भारत की स्वतंत्रता से पहले करीब 700 के आस पास आदिवासी समुदाय हुआ करते थे। इस सभी आदिवासी समुदायों ने भी वही अत्याचार झेले हैं जो गुलामी के दौरान अन्य लोगों ने झेले थे या फिर यू कहें की उससे भी अधिक अत्याचार इन अदिवासी समुदायों को झेलना पड़ा है। धर्म परिवर्तन, जमीन एक्ट, कृषि रक रोक, पारंपरिक कार्यों पर रोक यहां तक की इनता शोषण भी किया गया। इनकी सभी जमीनों पर कब्जा किया गया और उसके बाद कर वसुली आदि कर इन्हें परेशान किया। ऐसे ही स्थितियों को देखते हुए इन्हीं समुदायों में कुछ ऐसे योद्धा निकल कर आए जिन्होंने इन अत्याचारों के खिलाफ अवाज उठाई और विद्रोह की शुरूआत हुई। अपने समुदाय और अंग्रजों को भारत से निकालने के लिए इन्होंने अपनी जान तक की परवह नहीं। भारत में युद्ध की शुरूआत केवल एक स्तर पर होने से कुछ नहीं हुआ। भारत में संग्राम ने तब गिति अधिक पकड़ी जब अपने स्तर पर सबने अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ अवाज उठाई ये देश भक्ति और अपने समुदाय के लोगों के प्रति प्रेम की भावना ही तो है जिस वजह से इन सभी ने बिना कुछ सोचे क्रांति का आरंभ किया। आईए जाने भारत के आदिवासी नेताओं के बारे में जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाई।
बुद्ध भगत
भारत के आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने भारत के लिए अपना जीवन तक समर्पित कर दिया। बुद्ध भगत का जन्म 17 फरवरी 1792 में रांची झारखंड में हुआ था। इन्हें मुख्य तौर पर लरका विद्रोह के लिए जाना जाता है। इस विद्रोह की शुरूआत 1832 में हुई थी। अपने जन्म के समय से ही वह ब्रिटिश शासन और जमींदारी ताकत को देखते हुए बड़े हुए और इसी तरह उनके मन में अंग्रेजों के विद्रोह की भावन जगी। उन्होंने देखा की कई परिवार इतने गरीब है कि उन्हे खाना खाने को तक नहीं मिल रहा। इस स्थिति को देख कर उन्होंने अपने कुछ साथियों को गुरिल्ला युद्ध की तैयारी करवाई और लोगों को अंग्रजों के खिलाफ खड़े होने की सलहा दी। अंग्रेजों ने अपने खिलाफ विद्रोह कि स्थिति को देखते हुए बुद्ध भगत को पकड़ने के लिए ईनाम की घोषणा की। इसके बाद ब्रिटिश सरकार के साथ लड़ते हुए उनकी जान चली गई।
तिरोट सिंग
तिरोट सिंग जिन्हें यू तिरोट सिंग के नाम से भी जाना जाता है का जन्म 1802 में हुआ था। तिरोट सिंग भी भारतीय आदिवासी समुदाय से थें जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपना योगदान दिया। ब्रह्मपुत्रा नदी को अंग्रेजों ने अपने अधिन कर लिया था। ब्रिटिश गवर्नर ने सड़क परियोजना के कार्य की बात की तो तिरोट सिंग ने दुआर्स के संपत्ति की इच्छा जताई और इस प्रस्ताव को पास किया। रनी के राजा बलराम सिंह ने दुआर्स के संपत्ति विवाद किया तो तिरोट सिंग अपनी सेना लेके वहां अपनी संपत्ति पर दावा करने पहूंचे उन्हें उम्मीद थी की अंग्रेजी सेना इसमें उनकी सहायता करेंगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस प्रकार जब असम में अंग्रेजों की शक्ति बढ़ी तो उन्होंने एक बैठक बुला कर अंग्रेजों से नोंगखाला खाली करने का आदेश पारित किया लेकिन इस आदेश को अंदेखा किया गया। इस स्थिति को देखते हुए तिरोट सिंग ने अंग्रेजो के खिलाफ एक अभियान चलाया।
