5 साल में ऐसा क्या हुआ कि रिसर्च में बजने लगा महिलाओं का डंका!

Increase of Female Enrolment in PhD: देश के सभी विश्‍वविद्यालयों में रिसर्च के क्षेत्र में महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार तमाम योजनाएं चला रही है। कई सारे नियम बनाये गये हैं, ताकि शोध के क्षेत्र में महिलाएं आगे आ सकें।

5 साल में ऐसा क्या हुआ कि रिसर्च में बजने लगा महिलाओं का डंका!

एक समय था जब तमाम पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से महिलाएं अपनी पीएचडी या तो बीच में छोड़ देती थीं, या पूरा करने में काफी समय लग जाता था और जब तक पूरी होती, तब तक नौकरी के अवसर खत्म हो जाते। लेकिन सरकार की वर्तमान व्यवस्था और महिलाओं के शोध की ओर बढ़ते रुझान और सरकार की कुछ नीतियों के चलते रिसर्च के क्षेत्र में महिलाओं का डंका बज रहा है।

अब यह कैसे मुमकिन हुआ, या इस बात का क्या आधार है, यह हम आपको आगे बताएंगे। दरअसल लोकसभा में सांसद डॉ. संजीव कुमार सिंगरी ने एक सवाल पूछा, जिसके जवाब में शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने ऐसे आंकड़े सदन में पेश किये, जो वाकई में गौरवान्वित करने योग्य हैं। रिसर्च और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं के बढ़ते कदम सराहनीय है। क्यों न हो, जब देश के हर क्षेत्र में महिलाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं, तो शिक्षा क्षेत्र कैसे पीछे छूट जाये।

शिक्षा मंत्री ने एक सवाल के जवाब में बताया कि देश के विश्‍वविद्यालयों में शिक्षण संबंधी स्थाई पदों पर महिलाओं की संख्‍या में 61.3 प्रतिशत बढ़ी है। 2016-17 में जहां 52,216 महिला शिक्षक थीं, वहीं 2020-21 में यह संख्‍या बढ़ कर 84,226 हो गई। पुरुष एवं महिला शिक्षक का अनुपात 100:53 से बढ़ कर 100:60 हो गया है।

ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन 2020-21 के अनुसार देश भर के विश्‍वविद्यालयों में शिक्षक पदों, जैसे प्रोफेसर, रीडर, एसोसिएट प्रोफेसर, लेक्चरर, असिस्टेंट प्रोफेसर, आदि पर 1,40,221 पुरुष एवं 84,226 महिलाएं तैनात हैं।

अब आगे क्या होगा?

निकटतम भविष्‍य की बात करें तो जिस तरह विश्‍वविद्यालयों में महिला शिक्षकों की संख्‍या में तेजी से वृद्ध‍ि हुई है, उसी रफ्तार से पीएचडी में महिलाओं का एनरोलमेंट यानि पंजीकरण भी बढ़ा है। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार भारत द्वारा उठाये गये विभिन्न कदम अब रंग ला रहे हैं, जिनकी वजह से पीसचडी में महिलाओं की संख्‍या में 60 प्रतिशत बढ़ौत्तरी हुई है। 2016-17 में जहां 59,242 महिलाओं ने पीएचडी में पंजीकरण कराया था, वहीं 2020-21 में 95,088 महिलाएं रिसर्च की फील्‍ड में उतरी हैं।

कुल मिलाकर यह अच्‍छा संकेत है और तरफ भी इशारा कर रहा है कि आने वाले समय में हो सकता है शिक्षक पदों पर पुरुषों की संख्‍या महिलाओं से कम हो जाये।

10 बातें जिनकी वजह से यह हुआ संभव

1. पोस्ट डॉक्टरल फेलोशिप, जिसमें पीएचडी के बाद महिलाओं को पेड फेलोशिप प्रदान की जाती है।

2. सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले फेलोशिप फॉर सिंगल गर्ल चाइल्ड।

3. इंदिरा गांधी स्कॉलरशिप फॉर सिंगल गर्ल चाइल्ड।

4. प्रगति स्कॉलरशिप स्कीम, जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की लड़कियों को पॉलीटेक्न‍िक, इंजीनियरिंग, फार्मेसी, आदि के लिए सहायता की जाती है।

5. कैम्‍पस एकोमोडेशन फैसिलिटी, जिसमें एससी/एसटी वर्ग की लड़कियों को छात्रावास मुहैया कराया जाता है।

