World Hindi Day 2023: विश्व हिंदी दिवस हर साल 10 जनवरी को मनाया जाता है। विश्व हिंदी दिवस मनाने की शुरुआत पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा 10 जनवरी 2006 को की गई थी। हिंदी के विकास, प्रचार और प्रसार को बढ़ाने के लिए वैश्विक स्तर पर विश्व हिंदी दिवस मनाने की पहल शुरू की गई। 10 जनवरी 1975 को महाराष्ट्र के नागपूर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पहला 'विश्व हिंदी सम्मेलन'किया था। जिसमें 30 देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। आज हिंदी भाषण नेपाल और मॉरीशस समेत कई देशों में बोली जाती है।
हिंदी भारत की आत्मा है। यह ऐसी भाषा है‚ जिसने भारत की वैश्विक स्तर पर अद्वितीय पहचान बनाई है। हिन्दी ऐसी आसान और अनिवार्य माध्यम है‚ जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत को एक सूत्र में पिरोती है। हालांकि‚ आजादी के बाद हिन्दी की राह आसान नहीं रही। संविधान सभा द्वारा 1949 में जब हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकृत किया गया तो तमिलनाडु‚ आंध्र प्रदेश‚ पश्चिम बंगाल जैसे कई अहिन्दीभाषी राज्य इसे राष्ट्र भाषा बनाने के पक्ष में नहीं थे।
इन्हीं मजबूरियों के चलते हमारे नीति-निर्धारकों ने हिन्दी को अंग्रेजी के साथ राजभाषा का दर्जा दिया। इसके बाद‚ हमारी दृढ़-इच्छाशक्ति के अभाव में हिन्दी के विकास को वह गति कभी नहीं मिल पाई जिसकी जरूरत थी‚ लेकिन बीते 8 वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में हिन्दी को वैश्विक आयाम हासिल हुआ है। उनके अथक प्रयासों का ही परिणाम है कि आज लोगों ने हमारे सामाजिक‚ सांस्कृतिक और आर्थिक विकास में हिन्दी की प्रासंगिकता को स्वीकार किया है‚ और इसका दायरा समस्त अहिन्दीभाषी राज्यों में द्रुत गति से बढ़ा है।
बीते 8 वर्ष में हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए राजनीतिक स्तर पर प्रयास तो हुए ही‚ न्यायालय ने भी इसे लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। दरअसल 2019 में न्यायालय द्वारा घोषणा की गई थी कि उसके सभी फैसले हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में उपलब्ध होंगे। न्यायालय द्वारा इस दिशा में कार्य शुरू भी कर दिया गया। लेकिन हमें इस दिशा में और अधिक तेजी दिखाने की जरूरत है। तथ्य बताते हैं कि बीते 4 वर्ष में न्यायालय के केवल 538फैसले ही हिन्दी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में अनूदित हुए हैं‚ जिनमें 290 अनूदित फैसलों के साथ हिन्दी की संख्या सर्वाधिक है।
वहीं‚ आंकड़े यह भी बताते हैं कि अनुवादित फैसलों की संख्या में साल-दर-साल गिरावट आ रही है। 2019 में सबसे अधिक 209 फैसलों का अनुवाद हुआ था जबकि 2020 में 142‚ 2021 में 100 और 2022 में केवल 82 फैसले हिन्दी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवादित हुए। स्थिति यह है कि 3 वर्ष से अधिक समय के बाद भी राम जन्मभूमि का फैसला सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर हिन्दी में उपलब्ध नहीं है। हालांकि‚ उम्मीद है कि विधि साहित्य प्रकाशन द्वारा यह फैसला जल्द ही हिन्दी में उपलब्ध होगा।
इस प्रसंग को उठाने के पीछे मेरा ध्येय यह है कि हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं के बहुआयामी विकास के लिए जरूरी है कि हिन्दी राजनीति‚ शिक्षा‚ प्रशासन और तकनीकी के साथ-साथ न्यायालय की भी भाषा बने। इससे आम जन को भी न्यायालय के फैसले की समझ आसानी से होगी। बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का अनुवाद उच्च न्यायालय के माध्यम से होता है। यहां फैसलों के अनुवाद के लिए सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है। इसके बावजूद‚ मेरा मानना है कि इस प्रक्रिया में गति लाने के लिए अधिक से अधिक पेशेवरों की नियुक्ति हो। इससे हिन्दी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में रोजगार की संभावनाओं में भी वृद्धि होगी और युवा इसके प्रति आकÌषत भी होंगे।
इस आलेख में मैं केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह द्वारा हाल ही में दिए गए एक वक्तव्य का भी उल्लेख करना चाहूंगा। शाह ने बीते दिनों गुजरात के मेहसाणा में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा‚ 'मातृ भाषा में शिक्षा मिलने से छात्रों की वैचारिक‚ तार्किक और विश्लेषण क्षमता का विकास होगा।' कुछ कथित बुद्धिजीवी उनके इस बयान की आलोचना कर रहे हैं कि इससे हमारी भावी पीढ़ी का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा लेकिन मैं कहना चाहूंगा कि यह महज ओछी राजनीति है। गौरतलब है कि भाषाविद् बारंबार कहते रहे हैं कि अपनी भाषा में शिक्षा से बच्चों का मानसिक विकास तेजी से होता है।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी इसे ध्येय के साथ मातृ भाषा में शिक्षा पर काफी बल दिया गया है। यह ऐसा प्रयास है जिससे छात्रों की वैचारिक‚ तार्किक‚ विश्लेषण और शोध क्षमता को नई ऊंचाई मिलेगी‚ यह चिंता किए बगैर कि वे किस सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से वास्ता रखते हैं। अभी तक हम अपनी शिक्षा व्यवस्था में अंग्रेजों द्वारा थोपी गई नीति का पालन कर रहे थे‚ जहां रट कर पढ़ना बुद्धिमत्ता की निशानी थी। यह एक ऐसी व्यवस्था थी‚ जिसने देश में 'भारत' और 'इंडिया' के फर्क को पैदा कर दिया।
लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने जिस नीति को क्रियान्वित किया है‚ वह अपने-आप में संपूर्ण है। इससे न सिर्फ छात्रों की बौद्धिक क्षमता बढ़ेगी‚ बल्कि अपनी विरासतों का संरक्षण भी होगा। आज सरकार द्वारा तकनीकी‚ चिकित्सा और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम का अनुवाद मातृ भाषा में किया जा रहा है। इन प्रयासों के फलस्वरूप हमारी व्यावसायिक और कौशल शिक्षा को गति मिलेगी और भारत की अंतÌनहित क्षमताओं को 'आजादी के अमृत काल' में पूरी दुनिया देखेगी।