तेलंगा खरिया
तेलंगा खरिया का जन्म 9 फरवरी 1806 में हुआ था। ये झारखंड के आदिवासी समुदाय से थे। इन्होंने छोटागढ़ में ब्रिटिश राज के खिलाफ आंदोलन की शुरूआत की थी। तेलंगा खरिया, खरिया आदिवासी समुदाय से थे। इन्होंने अन्य आदिवासी समुदायों के नेताओं के साथ मिलकर काम किया था। 1850 में छोटागढ़ पर अंग्रेजों को पूरी तरह से कब्जा हो गया था। जिसमें वह इस समुदाय के लोगों की जमीन पर कब्जा करने की फिराक में थे। कर ना देने या पूरी तरह से न चुका पाने पर ब्रिटिश इन लोगों की जमीन इन से छीन के अपने अधिन करने लगी थी। जिसके खिलाफ खड़े हुए। ब्रिटिश सरकार तेलंगा खरिया से बहुत परेशान थी और इनकों गिरफ्तार करने की फिराक में लगी थी। जानकारी मिलते ही तेलंगा खरिया छुप कर अपना कार्य करने लगे और एक बैठक के दौरान ब्रिटिश सेना उन्हें पकड़ लिया। उनके द्वारा विद्रोह कि खबर जैसे ही ब्रिटिश सेना को लगी तो उन्होंने तेलंगा खरिया को मारने की योजना बनानी शुरू कर दी। 23 अप्रैल 1880 को प्रथान करते हुए तेलंगा खरिया की अंग्रेजो ने गोली मार के हत्या कर दी।
थलक्कल चंदू
थलक्कल चंदू पजहस्सी राज के कुरिच्य सैनिकों के कमांडर-इन-चीफ थे। इन्होंने 19 वीं सदी के शुरूआती दशक में वायनाड के जंगलों में अंग्रेजी सेना से लड़ाई की। इस लड़ाई की सुरीआत तब हुई जब ब्रिटिस ईस्ट इंडिया कंपनी ने वायनाड के किसानों की खेती पर बहुत अधिक कर लगाया था। इसी वजह से पूरी कुरुचिया जनजाति और एडाचना कुंकन ने आपस में इस पर घटना के लिए विद्रोह प्रकट करने के लिए हाथ मिला लिया। थलक्कल चंदू और एडाचना कुंकन ने ब्रिटिश किले पर हमला कर कब्जा कर लिया। थलक्कल चंदू को 15 नवंबर 1805 में पकड़ लिया गया था।
राघोजी भांगरे
राघोजी रामाजीराव भांगरे का जन्म 8 नवंबर 1805 में हुआ था। यह एक क्रांतिकारी थे। शुरूआती समय में राघोजी भांगरे ने ब्रिटिश पुलिस में काम किया था लेकिन कुछ समय बाद अपनी पुलिस की नौकरी छोड़ कर वह एक क्रांतिकारी बन गए जिन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज उठाई। 1818 के दौरान अंग्रेजों ने मराठा सम्राज्य को हरा के भारत को अपने अधिन कर लिया था। 1844 में राघोजी भांगरे ने अपने भाई के साथ मिलकर एक अंग्रेजी अधिकारी की नाक काट दी थी। इसी साल उन्होंने एक अन्य अधिकारी और 10 कांस्टेबलों की हत्या की। इस तरह 1845 तक उनका ये विद्रोह पुणे तक फैल गया। जिसे देख कर ब्रिटिश सेना ने राघोजी भांगरे को पकड़ने के लिए 5000 का ईनाम रखा। 1848 में फांसी देकर के उनकी हत्या कर दी गई।