Explained: हेट स्पीच और कानून

Hate Speech and Law In India: पिछले दिनों भारत की सर्वोच्च अदालत ने मुख्यधारा के टेलीविजन और सोशल मीडिया पर बढ़ रहे हेट स्पीच के मामलों पर चिंता जताते हुए सरकार से पूछा कि जब यह सब चल रहा है‚ तो वह मूकदर्शक क्यों बनी हुई

Hate Speech and Law In India: पिछले दिनों भारत की सर्वोच्च अदालत ने मुख्यधारा के टेलीविजन और सोशल मीडिया पर बढ़ रहे हेट स्पीच के मामलों पर चिंता जताते हुए सरकार से पूछा कि जब यह सब चल रहा है‚ तो वह मूकदर्शक क्यों बनी हुई है। हेट स्पीच से संबंधित ग्यारह मामलों की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि हेट स्पीच या तो मेनस्ट्रीम टेलीविजन पर नजर आ रही है‚ या सोशल मीडिया पर। शीर्ष अदालत ने कहा कि मुख्यधारा के मीडिया में एंकर की भूमिका बहुत अहम है। जैसे ही कोई हेट स्पीच देने की कोशिश करता है‚ एंकर की कर्त्तव्य है कि उसे तुरंत रोक दे। बता दे कि सुप्रीम कोर्ट के सामने कुल ग्यारह मामले हैं‚ जिनमें हेट स्पीच को रेग्युलेट करने के लिए निर्देश देने की गुहार लगाई गई है। इन मामलों की सुनवाई करते हुए अदालत ने राजनीतिक दलों पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि राजनीतिक दल हेट स्पीच को अपना स्टाइल बना रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दल आएंगे और चले जाएंगे‚ लेकिन समाज और प्रेस की हालत देश को भुगतनी पड़ेगी।

Explained: हेट स्पीच और कानून

सुप्रीम कोर्ट की चिंता जायज है। जब से टीवी चैनलों पर डिबेट नामक कार्यक्रम की शुरु आत हुई‚ तभी से हेट स्पीच का खतरा मंडराने लगा था लेकिन पिछले कुछ सालों में इसके मामलों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। समय-समय पर हेट स्पीच के खिलाफ कानून बनाने की मांग उठती रहती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी पूछा है कि क्या केंद्र सरकार भारतीय विधि आयोग की सिफारिशों के आधार पर किसी भी तरह का कानून लाने पर विचार कर रही हैॽ टेलीविजन पर हेट स्पीच रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट लगातार प्रयास कर रहा है। पिछले साल जनवरी में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस.ए. बोबडे ने कहा था कि टीवी के माध्यम से नफरत फैलाने को रोकने के लिए कानून व्यवस्था उतनी ही जरूरी है‚ जितनी जरूरत हिंसा और दंगा करने वालों को रोकने के लिए लाठियों से लैस पुलिसकÌमयों और बैरिकेड्स लगाने की होती है। सीजेआई ने यह टिप्पणी जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की थी जिनमें आरोप लगाया गया था कि कुछ मीडिया संस्थानों ने तब्लीगी जमात की धार्मिक सभा को कोविड-19 संक्रमण फैलाने से जोड़़ कर मामले को सांप्रदायिक बना दिया था।

आज भारतीय टीवी चैनलों पर विश्वसनीयता का जबरदस्त संकट दिखाई देता है। हाल ही में एशिया पैसिफिक इंस्टिट्यूट फॉर ब्रॉडकास्टिंग डवलपमेंट (एआईबीडी) के एक सम्मेलन में सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी इस पर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा‚ 'मेरी व्यक्तिगत राय है कि मुख्यधारा मीडिया को सबसे बड़ा खतरा नये युग के डिजिटल मंचों की बजाय स्वयं मुख्यधारा के मीडिया चैनलों से है। यदि आप धुव्रीकरण पैदा करने वाले अतिथियों को आमंत्रित करने का निर्णय करते हैं‚ जो झूठे विमर्श फैलाते हैं तथा पूरी ताकत लगा कर चीखते-चिल्लाते हैं‚ तो आपके चैनल की विश्वसनीयता गिरती है। दर्शकों की नजर में आपकी विश्वसनीयता आमंत्रित अतिथियों‚ उनकी शैली तथा विजुवल्स से तय होती है। दर्शक एक मिनट के लिए आपका शो देखने के लिए ठहर सकते हैं‚ पर वे कभी आपके एंकर‚ चैनल या ब्रांड पर खबरों के पारदर्शी स्त्रोत के रूप में विश्वास नहीं करेंगे। हमारे मुख्यधारा के मीडिया के संगठनों के समक्ष चुनौती है कि वे सच्ची‚ सटीक और विश्वसनीय खबरें तेजी से प्रसारित करें तथा इसके साथ ही मीडिया की नैतिकता और मूल्य बनाए रखें।'