6. अगर कोई लड़की किसी परीक्षा, इंटरव्यू आदि की फीस नहीं दे पाती है, तो यूजी सी द्वारा उसकी फीस माफ कर दी जाती है।

7. यदि किसी महिला की नियुक्ति होनी है तो विश्‍वविद्यालयों के रिक्रूटमेंट बोर्ड में कम से कम एक महिला का होना अनिवार्य है।

8. एमफिल या पीएचडी कर रही महिलाएं बीच में दो साल का मैटरनिटी ब्रेक ले सकती हैं।

9. एमफ‍िल या पीएचडी के दौरान महिलाएं मैटरनिटी लीव या चाइल्ड केयर लीव ले सकती हैं।

10. अगर पीएचडी या एमफिल के बीच में लड़की की शादी हो जाती है और उसे किसी दूसरे शहर में जाना पड़ता है, तो उसका रिसर्च डाटा दूसरे विश्‍वविद्यालय, जहां वो चाहती है, स्थानांतरित किया जा सकता है। इसमें यदि कोई फंडिंग एजेंसी शामिल है, तो उससे अनुमति लेना अनिवार्य होगा।

क्या है रिपोर्ट में

अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (एआईएसएचई) रिपोर्ट 2019 से पता चला कि पिछले पांच वर्षों में पीएचडी की संख्या में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पिछले कुछ वर्षों में कुल पीएचडी में प्रवेश की संख्या में भी कई गुना की बढ़ोत्तरी हुई है। अगर बात आंकड़ों की करें तो वर्ष 2015-16 में 1,26,451 से 2019-20 में 2,02,550 हो गया। वर्ष 2019 के दौरान कुल 38,986 छात्रों को पीएचडी डिग्री प्रदान की गई, जिनमें 21,577 पुरुष और 17,409 महिलाएँ थीं। पीएचडी डिग्री के लिए नामांकित 2.02 लाख छात्रों के अलावा एकीकृत पीएचडी में 2,881 छात्र नामांकित हैं।

हालाँकि, आपको बता गें कि इस सर्वेक्षण पोर्टल पर सूचीबद्ध 1043 विश्वविद्यालयों, 42343 कॉलेजों और 11779 स्टैंडअलोन संस्थानों में से केवल 2.7 प्रतिशत पीएचडी कार्यक्रम की पेशकश करते हैं और 35.04 प्रतिशत कॉलेज स्नातकोत्तर (पीजी) स्तर के कार्यक्रम करते हैं। इसके साथ ही राज्य के सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में पीएचडी छात्रों की हिस्सेदारी 29.8 प्रतिशत के साथ सबसे अधिक है, इसके बाद राष्ट्रीय महत्व के संस्थान (आईएनआई) (23.2 प्रतिशत), डीम्ड-टू-बी प्राइवेट विश्वविद्यालय (13.9 प्रतिशत) और केंद्रीय विश्वविद्यालय (13.6 प्रतिशत) हैं।

पीएचडी चुनने का मुल कारण क्या है?

ऐसा माना जाता है कि पीएचडी ज्ञान का एक अनिवार्य हिस्सा है। पीएचडी पूरी करने का मतलब ताजा ज्ञान अर्जित करना, नए विचारों की खोज करना और नए कौशल विकसित करना है। यह उन लोगों के लिए एक डिग्री मात्र है जो किसी विशिष्ट क्षेत्र में अधिक गहराई से ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं।

लोग विश्वविद्यालयों या कॉलेजों में रिसर्च और विकास (आर एंड डी) पेशेवरों के रूप में, अनुसंधान संस्थानों में या यहां तक कि सलाहकार के रूप में नौकरी पाने के लिए पीएचडी का विकल्प भी चुनते हैं। पीएचडी चुनने का एक और कारण यह हो सकता है कि लोग अपना मालिक खुद बनना चाहते हैं - अपने सीवी को बढ़ावा देना, रुचि वाले क्षेत्रों में योगदान देना आदि भी पीएचडी करने के मुल कारणों में से हैं।

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English summary
As per the All India Survey on Higher Education (AISHE) 2020-21, the initiatives of the Government has facilitated a tremendous increase of 60% in Female PhDs enrolment, from 59,242 in 2016-17 to 95,088 in 2020-21. This would provide more opportunities for women for academic positions in Higher Education.
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