विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस हर साल 28 जुलाई को मनाया जाता है। ये दिवस न केवल वर्तमान पीढ़ी को बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक स्वस्थ पर्यावरण के महत्व की याद दिलाता है। विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस का उद्देश्य वनस्पतियों और जीवों जैसे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के बारे में जनता के बीच जागरूकता पैदा करना है।
इस दिन को मनाने के लिए लोग अधिक से अधिक पेड़ लगाते हैं व पानी और बिजली की बचत के लिए जागरूकता फैलाने के लिए अलग-अलग प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस 2023 की थीम- "Forests and Livelihoods: Sustaining People and Planet"
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस 2022 की थीम क्या थी? "कट डाउन ऑन प्लास्टिक यूज"
भारत में केंद्र सरकार ने 1 जुलाई 2022 से 'एकल उपयोग वाले प्लास्टिक' के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया था। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पिछले साल एक गजट अधिसूचना जारी कर प्रतिबंध की घोषणा की थी, और अब उन वस्तुओं की एक सूची को परिभाषित किया है जिन पर प्रतिबंध लगाया जाएगा।
प्रकृति संरक्षण क्या है?
• सामान्य बोलचाल की भाषा में संरक्षण से तात्पर्य मानव जाति की स्थायी भलाई के लिए पृथ्वी और उसके संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग से है।
• पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों में हवा, खनिज, पौधे, मिट्टी, पानी और वन्यजीव शामिल हैं।
• संरक्षण इन संसाधनों की देखभाल और सुरक्षा है ताकि इन्हें आने वाली पीढ़ी के लिए संरक्षित किया जा सके।
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस का उद्देश्य क्या है?
• इस दिन का उद्देश्य विश्व को स्वस्थ रखने के लिए पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता के बारे में जागरूकता पैदा करना है।
• साथ ही पौधों और जानवरों को बचाना जो विलुप्त होने के कगार पर हैं।
• प्रकृति के विभिन्न घटकों जैसे वनस्पतियों और जीवों, ऊर्जा संसाधनों, मिट्टी के पानी और हवा को बरकरार रखना।
प्रकृति संरक्षण का क्या महत्व है?
प्रकृति हमें हमारी दैनिक जरूरतों के लिए सभी आवश्यक चीजें प्रदान करती है। अधिक जनसंख्या और मानवीय लापरवाही के कारण हम अपने संसाधनों का अत्यधिक यानि कि जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए कोई प्रकृति संसाधन नहीं बचेगा। जिसके लिए हमें अभी से ही प्रकृति संरक्षण की ओर ध्यान देने जरूरी है।
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस का इतिहास
• पिछली शताब्दी के दौरान मानवीय गतिविधियों का प्राकृतिक वनस्पति और अन्य संसाधनों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। तेजी से बढ़ते औद्योगीकरण की तलाश और लगातार बढ़ती आबादी के लिए जगह बनाने के लिए वनों के आवरण को काटने से जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय प्रभाव पैदा हुए हैं।
• पिछले कुछ वर्षों में पर्यावरण संरक्षण के बारे में जितना जागरूकता बढ़ी है उससे कहीं ज्यादा अभी हमें जागरूकता बढ़ाने के आवश्यकता है। हाल के दिनों में पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता और अधिक स्पष्ट हो गई है। संसाधनों के अथक मानव अतिदोहन ने असामान्य मौसम पैटर्न, वन्यजीवों के आवासों का विनाश, प्रजातियों के विलुप्त होने और जैव विविधता के नुकसान को जन्म दिया है। अफसोस की बात है कि यह दुनिया भर में प्रकृति संरक्षण के लिए इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (I.U.C.N.) जैसे संगठन महत्वपूर्ण हैं लेकिन उसके बावजूद भी हम प्रकृति को संरक्षित करने में सफल नहीं हो पाए हैं।
• इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने यह जांचने पर ध्यान केंद्रित किया कि मानव गतिविधियों ने प्रकृति को कैसे प्रभावित किया। इसने पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के उपयोग को भी बढ़ावा दिया, जिसे व्यापक रूप से उद्योगों में अपनाया गया है। 1960 और 1970 के दशक में, आई.यू.सी.एन. के अधिकांश कार्य प्रजातियों और उनके आवासों के संरक्षण की ओर निर्देशित थे। हालांकि 1964 में, आई.यू.सी.एन. की स्थापना की गई थी।
• 2000 के दशक में, आई.यू.सी.एन. 'प्रकृति आधारित समाधान' की शुरुआत की। ये ऐसे कार्य हैं जो जलवायु परिवर्तन, भोजन और पानी की सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन जैसी वैश्विक चुनौतियों का समाधान करते हुए प्रकृति का संरक्षण करते हैं। आई.यू.सी.एन. वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे विविध पर्यावरण नेटवर्क है।
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए कुछ कदम/कार्यक्रम नीचे दिए गए हैं:
- राष्ट्रीय आर्द्रभूमि (वेटलेंड) संरक्षण कार्यक्रम
- नगर वाहन उद्यान योजना
- प्रोजेक्ट टाइगर
- स्वच्छ भारत अभियान
- मगरमच्छ संरक्षण परियोजना
- यूएनडीपी समुद्री कछुआ परियोजना
- प्रोजेक्ट हाथी
पर्यावरण और जैव विविधता की रक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा पारित महत्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं:
- मत्स्य पालन अधिनियम 1897
- भारतीय वन अधिनियम 1927
- खनन और खनिज विकास विनियमन अधिनियम 1957
- पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम 1960
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972
- जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1974
- वन संरक्षण अधिनियम 1980
- वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1981
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986
- जैविक विविधता अधिनियम 2002
- आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन नियम 2010