संयुक्त राष्ट्र महासभा में पहली बार हिंदी में किसने भाषण दिया?

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) विश्व की सबसे प्रतिष्ठित और महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जो वैश्विक शांति, सुरक्षा, और सहयोग के लिए काम करती है। इसके मुख्य अंगों में से एक है महासभा, जहाँ सभी सदस्य देश विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर चर्चा और विचार-विमर्श करते हैं। इस महासभा में भाषण देने वाले नेता आमतौर पर अपनी-अपनी मातृभाषाओं में भाषण देते हैं, और इसी सिलसिले में 10 अक्टूबर, 1977 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में पहली बार हिंदी में भाषण दिया गया।

यह ऐतिहासिक भाषण भारतीय विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दिया, जिन्होंने हिंदी को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया और भारत की सांस्कृतिक धरोहर तथा भाषा की समृद्धि को विश्व समुदाय के सामने रखा।

संयुक्त राष्ट्र महासभा में पहली बार हिंदी में किसने भाषण दिया?

अटल बिहारी वाजपेयी: भारतीय राजनीति के दिग्गज

अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति में एक अत्यधिक सम्मानित और लोकप्रिय नेता थे। वह एक प्रखर वक्ता, विचारक और कवि भी थे, जो भारतीय जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के संस्थापक नेताओं में से एक थे। वाजपेयी भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने।

उनकी भाषण शैली और उनकी ओजस्वी वाणी के कारण उन्हें एक महान वक्ता माना जाता था। उनका भाषण हिंदी में था, और यह न केवल भारत के लिए गर्व का विषय था, बल्कि हिंदी भाषा के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार के लिए भी महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।

हिंदी भाषण का ऐतिहासिक महत्व

जब अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण दिया, तो यह घटना न केवल भारत के लिए महत्वपूर्ण थी, बल्कि यह हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति के लिए भी गर्व का क्षण था। यह भाषण उस समय दिया गया था जब भारत वैश्विक मंच पर अपनी जगह बना रहा था और अपनी आवाज़ को मज़बूती से प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा था।

वाजपेयी के इस कदम का उद्देश्य यह दिखाना था कि हिंदी, जो करोड़ों लोगों की मातृभाषा है, अंतर्राष्ट्रीय संवाद और चर्चाओं में अपनी जगह बनाने की पूरी क्षमता रखती है। यह कदम हिंदी को एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रस्तुत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास था। इसके माध्यम से भारत ने यह संकेत दिया कि वह अपनी सांस्कृतिक और भाषाई धरोहर को विश्व मंच पर प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध है।

वाजपेयी के भाषण की मुख्य बातें

वाजपेयी ने अपने भाषण में विश्व शांति, वैश्विक सुरक्षा, और विकास के मुद्दों पर जोर दिया। उन्होंने विकासशील देशों के हितों की वकालत की और वैश्विक मंच पर इन देशों की चुनौतियों और समस्याओं को उजागर किया। उन्होंने भारत की नीति 'विश्व बंधुत्व' और 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' के सिद्धांतों का समर्थन किया और इसे विश्व शांति के लिए अनिवार्य बताया।

वाजपेयी ने यह भी कहा कि भाषा का माध्यम केवल संवाद का साधन नहीं है, बल्कि यह संस्कृति, विचारों, और भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है। उनका मानना था कि हिंदी, जो भारत की एक प्रमुख भाषा है, अपनी सांस्कृतिक महत्ता और ऐतिहासिकता के कारण विश्व स्तर पर अपनी पहचान बना सकती है।

वाजपेयी के हिंदी भाषण के परिणाम

वाजपेयी के हिंदी में भाषण देने का सीधा प्रभाव यह हुआ कि संयुक्त राष्ट्र जैसे प्रतिष्ठित मंच पर हिंदी को एक सम्मानजनक स्थान मिला। इसके बाद हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर और अधिक मान्यता मिलने लगी। यह भाषण हिंदी प्रेमियों और हिंदी भाषा के प्रचारकों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गया।

इस ऐतिहासिक घटना के बाद, भारत सरकार ने भी हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार और उसके अंतर्राष्ट्रीय मान्यता को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए। संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी को औपचारिक भाषा के रूप में मान्यता दिलाने की दिशा में भी प्रयास किए गए, हालाँकि यह अभी तक पूरी तरह सफल नहीं हुआ है। फिर भी, वाजपेयी का यह कदम हिंदी के अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर रहा।

हिंदी का वर्तमान स्थिति और वैश्विक मान्यता

आज हिंदी विश्व की प्रमुख भाषाओं में से एक है और संयुक्त राष्ट्र के कई दस्तावेज़ों में इसका अनुवाद भी होता है। हालांकि, यह अभी तक संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में शामिल नहीं हुई है। लेकिन वाजपेयी के उस ऐतिहासिक भाषण ने हिंदी भाषा को एक नई दिशा दी, और आज हिंदी भाषा विश्व स्तर पर करोड़ों लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है।

भारत सरकार और हिंदी प्रेमियों की ओर से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में शामिल किया जाए। इसके लिए आवश्यक है कि हिंदी बोलने वाले देश और भाषाई समुदाय मिलकर संयुक्त राष्ट्र के मंच पर हिंदी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाएं और इसके लिए समर्थन जुटाएं।

अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा 1977 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में दिया गया भाषण एक ऐतिहासिक क्षण था, जिसने न केवल भारत, बल्कि हिंदी भाषा को भी वैश्विक मानचित्र पर एक नया स्थान दिलाया। यह घटना भारतीय भाषा और संस्कृति के प्रति गर्व का प्रतीक थी और इसे विश्व स्तर पर प्रस्तुत करने का एक सशक्त प्रयास था। वाजपेयी का यह कदम आज भी हिंदी प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है और यह संदेश देता है कि भाषा किसी भी राष्ट्र की पहचान और उसकी सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है।

हिंदी भाषा, जो भारत की आत्मा है, आज भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने की दिशा में निरंतर प्रयासरत है, और यह निश्चित है कि भविष्य में इसे और भी व्यापक मान्यता प्राप्त होगी।

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English summary
Atal Bihari Vajpayee's speech in Hindi at the United Nations General Assembly in 1977 was a historic moment that gave not only India but also the Hindi language a new place on the global map. The event was a symbol of pride in Indian language and culture and a strong effort to present it globally.
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