भारत अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस यानि की आजादी का अमृत महोत्सव मनाने जा रहा है। इस दिन देश उन वीर पुरुषों और महिलाओं को श्रद्धांजलि अर्पित करता है जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान देश की आजादी में दिया है। तो आइए आज के इस आर्टिकल हम आपको अरुणाचल प्रदेश की उन महिलाओं के बारे में बतातें है जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था।
बता दें कि अरुणाचल प्रदेश को पहले नॉर्थ ईस्टर्न फ्रंटियर एजेंसी (NEFA) के नाम से जाना जाता था, जिसे "उगते सूरज की भूमि" कहा जाता है। यह राज्य भारत के उत्तरपूर्वी भाग में स्थित है, जो उत्तर में चीन, दक्षिण में असम और नागालैंड, दक्षिण-पूर्व में म्यांमार और पश्चिम में भूटान से घिरा है। तो चलिए जानते हैं अरुणाचल प्रदेश की महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में।
अरुणाचल प्रदेश की महिला स्वतंत्रता सेनानियों की सूची
1. भोगेश्वरी फुकानानी
भोगेश्वरी फुकानानी ब्रिटिश राज के दौरान एक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन कार्यकर्ता थी, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी प्राण तक कुर्बान कर दिए थे। फुकानानी का जन्म 1885 में असम के नागांव जिले में हुआ था। उनका विवाह भोगेश्वर फुकन नामक व्यक्ति से हुआ था जिनसे इन्हें दो बेटियां और छह बेटे थे।
60 वर्षीय शहीद भोगेश्वरी फुकानानी ने ऐसे समय में जब महिलाओं को परिवार की देखभाल करनी होती है, उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। भले ही भोगेश्वरी आठ बच्चों की एक मां और एक गृहिणी थी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपनी मातृभूमि के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
2. रानी गाइदिन्ल्यू
गाइदिन्ल्यू एक रोंगमेई नागा आध्यात्मिक और राजनीतिक नेता थीं, जिन्होंने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ एक सशस्त्र प्रतिरोध का विद्रोह किया, जो उन्हें आजीवन कारावास तक ले गया। तत्कालिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें 'रानी' की उपाधि दी और उसके बाद उन्होंने रानी गाइदिन्ल्यू के रूप में स्थानीय लोकप्रियता हासिल की। स्वतंत्रता के बाद, उन्हें रिहा कर दिया गया और बाद में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया।
3. कनकलता बरुआ
कनकलता बरुआ को प्रमुख रूप से 'बीरबाला' के नाम से जाना जाता है। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में महिला स्वयंसेवकों की प्रमुख के रूप में सक्रिय भाग लिया, जिनके हाथ में राष्ट्रीय ध्वज था। गोहपुर पुलिस स्टेशन में एक अहिंसक विरोध के दौरान ब्रिटिश पुलिस ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी।
बरुआ का जन्म असम के अविभाजित दरांग जिले के बोरंगबाड़ी गांव में कृष्ण कांता और कर्णेश्वरी बरुआ की बेटी के रूप में हुआ था। उनके दादा घाना कांता बरुआ दरांग में एक प्रसिद्ध शिकारी थे। जबकि उनके पूर्वज अहोम राज्य के डोलकाशरिया बरुआ साम्राज्य से थे, जिन्होंने डोलकाशरिया की उपाधि को त्याग दिया था और बरुआ की उपाधि को बरकरार रखा।
कनकलता बरुआ जब केवल पांच वर्ष की थी तब उनकी मां की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद उनके पिता ने दूसरी शादी की और उनकी भी मृत्यु हो गई जब वह मात्र तेरह वर्ष की थी। कनकलता को कक्षा तीन तक पढ़ाई करने के बाद अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने के लिए पढ़ाई छोड़नी पड़ी।