Maharana Pratap Jayanti 2024: अकबर क्या सोचते थे महाराणा प्रताप के बारे में?

Maharana Pratap Jayanti 2024: महाराणा प्रताप सिंह, मेवाड़ के एक प्रमुख शासक थे, जो वर्तमान में भारत के राजस्थान का एक क्षेत्र है। उनका जन्म 9 मई, 1540 को हुआ था और वह 1572 में अपने पिता, महाराणा उदय सिंह द्वितीय के उत्तराधिकारी के रूप में मेवाड़ की गद्दी पर बैठे। महाराणा प्रताप को 16वीं शताब्दी के दौरान मुगल सम्राट अकबर के खिलाफ अपने उग्र प्रतिरोध के लिए जाना जाता है। मुगल विस्तार के खिलाफ उनकी अवज्ञा की परिणति 1576 में हल्दीघाटी के प्रसिद्ध युद्ध में हुई।

Maharana Pratap Jayanti 2024: अकबर क्या सोचते थे महाराणा प्रताप के बारे में?

हालांकि, इस लड़ाई में महाराणा प्रताप की सेना को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने मुगल शासन के सामने समर्पण करने से इनकार करते हुए अकबर की सेना के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखा। उनकी गुरिल्ला युद्ध रणनीति और दृढ़ निश्चय ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक महान दर्जा दिलाया।

विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, महाराणा प्रताप ने कभी आत्मसमर्पण नहीं किया और 29 जनवरी, 1597 को अपनी मृत्यु तक मुगलों का विरोध करना जारी रखा। उन्हें भारत में साहस, वीरता और स्वतंत्रता की भावना के प्रतीक के रूप में सम्मानित किया जाता है। उनकी विरासत देश के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक ताने-बाने में गहराई से समाई हुई है।

यह तो रही महाराणा प्रताप के बारे में बात चलिए अब जानते हैं कि अकबर क्या सोचते थे महाराणा प्रताप के बारे में? कानपुर स्थित छत्रपति शाहूजी महाराज विश्‍वविद्यालय के शिक्षा विभाग में डॉ. अनुराग सुंकिया द्वारा किए गए शोध के अनुसार, मेवाड़ का वह राणा जिसने कभी भी मुगल दरबार में जाना स्वीकार नहीं किया और न ही मुगल शासकों के सजदे में झुकना, व नवरोज़ में जाना स्वीकार किया। बादशाह की सदैव अवहेलना करने वाले एवं जीवन राणा प्रताप की मृत्यु की खबर सुन भर बादशाह से दुश्मनी निभाने वाले उसके चिर शत्रु अकबर की आंखों में भी आंसू आ गए थे क्योंकि अकबर स्वयं हृदय से प्रताप की बहादुरी की प्रशंसा करता था।

डॉ. अनुराग सुंकिया के शोध के मुताबिक, विश्व इतिहास में रोमन प्रजाति स्वतंत्रता की सर्वाधिक पुजारी एवं बहादुर जातियों में गिनी जाती है। कर्नल टॉड ने अपनी विश्व प्रसिद्ध कृति 'Annals and Antiquities of Rejasthan' में राणा प्रताप की तुलना ग्रीक / रोमन शूरता से की है। उसका मानना है कि राणा प्रताप के शौर्य ने मेवाड़ में वह शूरता भर दी जिससे वह ग्रीक शूरता के समकक्ष आ गया। राष्ट्रनिष्ठा, स्वातंत्र्य प्रेम और विदेशी दासता के आगे न झुकने की प्रतिबद्धता राणा प्रताप के नेतृत्व के फलस्वरूप ही मेवाढ़ की प्रजा में भर गई।

यदि राजस्थान के इतिहास को भारतीय इतिहास से जोड़कर देखा जाए तो प्रताप अपने पूर्वजों की अपेक्षा राजनीतिक एवं भौगोलिक क्षेत्र पर अधिपत्य की दृष्टि से उतने विशाल नहीं लगेंगे किन्तु यदि प्रताप के मनोवैज्ञानिक प्रभाव, इतिहास पर उसके व्यक्तित्व के प्रभाव एवं एक शासक के रूप में उसकी नेतृत्व क्षमता का मूल्यांकन किया जाए तो शायद ही कोई उस स्तर तक पहुँच सकेगा। कर्नल टॉड ने लिखा है कि जिस प्रकार Montesquieu ने यूरोपियन सामंतवाद की परिचर्चा करते हुए उसके अंधकार युग को नकार दिया है एवं उस काल में शौर्य एवं बहादुरी को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना है।

भारतीय इतिहास पर कार्य करते हुए कर्नल टॉड ने यह माना है कि शूरता और पराक्रम के यह बीज यूरोप में आने से बहुत पहले मेवाड़ में बोये जा चुके थे। प्रताप ने अपने जीवन में जो कुछ पाया अथवा गवाया, इन दोनों ने ही इतिहासकारों एवं लेखकों को वह अभूतपूर्व प्रेरणा दी है। जिसने शूरता से सम्मोहित ऐसे साहित्य की रचना की जो किसी भी देश के भविष्य को बनाने के लिए आवश्यक है। यदि आज का भारतीय युवा अपनी स्वतंत्रता से स्वयं से भी अधिक प्रेम करता है अथवा राष्ट्रीय संप्रभुता के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार है, इस चरित्र को प्रताप के व्यक्तित्व के आलोक में ही दिया जाना चाहिए।

पूर्वजों के संघर्ष, स्वतंत्रता के लिए सर्वोत्तम त्याग की उत्कट इच्छा ही, किसी राष्ट्र की सर्वाधिक महत्वपूर्ण धरोहर होती है। और यदि इन सभी विशेषताओं को किसी एक व्यक्ति में ढूंढा जाए तो वह निःसंदेह राणा प्रताप होगा। राणा प्रताप के व्यक्तित्व से अभिभूत हो कर एक तत्कालिक कवि ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए यह कहा था, "उसके दर्शन मात्र से ही मन एवं आत्मा पवित्र हो जाती है एवं सारे पाप स्वयं ही मिट जाते हैं"।

एक प्रसिद्ध अंग्रेजी कहावत है, 'History repeat it self' (इतिहास स्वंय को दुहराता है) पर विश्वास करते इतिहासकारों का मानना है कि प्रताप का यह संघर्ष एवं स्वतंत्रता के लिए बलिदान भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन की जड़ एवं भारत के उत्थान का प्रतीक बिंदु है। इसी भावना से अभिभूत हो कर प्रताप के साथियों एवं प्रजा ने अनगिनत बलिदान किए क्योंकि उन्हें पूर्ण विश्वास था कि इतिहास बदलेगा एवं आज की इसी वेदना से कल के नवीन मेवाड़ का निर्माण होगा, जिसमें उनके बलिदानों की आधारशिला पर राष्ट्रीय स्वाभिमान का उन्नत निर्माण किया जाएगा।

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English summary
According to the research done by Dr. Anurag Sunkia in the Education Department of Chhatrapati Shahuji Maharaj University, Kanpur, the Rana of Mewar who never accepted to go to the Mughal court, nor to bow in prostration to the Mughal rulers, nor to go to Navroz. Did. On hearing the news of the death of Jeevan Rana Pratap, who had always disobeyed the king and his eternal enemy, Akbar, who had always been an enemy of the king, had tears in his eyes because Akbar himself praised Pratap's bravery from his heart.
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