Climate Change Can Affect Sustainable Development Goals: जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ा रहा है। भारत में इसका प्रभाव हीटवेव के रूप में देखा जा सकता है। हाल ही में एक अध्ययन में पता चला कि भारत का 90 प्रतिशत हिस्सा जलवायु परिवर्तन के प्रभाव यानि हीटवेव के खतरे का सामना कर सकता है।
इन दिनों भारत के कई प्रमुख राज्य हीटवेव का कहर झेल रहे हैं। उत्तरी भारत के लगभग सैंकड़ों स्कूलों को हीटवेव या लू के कारण बंद करने के आदेश दिए गये हैं। दरअसल, यूनाइटेड किंगडम स्थित कैंब्रिज विश्वविद्यालय में रामित देबनाथ और उनके सहयोगियों द्वारा एक अध्ययन पीएलओएस क्लाइमेट पेश किया गया है।
इसका सुझाव है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली गर्म लहरें या हीटवेव, भारत के सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रयासों को बाधित कर सकती हैं। मालूम हो कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव एम राजीवन द्वारा वैज्ञानिक कमलजीत रे, एसएस रे, आरके गिरि और एपी डिमरी के साथ लिखे गए एक पेपर के अनुसार, हीटवेव ने भारत में 50 वर्षों में 17,000 से अधिक जीवन का दावा किया है।
सीवीआई या क्लाइमेट वल्नरेबिलिटी इंडेक्स (Climate Vulnerability Index) के साथ हीट इंडेक्स (Heat Index) के एक विश्लेषणात्मक मूल्यांकन से पता चला है कि देश का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अनुकूल आजीविका क्षमता, खाद्यान्न उपज, वेक्टर-जनित रोग प्रसार और शहरी स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले बेहद सतर्क या खतरनाक स्तर पर है।
हीटवेव कितना खतरनाक?
इस रिपोर्ट के मुताबिक इन दिनों भारत में हीटवेव की न केवल तीव्रता बढ़ी है बल्कि इसकी आवृत्ति और आक्रामकता में भी बढ़ोत्तरी हुई है। कई अनुसंधानों में हीटवेव की तीव्रता और अधिक बढ़ने की संभावना जताई गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया कि जलवायु परिवर्तन सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि एवं अन्य सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक प्रणालियों पर बोझ डाल रहा है। यही कारण है कि इसका सीधा प्रभाव भारत के सतत विकास पर भी पड़ रहा है।
भारत, 17वें संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों या सस्टेनेबल डेवेलपमेंट गोल को हासिल करने की दिशा में प्रतिबद्ध है। इसमें गरीबी को छोड़ कर अच्छे स्वास्थ्य एवं लोक कल्याण, कार्य प्रगति एवं आर्थिक विकास के संबंधित कारक शामिल हैं।
क्या है क्लाइमेट वल्नरेबिलिटी सूंचकाक?
हालांकि, वर्तमान में जलवायु भेद्यता या वल्नरेबिलिटी क आकलन को पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है कि कैसे जलवायु परिवर्तन के कारण गर्म लहरें भारत के सतत विकास लक्ष्यों और प्रगति को प्रभावित कर सकती हैं। भारत की जलवायु भेद्यता का विश्लेषण करने के लिए यह जानना आवश्यक है कि जलवायु परिवर्तन एसडीजी प्रगति को कैसे प्रभावित कर सकता है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने भारत के ताप सूचकांक (Heat Index) का इसके जलवायु भेद्यता सूचकांक (Climate Vulnerability Index) के साथ एक समग्र सूचकांक का विश्लेषण पेश किया है। यह सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों और उनके प्रभावों को समझने के लिए विभिन्न संकेतकों का उपयोग करता है।
क्या कहते हैं आंकड़ें?
