Republic Day 2021 / गणतंत्र दिवस 2021: 26 जनवरी को राजपथ से निकलने वाली गणतंत्र दिवस परेड में देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया छत्तीसगढ़ी पारंपरिक शिल्प, आभूषण और लोकनृत्य ककसार का दीदार करेगी। इसके अलावा सूबे की सीमाओं से लगे हुए मध्य-प्रदेश की झांकी में राज्य के जनजातीय संग्रहालय भोपाल के साथ गोंड जनजाति की महिलाओं और पुरुषों द्वारा किए जा रहे सैला नृत्य की साफ झलक देखने को मिलेगी। रक्षा मंत्रालय द्वारा बुधवार को परेड में शामिल होने वाली सभी 22 झांकियों को प्रदर्शित करने को लेकर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें उक्त दोनों राज्यों के अलावा गुजरात, उत्तर-प्रदेश, पंजाब, हिमाचल-प्रदेश, तेलंगाना, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, उत्तराखंड, ओड़िशा जैसे राज्यों के अलावा 6 केंद्रीय मंत्रालयों और उनसे जुड़े हुए विभागों की झांकियों के मॉडल भी प्रदर्शित किए गए।
कलात्मक सौंदर्य दिखेगा
कार्यक्रम में मौजूद छत्तीसगढ़ के जनसंपर्क विभाग के अतिरिक्त निदेशक उमेश मिश्रा ने हरिभूमि से बातचीत में कहा कि हमारी झांकी छत्तीसगढ़ के कलात्मक सौंदर्य और लोकजीवन के विशाल फलक को संक्षिप्त में प्रस्तुत करती है। इसमें जनजातीय समाज की शिल्पकला के माध्यम से उनके सौंदर्यबोध को रेखांकित किया गया है। साथ ही आभूषणों से लेकर तरह-तरह की प्रतिमाओं और दैनिक जीवन में उपयोग में आने वाली वस्तुओं तक इस शिल्पकला का विस्तार देखा जा सकता है।
बेलमेटल से बनी नंदी की प्रतिमा
झांकी के ठीक सामने वाले हिस्से में नंदी बैल की प्रतिमा है, जिसे शिल्पकार ने बेलमेटल से तैयार किया है। यह ढोकरा-शिल्प का बेहतरीन नमूना है। इसके पास नृत्य-संगीत की कला परंपराओं को दर्शाया गया है। झांकी के मध्य में पारंपरिक आभूषणों से सुसज्जित आदिवासी युवती है, जो अपने भावी जीवन की कल्पना में खोई हुई है। झांकी के आखिर में धान की कोठी है, ढोकरा शिल्पी ने इस पर अपनी शुभकामनाओं का अलंकरण किया है। इसके निकट लौह शिल्प में नाविकों के माध्यम से सुख के सतत प्रवाह और जीवन की निरंतरता को दर्शाया गया है। झांकी के दोनों ओर आदिवासी लोकनृतक ककसार नृत्य करते हुए नजर आएंगे, जो माड़िया जनजाति की विशिष्ट परंपरा है।
म.प्र. की झांकी की विशेषताएं
मध्य-प्रदेश के जनसंपर्क विभाग के अधिकारी संजय सक्सेना ने कहा कि सूबे की झांकी भोपाल के जनजातीय संग्रहालय से जुड़ी हुई है। यह जनजातीय जीवन, देशज ज्ञान परंपरा, कला, शिल्प और सौंदर्य बोध पर एकाग्र है। यह संग्रहालय आदिम एवं जनजातीय सौंदर्य चेतना और सृजनेच्छा के विविध आयामों को रोशन और प्रकृट करता है। झांकी के आगे का भाग गोंड जनजाति के घर के बाहरी हिस्से का है। इसके ऊपर टेराकोटा में निर्मित जनजातीय खिलौना गाड़ी और अनुष्ठानिक प्रतीक हैं।
मध्य और अंतिम भाग की पृष्ठभूमि काष्ठ शिल्प में निर्मित नर्मदा उत्पत्ति की कथा है। कथा के सामने गोंड जनजाति का काष्ठ शिल्पी, चौसर खेलती दो बच्चियां, मसाला पीसती रजवार स्त्री और बैगा काष्ठ शिल्पी हैं। मध्य भाग की छत पर गोंड वादक नृत्य कर रहे हैं तथा बच्चे गेंडी बॉल खेल रहे हैं। अंतिम भाग की छत पर कोरकू जनजाति का अलंकृत घर है और घर के ऊपर गोंड जनजाति के वादक हैं। झांकी के साथ गोंड जनजाति की महिलाएं एवं पुरुष वादक सैला नृत्य करते हुए दिखाई देंगे।