्षिक सफर भले ही औपचारिक शिक्षा में सीमित रहा हो, लेकिन उन्होंने क्रिकेट के मैदान पर जो अनुशासन, मेहनत, और फोकस दिखाया है, वह किसी भी शिक्षा प्रणाली से अधिक मूल्यवान है। वे युवाओं के लिए प्रेरणा हैं कि कैसे अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होकर हर कठिनाई को पार किया जा सकता है। विराट ने साबित किया कि सफलता के लिए केवल किताबों की पढ़ाई ही जरूरी नहीं है, बल्कि अपने जुनून और मेहनत से भी बड़े मुकाम हासिल किए जा सकते हैं।
विराट कोहली की कहानी हमें सिखाती है कि चाहे औपचारिक शिक्षा किसी भी स्तर तक हो, जीवन में सफल होने के लिए आपके पास जुनून, दृढ़ता और अनुशासन होना चाहिए।