Pingali Venkayya Death Anniversary: पिंगली वेंकय्या भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख व्यक्ति थे, जिनका नाम भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के डिज़ाइनर के रूप में याद किया जाता है। उनका जन्म 2 अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के भाटलापेनुमारु गांव में हुआ था। वेंकय्या का जीवन संघर्ष, देशभक्ति, और भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के प्रति उनकी अटूट निष्ठा का प्रतीक है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
पिंगली वेंकय्या का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका परिवार सामान्य आर्थिक स्थिति में था, लेकिन वेंकय्या की शिक्षा में उनकी माता-पिता ने कोई कमी नहीं आने दी। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही प्राप्त की। बाद में, वे उच्च शिक्षा के लिए मैड्रास (अब चेन्नई) और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए।
भारतीय सेना में सेवा
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, वेंकय्या ने भारतीय सेना में काम किया और एंग्लो-बोअर युद्ध (1899-1902) में भाग लिया। इस युद्ध के दौरान, उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की, जहां उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। गांधीजी के विचारों और देशभक्ति से प्रभावित होकर, वेंकय्या ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का निर्णय लिया।
राष्ट्रीय ध्वज की खोज
स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लेने के दौरान, पिंगली वेंकय्या ने महसूस किया कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक प्रतीकात्मक ध्वज की आवश्यकता है, जो सभी भारतीयों को एकजुट कर सके। उन्होंने भारतीय ध्वज के डिज़ाइन पर काम करना शुरू किया और विभिन्न रंगों और प्रतीकों के संयोजन का अध्ययन किया।
वेंकय्या ने विभिन्न डिजाइन प्रस्तुत किए, जिनमें लाल और हरे रंग के पट्टियों के साथ चरखा का प्रतीक था। उनका मानना था कि लाल रंग हिंदुओं का, हरा रंग मुस्लिमों का, और चरखा स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। महात्मा गांधी ने उनके डिज़ाइन को स्वीकार किया और कुछ परिवर्तनों के साथ इसे भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया।
1921 का अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन
1921 में, विजयवाड़ा में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन के दौरान, पिंगली वेंकय्या ने अपने ध्वज का डिज़ाइन महात्मा गांधी को प्रस्तुत किया। गांधीजी ने इस डिज़ाइन को स्वीकार किया और इसे भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया। इस ध्वज में लाल और हरे रंग की पट्टियों के बीच में सफेद पट्टी और चरखा था, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बना।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
पिंगली वेंकय्या न केवल भारतीय ध्वज के डिज़ाइनर थे, बल्कि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी भी की। वे कांग्रेस के सदस्य रहे और विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया। वेंकय्या ने अपना जीवन देश की सेवा और स्वतंत्रता संग्राम के प्रति समर्पित कर दिया।
स्वतंत्रता के बाद का जीवन
भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, पिंगली वेंकय्या का जीवन कठिनाइयों से भरा रहा। उन्हें सरकार या किसी अन्य संस्था से विशेष सम्मान या आर्थिक सहायता नहीं मिली। उनका जीवन सामान्य और संघर्षमय रहा, लेकिन उन्होंने अपने योगदान और देशभक्ति पर गर्व किया।
निधन
पिंगली वेंकय्या का निधन 4 जुलाई 1963 को विजयवाड़ा में हुआ। उनके निधन के बाद भी, उनके योगदान को धीरे-धीरे पहचान मिली और आज वे भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रचनाकार के रूप में सम्मानित होते हैं।
विरासत
पिंगली वेंकय्या का जीवन और योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनका डिज़ाइन किया हुआ भारतीय ध्वज आज भारत की स्वतंत्रता, एकता और अखंडता का प्रतीक है। वेंकय्या के सम्मान में कई स्मारक और संस्थान स्थापित किए गए हैं।
सम्मान और मान्यता
पिंगली वेंकय्या के योगदान को पहचानने के लिए उन्हें मरणोपरांत कई सम्मान और पुरस्कार दिए गए हैं। 2009 में, भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। उनके जन्मदिवस 2 अगस्त को राष्ट्रीय ध्वज दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव भी पेश किया गया है।
पिंगली वेंकय्या का जीवन और योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमूल्य हैं। उनके द्वारा डिजाइन किया गया भारतीय राष्ट्रीय ध्वज न केवल स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक है, बल्कि आज भी यह भारतीयता, एकता, और अखंडता का प्रतीक है। वेंकय्या का जीवन हमें यह सिखाता है कि देशभक्ति और समर्पण के साथ किए गए प्रयास हमेशा अमर रहते हैं और उनकी गूंज पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई देती है। पिंगली वेंकय्या को भारत हमेशा उनके अमूल्य योगदान के लिए याद रखेगा और उनके प्रति कृतज्ञ रहेगा।