स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 1930 का साल काफ़ी महत्त्वपूर्ण रहा। वर्ष 1929 में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सम्पूर्ण स्वराज्य के प्राथमिक लक्ष्य घोषित किया था। इस दौरान यह तय किया गया कि आगे की योजना कांग्रेस कमेटी बनाएगी। स्थिति को देखते हुए गाँधीजी ने कहा था कि अगर अहिंसा का वातावरण बना तो वे सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करेंगे और ये संघर्ष अंग्रेजी शासन के खिलाफ अंतिम मुठभेड़ होगा।
करियर इंडिया के विशेषज्ञ ने इस लेख में सविनय अवज्ञा आंदोलन का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। केंद्रीय और विभिन्न राज्य स्तरीय सिविल सेवा और प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाने वाले प्रश्नों की तैयारी के लिए उम्मीदवार इस लेख से सहायता ले सकते हैं। क्योंकि यह चैप्टर बड़ा है, इसीलिए उम्मीदवारों की तैयारी को सहज बनाने के लिए करियर इंडिया द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन को तीन अलग-अलग भाग में प्रकाशित किया जा रहा है। नीचे विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में सविनय अवज्ञा आंदोलन पर पूछे गए सवाल बताए गए हैं।
2022 में पूछा गया प्रश्न: क्या आप समझते हैं कि भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन 'बहु वर्गीय' आन्दोलन था, जिसमें सभी वर्गों तथा स्तरों के साम्राज्यवादी हितों का प्रतिनिधित्व था? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिए।
2013 में पूछा गया प्रश्न: "गाँधीजी शारीरिक रूप से जेल में हैं पर उनकी आत्मा हमारे साथ है, भारत का मान आपके हाथों में है, आपको किसी भी परिस्थिति में हिंसा का प्रयोग नहीं करना है. आपको पीटा जाए तब भी आप विरोध नहीं करें; अपने ऊपर पड़ने वाले वार को रोकने के लिए हाथ नहीं उठाना है।" समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
प्रश्न: "सविनय अवज्ञा का अत्यंत सीमित और प्रभावहीन रूप देखने को मिला, जिससे जनसाधारण को बहुत ही मामूली आर्थिक लाभ मिला"। समालोचनात्मक विवेचना कीजिए।
1930 का साल स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में काफ़ी महत्त्वपूर्ण रहा है। दिसम्बर 1929, लाहौर कांग्रेस में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सम्पूर्ण स्वराज्य को अपना प्राथमिक लक्ष्य घोषित किया था। प्रस्ताव पास हो जाने के बाद यह तय हुआ कि आगे उठाए जाने वाले क़दमों के कार्यक्रम की योजना अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी बनाएगी। स्वाधीनता संग्राम की अगली रणनीति और उसे नए सिरे से शुरू करने के समय का फैसला अब गांधीजी को लेना था। गांधीजी ने स्पष्ट शब्दों में अपना इरादा ज़ाहिर कर दिया कि अन्यायी सरकार को बदलने या मिटाने का जनता को अधिकार है। अगर वातावरण अहिंसात्मक रहा, तो सविनय अवज्ञा आंदोलन को शुरू करने को मैं तैयार हूं।
.. जब गाँधीजी ने ली पूर्ण स्वराज की प्रतिज्ञा
