राजधानी दिल्ली में मेयर का चुनाव कैसे होता है? आइए समझने की कोशिश करते हैं। एमसीडी का गठन 1958 में दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 के तहत किया गया था। शुरुआत में नगर निगम को तीन भागों में विभाजित किया गया था जबकि इस साल की शुरुआत में केंद्र द्वारा इसका पुन: एकीकरण किया गया।
अधिनियम के अनुसार, एमसीडी को हर तीन साल में यह निर्धारित करने के लिए चुनाव कराना अनिवार्य है की कौन सी पार्टी सत्ता पर काबिज रहेगी। अधिनियम की धारा 35 के अनुसार, यह अनिवार्य है कि एमसीडी प्रत्येक वित्तीय वर्ष की पहली बैठक में मेयर का चुनाव करेगी। नया वित्तीय वर्ष शुरू होने पर बहुमत वाली पार्टी मेयर के रूप में अपने उम्मीदवार को नामांकित करने के लिए पात्र है। लेकिन यदि प्रतिद्वंद्वी पार्टी जीतने वाले उम्मीदवार का विरोध करने के लिए अपने उम्मीदवार को नामांकित करती है, तो फिर चुनाव किया जाएगा।
बता दें कि मेयर यानि कि महापौर का कार्यकाल एक वर्ष का होता है। हालांकि,दिल्ली नगर निगम अधिनियम यह भी निर्धारित करता है कि एक पार्टी को अपने प्रशासन के पहले वर्ष में मेयर के रूप में एक महिला और तीसरे वर्ष में अपने पार्षदों में से एक अनुसूचित जाति के सदस्य का चुनाव करना होगा।
दरअसल, निर्वाचित पार्षदों के अलावा, दिल्ली के 14 विधायक, 10 लोकसभा और राज्यसभा सांसद चुनाव में मतदान करने के पात्र हैं जबकि मनोनीत सदस्य वोट नहीं डाल सकते हैं। यदि कोई टाई होता है, तो चुनावों की निगरानी के लिए नियुक्त विशेष आयुक्त द्वारा विशेष ड्रा का आयोजन किया जाएगा और विजेता को मेयर के रूप में शपथ दिलाई जाएगी।
गुप्त मतदान से चुने गए मेयर
मेयर के चुनाव के लिए अलग-अलग नामांकन किए जाते हैं। इसमें कोई भी पार्षद नामांकन कर सकता है। मतदान के दिन गुप्त मतदान के माध्यम से गुप्त मतदान किया जाता है। मतदान के दौरान पर्ची पर मेयर के संबंध में सही निशान लगाना होता है। जिसके लिए उपराज्यपाल द्वारा नामित पीठासीन अधिकारी प्रक्रिया तय करने के लिए जिम्मेदार होता है। इसमें कोई भी पार्षद अपनी पसंद के किसी भी उम्मीदवार को वोट दे सकता है और दल-बदल विरोधी कानून उस पर लागू नहीं होता क्योंकि गुप्त मतदान में किसने किसको वोट दिया यह पता लगाना असंभव है।
चूंकि दिल्ली नगर निगम में दलबदल विरोधी कानून लागू नहीं है, इसलिए पार्षदों की क्रॉस वोटिंग संभव है।
मेयर न केवल सीधे मतदाताओं द्वारा चुने जाते हैं बल्कि निर्वाचित प्रतिनिधियों का भी प्रक्रिया में कहना होता है। इन प्रतिनिधियों में सिर्फ नवनिर्वाचित पार्षद ही नहीं बल्कि एक पूरा कॉलेज शामिल है जो दिल्ली के पहले नागरिक यानी मेयर का चुनाव करेगा।
मेयर का चुनाव करने वाले सदस्य
भाजपा में एमसीडी के वरिष्ठ नेता सुभाष आर्य ने कहा, ''दिल्ली में पार्षदों के अलावा 14 विधायक भी हर साल एमसीडी हाउस में मनोनीत होते हैं और वे हर साल बदलते हैं। फिलहाल 14 मनोनीत विधायकों में से, 12 या 13 आम आदमी पार्टी (आप) के होंगे जबकि एक या दो विधायक भाजपा के होंगे। इसके अलावा, दिल्ली से सात लोकसभा सांसद और तीन राज्यसभा सांसद भी मनोनीत सदस्य हैं और इन सभी को मेयर पद के लिए हुए चुनाव में मतदान करने का अधिकार है।"
मनोनीत पार्षदों को लेकर असमंजस
वर्ष 2015 तक दिल्ली के मनोनीत पार्षदों को वोट देने का अधिकार नहीं था। इन मनोनीत पार्षदों को एल्डरमेन कहा जाता है। जब एमसीडी को तीन हिस्सों में बांटा गया तो हर एमसीडी में 10-10 बुजुर्ग मनोनीत किए गए, लेकिन वे किसी चुनाव में वोट नहीं डाल सके और न ही किसी पद पर चुने जा सके। जिसके बाद कांग्रेस की पूर्व नेता और एल्डरमैन ओनिका मल्होत्रा ने दिल्ली हाई कोर्ट में केस डाला। और फिर 27 अप्रैल 2015 को, दिल्ली उच्च न्यायालय ने वार्ड समिति के चुनावों में इन एल्डरमेन को वोट देने का अधिकार देते हुए एक फैसला सुनाया।
हालांकि, कई नेताओं के मुताबिक इस बात को लेकर अभी भी असमंजस बना हुआ है कि एकीकृत एमसीडी में कितने मनोनीत एलडरमैन होंगे? इसके लिए केंद्र सरकार को अधिसूचना जारी करने का अधिकार है, जिसके बाद दिल्ली नगर निगम के आयुक्त चुनाव आयोग की बैठक के बाद एमसीडी में मनोनीत सदस्यों को सूचित करेंगे।
इसके अलावा, भ्रम यह भी बना रहता है कि क्या दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा वार्ड समिति में वोट देने का अधिकार दिए गए एल्डरमेन के पास मैयर के चुनाव में मतदान का अधिकार है या नहीं।
यह खबर पढ़ने के लिए धन्यवाद, आप हमसे हमारे टेलीग्राम चैनल पर भी जुड़ सकते हैं।