मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर का जमुनिया गॉंव आज अचानक सोशलमीडिया में ट्रेंड होने लगा। कारण था गॉंव के निवासी चिंटू सिंह सिलावट, जो बिना किसी तालाब के या नदी के पास जाये बगैर मछली पालन कर रहे हैं और हर महीनें लाखों की कमाई होने लगी है। मछली पालन की लेटेस्ट टेक्नोलॉजी बायोफ्लॉक तकनीक की वजह से आज चिंटू लाखों लोगों के लिए इंस्पिरेशन बन गये हैं, और तो और यहां की कलेक्टर भी उनसे काफी प्रभावित हुईं हैं। इस वजह से वो ट्विटर और फेसबुक पर भी ट्रेंड हो रहे हैं।
अगर आप भी उद्यमी बनने की सोच रहे हैं और आपके पास नया बिजनेस शुरू करने की पूंजी है, तो आप भी चिंटू की तरह मछली पालन का बिजनेस शुरू कर सकते हैं। चिंटू ने कैसे बिजनेस शुरू किया और कैसे इसमें सफलता हासिल की, उस पर चर्चा करने से पहले आइये जानते हैं बायोफ्लॉक टेक्नोलॉजी होती क्या है।
क्या है बायोफ्लॉक मछली पालन टेक्नोलॉजी (What is Biofloc Fish Culture)?
जैसा कि आप जानते हैं कि 2020 में केंद्र सरकार ने अपने बजट में ब्लू रेवोल्यूशन यानि नीली क्रांति की बात की थी, दरअसल वो क्रांति केवल तटीय शहरों या नदियों के पास बने शहरों व कस्बों तक सीमित नहीं रहेगी। इसे देश के हर कोने तक पहुंचाने का कार्य केंद्र द्वारा जारी है, ताकि रोजगार बढ़ सके।
इसी के अंतर्गत एक टेक्नोलॉजी है जिसे बायोफ्लॉक टेकनोलॉजी (BFT) कहते हैं। इसके अंतर्गत बड़े-बड़े टैंक बना कर उनमें सूक्ष्मजीवों को पैदा किया जाता है। इसमें एक टैंक में पानी भर कर या कृत्रिम तालाब बना कर उसमें जैविक तत्वों, फाइटोप्लैंकटोन, बैक्टीरिया, आदि को डाल कर पानी का वातावरण मछलियों के रहने के अनुकूल बनाया जाता है।
इसमें मछलियों को दिए जाने वाले दाने को खाने के बाद अपशिष्ट निकलता है। बायोफ्लॉक एक प्रकार का जीवाणु है, जो मछली के इस अपशिष्ट को प्रोटीन में बदल देता है। इस प्रोटीन के सेवन से मछलियों की संख्या तेजी से बढ़ती है और संसाधनों की बहुत बचत हो जाती है। साथ ही ये छोटे-छोटे जीव मछलियों को अनुकूल वातावरण देते हैं। और हां उनका आहार भी बनते हैं। हालांकि केयरटेकर को ऊपर से मछली का भोजन भी मुहैया कराना होता है। मछलियों का प्रजनन भी इसी तालाब में होता है और देखते ही देखते उनकी संख्या बढ़ जाती है। जब मछलियां बड़ी हो जाती हैं, तब उन्हें मार्केट में ले जाकर बेच दिया जाता है।
बायोफ्लॉक तकनीकी से पैदा हुईं मछलियों की कीमत होती है ज्यादा
खास बात यह है कि यह तकनीक पूरी तरह ईकोफ्रेंडली है और इन कृत्रिम तालाबों में पैदा होने वाली मछलियां, झील व नदियों में पैदा होने वाली मछलियों की तुलना में ज्यादा स्वस्थ्य होती हैं। दरहसल शहरों से निकलने वाली नदियों व झीलों में नालों का पानी छोड़ा जाता है, जिसमें तरह-तरह के केमिकल होते हैं।
जाहिर है पानी में पैदा होने वाली मछलियों के शरीर में भी वो केमिकल तत्व पहुंचते ही हैं। वहीं बायोफ्लॉक तालाबों में मछलियों को एकदम स्वच्छ वातावरण मिलता है। उनका प्रोटीन भी काफी अच्छी क्वालिटी का होता है। इसलिए इन मछलियों की कीमत बाजारू मछलियों की तुलना में अधिक होती है। कई जगह इसे ऑगैनिक फिश की तरह बेचा जाता है, ठीक वहैसे ही जैसे ऑर्गेनिक फ्रूट्स एंड वेजिटेबल्स।
नरसिंहपुर के चिंटू कैसे बनें प्रेरणा के स्रोत
गोटेगांव तहसील के सिलावट ग्राम के निवासी चिंटू सिंह सिलावट आज से करीब तीन साल पहले तक अपने 3 एकड़ खेत में छोटी-मोटी खेती कर साल भर में 25 से 30 हजार रुपए कमा लेते थे। 2020 में जब चिंटू को इस टेक्नोलॉजी के बारे में पता चला तो उन्होंने मत्स्य पालन विभाग से संपर्क किया और बायोफ्लॉक तकनीकी का पूरा प्रशिक्षण हासिल किया। विभाग की ओर से उन्हें 7 लाख रुपए का ऋण भी मिला, जिसमें 4.50 लाख रुपए की सब्सिडी शामिल थी। उन्होंने फंगेसियस एवं तिलापिया प्रजाति की मछलियों का पालन शुरू किया।