1920 का संघर्ष देश की तैयारियों के लिए था, इस बार का संघर्ष अंतिम मुठभेड़ के लिए होगा। गांधीजी ने पूर्ण स्वराज्य की प्रतिज्ञा लिख डाली। यह निर्णय हुआ कि भारत को राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक रूप से नष्ट करने वाले अंग्रेजी शासन को अधिक सहा जाना ईश्वर और मानवता के प्रति अपराध है और किसी सुनिश्चित दिन इस प्रतिज्ञा को सार्वजनिक रूप से पढ़ा जाएगा। पंडित मोतीलाल नेहरू ने सुझाया कि वसंत पंचमी के दिन सुबह दस बजे का मुहूर्त बड़ा ही शुभ है। साल 1930 में वसंत पंचमी का दिन 26 जनवरी को पड़ा था।
26 जनवरी को पूर्ण स्वाधीनता की प्रतिज्ञा
26 जनवरी 1930 को देश को स्वतंत्र कराने के लिए पूरे देश में प्रतिज्ञा ली गई। तब से 26 जनवरी हमारे देश के इतिहास की महत्वपूर्ण तारीख़ बन गई। यह दिन स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। यह प्रतिज्ञा ली गई, "ग़ुलामी सहन करना ईश्वर और देश के प्रति द्रोह है। सल्तनत के मातहत, देश का राजनीतिक-आर्थिक शोषण हुआ है। सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक पतन हुआ है, इसलिए हम प्रण करते हैं कि जब तक पूर्ण स्वराज्य नहीं मिलेगा, तब तक हम इस अधम सत्ता का अहिंसक असहयोग करेंगे और क़ानून का सविनय भंग करेंगे।" उस दिन पूरे देश में एक नई आशा और उत्तेजना जगी।
दिल्ली में इस समारोह में 50 हज़ार के आसपास लोग शामिल हुए। बंबई में शाम को जुलूस निकाली गई जिसमें दस हज़ार लोग थे। चौपाटी की जनसभा में 30 हज़ार लोग आए। आगरा और कानपुर जैसे छोटे शहरों में भी आठ-दस हज़ार लोग शामिल हुए। कलकत्ता के प्रत्येक मोड़ पर झंडा फहराया गया। कांग्रेस देशव्यापी स्तर पर अभियान छेड़ने के लिए तैयार थी। सबकी आंखें गांधी जी पर टिक गईं।
देश जनआन्दोलन के लिए तैयार
साल 1930 के पहले दो महीने तनावपूर्ण और आशंका भरे थे। सरकार और देश सबरमती से आने वाले संदेश का इंतज़ार कर रहे थे। गांधीजी ने खुद को आश्रम में सीमित कर लिया था। लेकिन जब स्वाधीनता-दिवस के समारोहों में जनता की उमंग उभर कर सामने आई तो गांधीजी को विश्वास हो गया कि देश जन-आन्दोलन के लिए तैयार है। उन्हें लगने लगा कि देशवासी अब पहले से अधिक अनुशासन सीख गए हैं। देश के लोग गांधीजी के संघर्ष की रूपरेखा को अधिक स्पष्ट रूप से समझने लगे हैं। संघर्ष के अगले स्वरूप के बारे में गांधीजी को किसी ऐसे मुद्दे की खोज थी जिससे विदेशी सरकार की बुराइयां और अन्याय स्पष्ट हो जायें और पूरा देश जाग उठे। यह सामूहिक भागेदारी का ऐसा कार्यक्रम हो जो देश की ग़रीब-से-ग़रीब जनता में भी उत्साह का संचार कर दे।
गाँधीजी के हृदय में सच्चाई और लगन
अहिंसा के लिए गांधीजी के हृदय में एक जबर्दस्त सच्चाई और लगन थी। देश की स्थिति सुधारने के लिए गांधी जी अहिंसा को एकमात्र ठीक तरीक़ा मानते थे। वे मानते थे कि इसका उचित रूप से पालन किया जाए तो यह अचूक तरीक़ा साबित होगा। हिंसा को किसी भी रूप में आंदोलन का अंग बनने देना उन्हें पसंद नहीं था। सबसे बड़ा सवाल था कि आंदोलन क्या होगा, कैसे होगा और इसकी शुरुआत कैसे होगी? कई लोग उम्मीद कर रहे थे कि उनका प्रस्तावित आंदोलन सिविल नाफ़रमानी के पुराने रास्ते पर चलेगा। जैसे सरकार को कर देने से इंकार किया जाएगा। अदालतों का बहिष्कार किया जाएगा। लेकिन गाँधीजी तो ऐसा कार्यक्रम हाथ में लेना चाहते थे जो हरेक ग्रामीणों को छू ले। ... और उन्होंने नमक को चुना !!