गंभीर रूप से प्रभावित श्रेणियों को वर्गीकृत करने के लिए भारत सरकार के राष्ट्रीय डेटा और एनालिटिक्स प्लेटफ़ॉर्म से राज्य-स्तरीय जलवायु भेद्यता संकेतकों पर सार्वजनिक रूप से उपलब्द्ध डेटासेट का उपयोग किया गया। शोधकर्ताओं द्वारा बीते 20 वर्षों (2001-2021) में एसडीजी में भारत की प्रगति की तुलना, 2001-2021 से एक्स्ट्रीम वेदर या अत्यंत खराब मौसम से होने वाले मृत्यु दर के साथ की गई।
इस दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि हीटवेव ने भारत के सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals/SDG) को प्राप्त करने की दिशा में भारत की प्रगति को पहले की तुलना में ज्यादा प्रभाव डाला है और वर्तमान मूल्यांकन मेट्रिक्स जलवायु परिवर्तन प्रभावों के लिए भारत की कमजोरियों का पता लगाने में असमर्थ है। वर्ष 2021 में प्रकाशित एक पेपर में कहा गया कि 1971 से लेकर 2019 तक देश में लू की 706 घटनाएं सामने आई हैं।
भारत पर हीटवेव के प्रभावों से जुड़े कुछ तथ्य:
- सीवीआई या क्लाइमेट वल्नरेबिलिटी इंडेक्स (Climate Vulnerability Index) के साथ हीट इंडेक्स (Heat Index) के एक विश्लेषणात्मक मूल्यांकन से पता चला है कि देश का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा हीटवेव के कहर क्षेत्र में है।
- भारत में अप्रैल 2022, बीते 122 वर्षों की तुलना में सबसे अधिक गर्म था और मार्च के महीने में गर्मी रिकॉर्ड स्तर पर होने के कारण कथित तौर पर कम से कम 25 लोगों की मौत हुई।
- आंकड़ों पर नजर डालें तो 1992 के बाद से भारत में हीटवेव से संबंधित मृत्यु दर 24,000 से अधिक है।
- अध्ययन से पता चला है कि वर्ष 2022 में जनवरी से अक्टूबर तक, भारत में 273 दिनों की तुलना में करीब 242 दिन मौसमी घटनाएं चरम पर दर्ज की गई। इन चरम घटनाओं में उत्तर और पश्चिमी भागों में अत्यधिक गर्मी और शीत लहरों की घटना, मध्य भारत में सूखा, और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में भूस्खलन के साथ तटीय मैदानों में उच्च बाढ़ की घटनाएं शामिल हैं।
- अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, भारतीय उपमहाद्वीप पर हीटवेव का प्रभाव तीव्र गति से पड़ रहा है। हीटवेव का पर्यावरण, स्वास्थ्य आदि की परस्पर जुड़ी प्रणालियों की एक विस्तृत श्रृंखला पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। इसमें लगातार और अधिक विस्तारित बिजली की कटौती, धूल और ओजोन के स्तर में वृद्धि वायु प्रदूषण में उच्चता और त्वरित प्रभाव शामिल है। उत्तर भारतीय क्षेत्रों में ग्लेशियरों बर्फ का पिघलना भी इन प्रभावों में से एक है।
- कोविड-19 महामारी के कारण देश को हुए आर्थिक नुकसान से भारत तक ऊबर नहीं पाया है। भारत अब भी सुधार की दिशा में आगे बढ़ ही रहा है, लेकिन बढ़ते हीटवेव की घटनाओं के कारण इस सुधार की गति पर भी रोक लग रही है। इस तरह की हीटवेव का सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक बोझ पर अविश्वसनीय रूप से दबाव बढ़ रहा है।
- कुछ दीर्घकालिक अनुमानों से संकेत मिलता है कि भारत में लगातर बढ़ रही हीटवेव्स 2050 तक स्वस्थ मानव के लिए सर्वाइवल लिमिट को पार कर सकती है।
- इसके अलावा हीटवेव, लगभग 310-480 मिलियन लोगों की श्रम उत्पादकता, आर्थिक विकास और जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करेगा।
- अनुमान है कि 2050 तक अत्यधिक गर्मी के कारण दिन में बाहरी कार्य क्षमता (यानी उच्च तापमान में बाहर काम करना, जैसे निर्माण कार्यों) में 15 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।
- लैंसेट रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इन 2050 बेसलाइन अनुमानों से गर्म हवाएं या लू या हीटवेव और अधिक तेज हो जायेंगी, जिससे 2100 तक लगभग 600 मिलियन भारतीय प्रभावित हो सकते हैं।
- अध्ययन के अनुसार, बढ़ती गर्मी से भारत को क्रमशः 2050 और 2100 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.8 प्रतिशत और 8.7 प्रतिशत खर्च करने और जीवन स्तर को कम करने की उम्मीद है।
- भारत वर्तमान में अपने क्षेत्राकार, जनसंख्या आकार, शहरीकरण दर और जैव-भौतिक विशेषताओं के कारण से होने वाले कई जलवायु परिवर्तन के खतरों का सामना कर रहा है। यह हाइड्रोलॉजिकल चक्र को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर रहा है।
- एक अनुमान के तौर पर वर्ष 2025 तक, 70 भारतीय शहरों में 1 मिलियन से अधिक निवासी होने की उम्मीद जताई जा रही है। इस दौरान समग्र जलवायु भेद्यता मूल्यांकन प्रक्रिया की कमी शहरों और समुदायों के सतत विकास को पूरा करने की दिशा में प्रगति को धीमा कर देगी। पर्यावरण की पारंपरिक कमजोरियों की अंडर-रिपोर्टिंग, इसकी शहरी स्थिरता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।