दरअसल‚ मौजूदा भारतीय कानून में न तो हेट स्पीच को परिभाषित किया गया है और न ही इसके संबंध में कोई विशेष प्रावधान हैं। फिलहाल पुलिस हेट स्पीच से निपटने के जिन कानूनों का सहारा लेती है‚ उनमें प्रमुख हैं आईपीसी की धारा 153क और धारा 295 जिनका इस्तेमाल दो समुदायों को भड़काने और असंतोष फैलाने के मामलों में होता है। हेट स्पीच के लिए अलग से कोई कानून नहीं है। मार्च 2017 में पेश की गई अपनी 267वीं रिपोर्ट में भारतीय विधि आयोग ने हेट स्पीच को परिभाषित करते हुए इसे रोकने के लिए दांडिक विधि के संशोधन का सुझाव दिया था।

नई धाराएं
आयोग ने कहा था कि हेट स्पीच को रोकने के लिए दो नई धाराओं को भारतीय दंड संहिता में जोड़ने की जरूरत है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में हेट स्पीच को घृणापूर्ण भाषण के रूप में परिभाषित करते हुए कहा कि घृणापूर्ण भाषण किसी व्यक्ति के सुनने या देखने की परिधि के भीतर भय या खतरा कारित करने या हिंसा का उद्दीपन करने के आशय से लिखा या बोला गया कोई शब्द‚ संकेत या श्यरूपण है। आयोग ने सिफारिश की थी कि घृणा के उद्दीपन के प्रतिषेध के लिए धारा 153ग कतिपय मामलों में भय‚ खतरा कारित करना या हिंसा को उत्प्रेरित करने के मामलों के लिए धारा 505क आईपीसी में सम्मिलित की जानी चाहिए। विधि आयोग के अलावा दो सरकारी समितियां भी हेट स्पीच को रोकने के लिए आईपीसी में नई धाराएं जोड़ने का सुझाव दे चुकी हैं।

विश्वनाथन समिति‚ 2019 ने धर्म‚ नस्ल‚ जाति या समुदाय‚ लिंग‚ लैंगिक पहचान‚ यौन‚ जन्म स्थान‚ निवास‚ भाषा‚ विकलांगता या जनजाति के आधार पर अपराध करने के लिये उकसाने हेतु आईपीसी में धारा 153ग (ख) और धारा 505क का प्रस्ताव रखा। बेजबरुआ समिति‚ 2014 ने आईपीसी की धारा 153ग (मानव गरिमा के लिये हानिकारक कृत्यों को बढ़ावा देने या बढ़ावा देने का प्रयास) में संशोधन कर पांच वर्ष की सजा और जुर्माना या दोनों तथा धारा 509क (शब्द‚ इशारा या कार्य के जरिए किसी विशेष जाति के सदस्य का अपमान करने का इरादा) में संशोधन कर तीन वर्ष की सजा या जुर्माना या दोनों का प्रस्ताव दिया। विविध पृष्ठभूमि और संस्कृति की विशाल आबादी वाले भारत के लिये हेट स्पीच से निपटना जटिल मुद्दा है क्योंकि स्वतंत्र स्पीच तथा हेट स्पीच के बीच अंतर करना मुश्किल है। हेट स्पीच की एक उचित परिभाषा इस खतरे से निपटने के लिये पहला कदम होगा। यदि केंद्र सरकार विधि आयोग की परिभाषा को मान लेती है‚ तो इसमें मदद मिल सकती है।

मौजूदा भारतीय कानून में न तो हेट स्पीच को परिभाषित किया गया है‚ और न ही इसके संबंध में कोई विशेष प्रावधान हैं। पुलिस हेट स्पीच से निपटने के जिन कानूनों का सहारा लेती है‚ उनमें प्रमुख हैं आईपीसी की धारा 153क और धारा 295 जिनका इस्तेमाल दो समुदायों को भड़काने और असंतोष फैलाने के मामलों में होता है। हेट स्पीच के लिए अलग से कोई कानून नहीं है। मार्च‚ 2017 में पेश की गई अपनी 267वीं रिपोर्ट में भारतीय विधि आयोग ने हेट स्पीच को परिभाषित करते हुए इसे रोकने के लिए दांडिक विधि के संशोधन का सुझाव दिया था। आयोग ने कहा था कि हेट स्पीच को रोकने के लिए दो नई धाराओं को भारतीय दंड संहिता में जोड़ने की जरूरत है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में हेट स्पीच को घृणापूर्ण भाषण के रूप में परिभाषित करते हुए कहा कि घृणापूर्ण भाषण किसी व्यक्ति के सुनने या देखने की परिधि के भीतर भय या खतरा कारित करने या हिंसा का उद्दीपन करने के आशय से लिखा या बोला गया कोई शब्द‚ संकेत या दृश्यरूपण है। आयोग ने सिफारिश की थी कि घृणा के उद्दीपन के प्रतिषेध के लिए धारा 153ग कतिपय मामलों में भय‚ खतरा कारित करना या हिंसा को उत्प्रेरित करने के मामलों के लिए धारा 505क आईपीसी में सम्मिलित की जानी चाहिए।

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English summary
Hate Speech and Law In India: Two new sections need to be added to the Indian Penal Code to prevent hate speech. The commission, in its report, defined hate speech as hate speech, saying that hate speech is any word written or spoken with the intention of causing fear or danger or inciting violence within the range of hearing or sight of any person. A sign or representation. The commission had recommended that section 153C for prohibition of incitement of hatred, causing fear, threat in certain cases or section 505A for cases of abetting violence should be included in the IPC. Apart from the Law Commission, two government committees have also suggested the addition of new sections in the IPC to prevent hate speech.
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