नमक-दुनिया का सबसे अमानवीय कर
गाँधीजी ने कुछ वर्ष पहले नमक खाना छोड़ दिया था। इसीलिए यह चीज़ उनके ख़ुद के लिए कोई महत्व नहीं रखती थी। लेकिन इसे स्वतंत्रता संग्राम का आधार बनाकर उन्होंने नमक-क़ानून तोड़कर आन्दोलन शुरु करने का प्रस्ताव रखा। वैसे तो नमक-कर अन्य करों की तुलना में कम ही था, परन्तु उसका बोझ देश के सबसे गरीब लोगों पर पड़ता था। अंग्रेज़ सरकार के नमक पर लगाए गए कर को गाँधीजी ने दुनिया का सबसे अमानवीय कर करार दिया। उस समय भारत में एक मन यानी 38 किलो नमक की क़ीमत 10 पैसे हुआ करती थी। उस पर सरकार ने बीस आने यानी 2400 प्रतिशत का कर लगा दिया। इसीलिए नमक-कर पर आघात करने और नमक-क़ानून तोड़ने का निश्चय किया गया।
काँग्रेस की बैठक साबरमती में
फरवरी के अंत में आश्रम में अचानक एक बैठक बुलाई गई। उस बैठक में गाँधीजी ने कांग्रेस के नेताओं के समक्ष नमक-कानून तोड़ कर आन्दोलन शुरू करने का प्रस्ताव रखा। लोग गाँधीजी का ऐलान सुन चकित रह गए। उन्होंने जब नमक सत्याग्रह की बात की तो कांग्रेस के नेताओं की अविश्वास भरी प्रतिक्रिया हुई। कई नेता पूछ बैठे, "क्या आप गंभीरता से यह बात कह रहे हैं? आप चाहते हैं कि हम लोग नमक बनाएं?! घर-घर नमक बनाकर हमें स्वराज्य कैसे मिल जाएगा?"
नमक कानून तोड़कर शुरू की गई आजादी की लड़ाई
गाँधीजी ने विस्तार से नमक क़ानून तोड़ने का महत्त्व और तरीक़ा उपस्थित लोगों को समझाया। नमक जीवन की बुनियादी ज़रूरत है। उसे आसानी से बनाया जा सकता है। औपनिवेशिक हुक़ूमत के तहत भारतीय न तो ख़ुद नमक बना सकते थे और न ही बेच सकते थे। अंग्रेज़ सरकार ने उस पर 2400 प्रतिशत कर लगा दिया था। उन्हें ब्रिटेन में बना और वहां से आयात किया गया महंगा नमक ख़रीदना पड़ता था। गाँधीजी ने बताया कि आज़ादी की लड़ाई देश भर में नमक क़ानून को तोड़ कर शुरू की जाएगी। उन्होंने लोगों को समझाया कि सरकार सारी निष्ठुरता का उपयोग करेगी। वह हमें कुचल देना चाहेगी। लेकिन हमें अहिंसा और विनय का मार्ग नहीं छोड़ना है। उन्होंने यह भी ऐलान किया कि सबसे पहले वे खुद ही इस क़ानून को तोड़ेंगे। मोतीलाल जी ने कहा, "गाँधीजी सचमुच जादूगर हैं! हमारी समझ में नहीं आ रहा था, मगर उन्होंने हमारे सब के दिमागों पर क़ब्ज़ा कर लिया!!"
गाँधीजी की घोषणा की खिल्ली उड़ाई गई
गाँधीजी ने घोषणा की कि वह अहमदाबाद में अपने आश्रम से 241 मील पैदल चल कर, अरब समुद्र तट पर दांडी में नमक बना कर कानून तोड़ेंगे। नमक राष्ट्रव्यापी संघर्ष का रूप ले सकेगा या नहीं, इसमें गाँधीजी के निकटतम सहयोगियों को भी भारी संदेह था। जब गाँधीजी ने इसकी घोषणा की तो उस समय के बुद्धिजीवी वर्ग के साथ सरकार ने भी इसे "बचकानी राजनैतिक क्रान्ति" कहकर इसकी खिल्ली उड़ाई और इस विचार का मजाक बनाया कि कड़ाही में समुद्र का पानी उबाल कर वह सम्राट से मुल्क और हुकूमत छीन लेंगे! केन्द्रीय रेवेन्यू बोर्ड के सदस्य टाटेनहेम ने (नमक-कर की वसूली का काम उसके ही जिम्मे था) नमक सत्याग्रह को "मि. गाँधी का शेखचिल्लीपन" बताया था। इरविन ने बड़े आत्मविश्वास के साथ भरत-सचिव वेजवुड बेन को लिखा था, "फिलहाल तो नमक सत्याग्रह की भावी योजना ने मेरी रातों की नींद नहीं उड़ाई है।"
ग्यारह सूत्रों की घोषणा
फरवरी, 1930 में कांग्रेस वार्मिंग कमिटी ने गाँधीजी को उचित समय पर सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करने का अधिकार दे दिया था। गांधीजी यह आन्दोलन शुरू करने के पहले सरकार को एक मौक़ा देना चाहते थे। 2 मार्च, 1930 को गाँधीजी ने इरविन को पत्र लिखकर नमक कर तोड़ने की घोषणा के साथ-साथ ग्यारह सूत्रों की चेतावनी भी दी। वे ग्यारह सूत्र निम्नलिखित थे -
