Gulzarilal Nanda Jayanti: गुलजारीलाल नंदा एक प्रमुख भारतीय राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी थे, जो दो बार भारत के कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। उनका जन्म 4 जुलाई 1898 को पंजाब के सियालकोट में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। नंदा का जीवन भारतीय राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
गुलजारीलाल नंदा का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बलदेव दास नंदा था। प्रारंभिक शिक्षा के बाद, उन्होंने लाहौर के फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की।
स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी
गुलजारीलाल नंदा ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर 1921 में असहयोग आंदोलन में भाग लिया। नंदा ने साबरमती आश्रम में महात्मा गांधी के साथ काम किया और उनके विचारों को आगे बढ़ाया। उन्होंने 1930 में नमक सत्याग्रह और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया और कई बार जेल भी गए।
राजनीतिक करियर
गुलजारीलाल नंदा का राजनीतिक करियर स्वतंत्रता संग्राम के बाद शुरू हुआ। वे 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, बंबई (अब मुंबई) विधानसभा के सदस्य बने। 1950 में, उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। 1952 में, नंदा ने पहले आम चुनाव में लोकसभा के सदस्य के रूप में चुनाव लड़ा और विजयी हुए।
केंद्रीय मंत्री के रूप में
गुलजारीलाल नंदा ने अपने राजनीतिक करियर में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। वे नेहरू सरकार में श्रम मंत्री बने और श्रमिकों के हित में कई महत्वपूर्ण नीतियों और सुधारों को लागू किया। उन्होंने श्रमिक संघों को मान्यता दिलाने और मजदूरों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई कानून बनाए।
कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में
गुलजारीलाल नंदा दो बार भारत के कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। पहली बार, वे 27 मई 1964 को पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री बने। उन्होंने 13 दिन तक इस पद पर कार्य किया, जब तक कि लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री नियुक्त नहीं किया गया।
दूसरी बार, वे 11 जनवरी 1966 को लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। इस बार भी, उन्होंने 13 दिन तक इस पद पर कार्य किया, जब तक कि इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री नियुक्त नहीं किया गया।
बाद का जीवन और योगदान
प्रधानमंत्री पद के बाद, गुलजारीलाल नंदा ने राजनीति से धीरे-धीरे दूरी बना ली। हालांकि, उन्होंने समाज सेवा और गांधीवादी सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार में अपना योगदान जारी रखा। उन्होंने अपने जीवन को सादगी और ईमानदारी से जिया और हमेशा गांधीजी के आदर्शों का पालन किया।
निधन
गुलजारीलाल नंदा का निधन 15 जनवरी 1998 को अहमदाबाद, गुजरात में हुआ। उनकी मृत्यु के समय, वे 99 वर्ष के थे। नंदा का जीवन भारतीय राजनीति और समाज सेवा के क्षेत्र में एक प्रेरणा स्रोत है।
विरासत
गुलजारीलाल नंदा का जीवन और योगदान भारतीय राजनीति और समाज के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा हैं। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी की और स्वतंत्रता के बाद भारतीय राजनीति में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। नंदा ने हमेशा सादगी, ईमानदारी और नैतिकता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया।
सम्मान और पुरस्कार
गुलजारीलाल नंदा को उनकी सेवाओं और योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए। 1997 में, उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उनके जीवन भर की सेवाओं और देश के प्रति उनके समर्पण को मान्यता देने के लिए दिया गया था।
गुलजारीलाल नंदा का जीवन और योगदान भारतीय राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उन्होंने अपने जीवन में सादगी, ईमानदारी और निष्ठा के साथ सेवा की और समाज और देश के लिए अपने कर्तव्यों का पालन किया। उनके आदर्श और सिद्धांत आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं और हमें यह सिखाते हैं कि सच्ची सेवा और समर्पण से ही समाज और देश की प्रगति संभव है।