चंद्रधर शर्मा गुलेरी हिंदी साहित्य के एक प्रतिष्ठित कथाकार, व्यंग्यकार और निबंधकार थे। उनके लेखन में व्यंग्य, हास्य और गंभीर विषयों पर गहरा चिंतन का अद्भुत सम्मिश्रण देखने को मिलता है। उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और उन्होंने पाठकों के दिलों में अपनी एक अलग जगह बनाई।
चंद्रधर शर्मा गुलेरी की जीवनी के लिए नीचे पढ़ें-
प्रारंभिक जीवन
चंद्रधर शर्मा गुलेरी का जन्म 7 जुलाई, 1883 को जयपुर में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जयपुर में ही प्राप्त की। इसके बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद चले गए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की।
साहित्यिक सफर
गुलेरी जी ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत बहुत कम उम्र में ही कर दी थी। उन्होंने विभिन्न पत्रिकाओं में अपने लेख और कहानियां प्रकाशित करनी शुरू कीं। उनकी लेखनी में व्यंग्य और हास्य की झलक साफ दिखाई देती थी। उन्होंने सामाजिक बुराइयों, राजनीतिक स्थिति और मानवीय स्वभाव पर व्यंग्य करते हुए समाज को जागरूक करने का प्रयास किया।
रचनाएं
गुलेरी जी ने कई कहानियां, निबंध और उपन्यास लिखे। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं हैं:
- सुखमय जीवन: यह उनका पहला उपन्यास था जिसमें उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों के जीवन को बड़ी ही सहजता से चित्रित किया है।
- बुद्धू का कांटा: यह एक व्यंग्यात्मक कहानी है जिसमें उन्होंने समाज के ढोंग और पाखंड पर तीखा व्यंग्य किया है।
- उसने कहा था: यह उनकी सबसे लोकप्रिय कहानियों में से एक है जिसमें उन्होंने एक बालक के मनोविज्ञान को बहुत ही खूबसूरती से चित्रित किया है।
भाषा-शैली
गुलेरी जी की भाषा सरल और सहज थी। वे अपनी बात को बहुत ही स्पष्ट और प्रभावी ढंग से कहने में माहिर थे। उनकी लेखनी में व्यंग्य और हास्य का अद्भुत सम्मिश्रण होता था। वे समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों के मनोविज्ञान को बड़ी ही गहराई से समझते थे और अपनी कहानियों में इसे बड़ी खूबसूरती से उकेरा करते थे।
आज के युग में गुलेरी जी की प्रासंगिकता
आज भी गुलेरी जी की रचनाएँ उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी वे अपने समय में थीं। उनके द्वारा उठाए गए कई मुद्दे आज भी हमारे समाज में मौजूद हैं। उनकी रचनाओं से हमें समाज के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से सोचने का मौका मिलता है।
चंद्रधर शर्मा गुलेरी के बारे में पढ़िए शॉर्ट में..
चंद्रधर शर्मा गुलेरी हिंदी साहित्य के एक ऐसे रत्न थे जिन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। उनकी रचनाएं आज भी हमें प्रेरित करती हैं और हमें समाज के प्रति जागरूक करती हैं।
- गुलेरी जी ने नागरी प्रचारिणी सभा के सभापति के रूप में भी कार्य किया।
- उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्राच्यविद्या विभाग के प्राचार्य के रूप में भी सेवाएं दीं।
- गुलेरी जी की रचनाओं का अध्ययन हमें समाज के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करता है।
- उनकी रचनाओं में व्यंग्य और हास्य का अद्भुत सम्मिश्रण होता है।
- उनकी भाषा सरल और सहज थी।
- उनकी रचनाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी वे अपने समय में थीं।
- उनकी मृत्यु 11 सितंबर, 1922 को हुई थी।