1. सेना के व्यय में 50% की कटौती,
2. सिविल सेवा के वेतनों में 50% की कटौती,
3. पूर्ण शराबबंदी,
4. राजनीतिक बंदियों की रिहाई,
5. आपराधिक गुप्तचर विभाग में सुधार,
6. हथियार क़ानून में सुधार,
7. रुपए-स्टर्लिंग के विनिमय अनुपात को घटाकर 1 शिलिंग 4 पेंस करना,
8. कपड़ा उद्योग को संरक्षण प्रदान करना,
9. तटीय नौवहन को भारतीयों के लिए आरक्षित करना,
10. भू-राजस्व में 50% की कटौती, और
11. नमक कर की एवं नमक पर सरकारी एकाधिकार की समाप्ति।
इस मांग-पात्र में पूर्ण स्वराज का कोई ज़िक्र नहीं था। लोगों को लगा ग्यारह सूत्री मांगपत्र पूर्ण स्वराज की मांग से एक प्रकार से पीछे हटना था। यह बात लोगों की समझ से परे थी कि जब लोग पूर्ण स्वतंत्रता की बातें कर रहे थे, तो थोड़े-से राजनीतिक और सामाजिक सुधारों की सूची बनाने का क्या मतलब था, चाहे सुधार अच्छे ही क्यों न हों। लेकिन ग्यारह सूत्री मांगपत्र से यह तो स्पष्ट था कि इसने राष्ट्रीय मांगों को मूर्त रूप दिया। इस मांग-पत्र में सभी वर्गों के हितों का ध्यान रखा गया था। जब सरकार ने इस मांग-पत्र को अस्वीकार कर दिया, तो गाँधीजी को सत्याग्रह छेड़ने का औचित्य मिल गया।
लॉर्ड इरविन को पत्र
भारत में नमक पर ब्रिटिश सरकार का एकाधिकार था। कोई भी न तो इसे बना सकता था और न ही सरकार के अलावा किसी और से ख़रीद सकता था। ब्रिटिश सरकार ने नमक पर जो कर लगाया था उसे नमक क़ानून (साल्ट एक्ट) कहा गया था। इसमें कहा गया था, "बिना लाइसेंस नमक बनाना ग़ैर क़ानूनी है।" गाँधीजी इस क़ानून को तानाशाही के एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करना चाहते थे। 2 मार्च 1930 को गाँधीजी ने सत्याग्रह आश्रम, साबरमती से भारत के वायसराय लॉर्ड इर्विन को एक ऐतिहासिक पत्र लिखा, "प्रिय मित्र, मैं जान-बूझ कर किसी जीव का अहित नहीं कर सकता, मनुष्यों का तो नहीं ही, भले ही वे मुझे या मेरे काम को सबसे ज़्यादा चोट पहुंचाएं। इसलिए जबकि मैं ब्रिटिश शासन को एक अभिशाप मानता हूं, मैं किसी भी अंगरेज़ को या भारत में उसके उचित हित को चोट पहुंचाने का इरादा नहीं रखता।" इसके बाद गांधी जी ने उस पत्र में ब्रिटिश शासन की बुराइयों और विषमताओं को गिनाया।
ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ सत्याग्रह
भारत स्थित ब्रिटिश सरकार दुनिया की सबसे खर्चीली सरकार थी। वायसराय की मासिक तनख्वाह 21,000 रुपये थी, जबकि इंगलैण्ड के प्रधानमंत्री को सिर्फ़ 5,400 रुपये मिलते थे। भारत में हर आदमी की औसत रोज़ाना आमदनी दो आने से कम थी और वायसराय को रोज़ाना 700 रुपये दिए जाते थे। इंगलैण्ड के प्रधानमंत्री को रोज़ाना 180 रुपए मिलते थे जबकि एक ब्रिटेनवासी की प्रतिदिन की औसत आय दो रुपये थे। अकेला वायसराय पांच हज़ार भारतीयों की औसत कमाई का हिस्सा खा जाता था, जबकि इंगलैण्ड का प्रधानमंत्री सिर्फ़ नब्बे अंग्रेज़ों की कमाई लेता था। अंग्रेज़ों के इस तरह से लूट के खिलाफ़ गांधीजी ने पत्र में लिखा कि वे ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ सत्याग्रह करेंगे, पर अहिंसक ढंग से।
आजादी के लिए आंदोलन
गाँधीजी ने आज़ादी के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का इरादा ज़ाहिर किया। उन्होंने लिखा, "मैं (नमक पर) इस क़ानून को ग़रीबों के लिहाज से सबसे ज़्यादा अनुचित मानता हूं। नमक पर कर लगाने से ग़रीबों पर और भी बोझ बढा गया है। मैं आपसे सम्मानपूर्वक निवेदन करता हूं कि इस बुराई को ख़त्म करें। लेकिन यदि मेरे इस पत्र से आप पर कोई असर नहीं पड़ा तो इस महीने की 12 तारीख को मैं अधिक से अधिक संख्या में अपने आश्रम वासियों के साथ मिलकर आपके नमक क़ानून का विरोध करूंगा। ..."