चिंटू सिलावट के अनुसार बताया कि बायोफ्लॉक तकनीक के लिए अधिक जमीन की आवश्यकता नहीं होती। उन्होंने 2000 वर्गफीट जमीन पर पांच गोल टैंक बनाकर मछली पालन शुरू किया और बाकी की जमीन पर खेती जारी रखी। टैंक से निकलने वाले पानी का उपयोग वे अपनी खेती में करते हैं।
खास बात यह है कि इस पानी में ऐसे पोषक तत्व रहते हैं, जो मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं। चिंटू सिंह के अनुसर अब उनकी कमाई 2.50 लाख रुपये हो गई है। वे बैंक ऋण भी चुका चुके हैं। इसके अलावा चिंटू पोल्ट्री फार्म से हर माह 30 से 40 हजार रुपये कमा लेते हैं।
कैसे प्रभावित हुईं जिले की कलेक्टर ऋजु बाफना
दरअसल चिंटू ने अपने इस अनुभव को खुद तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने गांव के करीब 25 लोगों को इस तकनीक के बारे में बताया और उन्हें प्रॉपर ट्रेनिंग दी। यह खबर जब तहसील की कलेक्टर ऋजु बाफना तक पहुंची तो वे खुद चिंटू के घर पहुंचीं और उनसे बात की। ऋजु बाफना ने अपने ट्विटर और फेसबुक पर इस कहानी को शेयर भी किया।
बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन के बारे में और भी जानकारी हम आगे देने जा रहे हैं। कृपया आप हमारे साथ आगे भी बने रहें।
बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन पर कितना आता है खर्च?
मत्स्य विभाग से प्राप्त जानकारी के आधार पर हम आपके समक्ष उन सभी खर्चों का ब्योरा दे रहे हैं जो इस बिजनेस को शुरू करने में होता है। उम्मीद है यह टेबल आपके लिए कारगर साबित होगी। 7 टैंक के लिए कुल 7.5 लाख रुपए का खर्च आता है। यह टेबल 7 टैंक के लिए आने वाले खर्च पर आधारित है-
क्रं. सं. | कंपोनेंट | कुल खर्च रुपए में |
1 | 7 ट्रैपोलीन फाइबर टैंक | 1.75 लाख |
2 | शेड के लिए सामान | 1.20 लाख |
3 | वॉटर सप्लाई के लिए बोरवेल | 1 लाख |
4 | PVC पाइप फिटिंग | 75 हजार |
5 | जाली एवं लगाने का सामान | 15 हजार |
6 | ब्लोअर | 30 हजार |
7 | विद्युत कनेक्शन | 10 हजार |
8 | पावर जैनरेटर | 45 हजार |
9 | तराजू | 10 हजार |
10 | अन्य खर्च एवं लेबर | 20 हजार |
11 | बीज, प्रोबायोटिक, टेस्ट किट, आदि | 1.5 लाख |
कुल खर्च | 7.5 लाख रुपए |
आगे जानिए कैसे आपकी कमाई इस प्लांटे लगाने के बाद शुरू होगी और अगर आप इसका विस्तार करते हैं तो कैसे आमदनी को कई गुना बढ़ा सकते हैं।
बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन से कब कितनी होती है कमाई?
इस टेबल में भी हम 7 टैंक वाले प्लांट से होने वाली कमाई की बात करेंगे। जैसा कि ऊपर आप देख चुके हैं कि इसमें कैपिटल कॉस्ट 6.5 लाख रुपए आता है और ऑपरेशनल कॉस्ट 1.5 लाख रुपए आती है। यानि कि शुरुआत में 7.5 लाख रुपए खर्च होते हैं। अब टेबल में देखिये कि कब कमाई शुरू होती है और कितनी आमदनी होती है।
क्र.सं | कंपोनेंट | कमाई रुपए में |
1 | कैपिटल कॉस्ट | 6 लाख |
2 | ऑपरेशनल कॉस्ट | 1.5 लाख |
3 | टोटल प्रोजेक्शन कॉस्ट | 7.5 लाख |
4 | फसल पर होने वाली औसत आमदनी | 5.46 लाख |
5 | पहली फसल के बाद होने वाली आमदनी | 3.96 लाख |
6 | दूसरी फसल पर लागत निकालने के बाद आमदनी | 5.46 लाख |
7 | दो फसलों के बाद कुल आमदनी | 9.43 लाख |
8 | डैप्रिसिएशन और मेनटेनेंस का खर्च | 95.5 हजार |
9 | 12 प्रतिशत ब्याज अगर आपने लोन लिया है | 90 हजार |
10 | लोन की ईएमआई | 1.07 लाख |
11 | अगली फसल के लिए पूंजी | 1.5 लाख |
12 | दूसरी फसल पूरी होने के बाद कुल प्रॉफिट 9.42- (0.975+0.9+1.07+1.50) | 4.975 लाख |
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