अंग्रेज़ी जाति के प्रति अपने प्रेम और विश्वास को प्रकट करने के लिए गाँधीजी ने वह पत्र लेकर सफ़ेद खादी वेशधारी अंग्रेज़ युवक रेजिनल्ड रेनल्ड्स, के हाथों नई दिल्ली स्थित वायसराय आवास भेजा। उसने पत्र वायसराय को दिया। वायसराय ने बिना कुछ कहे उसे विदा कर दिया। गाँधीजी नौ दिन तक वायसराय के उत्तर की प्रतीक्षा करते रहे। वायसराय ने आंखें मूंद लेने का फैसला किया। उसके निजी सचिव जी. कनिंघम ने उत्तर लिखा, जिसमें केवल यही कहा गया था कि "वायसराय महोदय को गाँधीजी महाशय के इरादे के बारे में जानकर खेद हुआ क्योंकि उनकी कार्यवाही से एक तरह से स्पष्ट रूप से क़ानून का उल्लंघन होगा और सार्वजनिक शांति को खतरा होगा।" गाँधीजी ने इसका जवाब दिया, "दुनिया में भारत के अलावा कौन-सा देश है जिसमें सालाना आमदनी 360 रुपये हो और उसमें से 3 रुपये देने पड़ते हों, सिर्फ़ नमक कर के।
सार्वजनिक कारागार की शांति
ब्रिटिश शासक केवल एक ही तरह की शांति चाहता है और वह है सार्वजनिक कारागार की शांति। भारत एक विशाल कारागार ही तो है।" दसवें दिन गांधी जी ने अपने अनुयायियों की एक सभा बुलाई। उन्होंने मज़बूत इरादों के साथ कहा, "भाइयों! झुके घुटनों पर मैंने रोटी की मांग की और इसके बदले मुझे पत्थर मिला है। मैं इसी आश्रम से सागर तट स्थित दांडी तक जुलूस का नेतृत्व करूंगा। वहां पहुंच कर हम क़ानून तोड़कर नमक बनाएंगे।" गाँधीजी के ओज भरे आह्वान सुनकर श्रोताओं में बिजली-सी लहर दौड़ गई। "नमक क़ानून तोड़ो" अभियान का समाचार चारो ओर फैल गया। उधर सरकार ने घोषणा कर दी, "इस तरह से नमक बनाना ग़ैर क़ानूनी माना जाएगा।" किन्तु गाँधीजी अपने इरादे पर दृढ थे। अब वे नमक सत्याग्रह शुरू करने जा रहे थे। नमक सत्याग्रह सविनय अवज्ञा आन्दोलन था। उन्होंने लोगों को यह भी समझाया कि सत्याग्रह का जो तरीका अपनाया सकता था, वह था उपवास, अहिंसा, धरना, असहयोग, सविनय अवज्ञा और क़ानूनी दण्ड।
नोट: संपूर्ण सत्याग्रह के लिए गाँधीजी ने ब्रीटिश सरकार के खिलाफ अहिंसात्मक रूप से नमक सत्याग्रह सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की। इसके बाद से दांडी यात्रा की तैयारियां जोरों पर शुरू हो गईं। 12 मार्च की सुबह नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू हुआ। करियर इंडिया के विशषज्ञ द्वारा अगले लेख में नमक सत्याग्रह आन्दोलन का विस्तृत वर्णन किया जायेगा।