Vijay Diwas 2023 Bangladesh Victory Day: भारतीय सेना के एक ऐतिहासिक जीत की याद में हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। 13 दिनों तक चले इस घमासान भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान को घुठनों पर ला खड़ा कर दिया। 16 दिसंबर 1971 वही महत्वपूर्ण दिन है, जब भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान पर भारतीय सेना ने विजय प्राप्त किया था।
इसी दिन दुनिया के नक्शे में एक देश का जन्म हुआ था, या यूं कहें कि पाकिस्तानी हुकूमत से इस देश को मुक्ति मिली और एक अलग राष्ट्र का निर्माण हुआ। पूर्व में इस देश को पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था और 16 दिसंबर 1971 को इसे बांग्लादेश का नाम मिला।
इस जीत की पृष्ठभूमि 1971 की शुरुआत से मिलती है, जब पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच राजनीतिक तनाव बढ़ गया था। सैन्य तानाशाह याह्या खान ने स्वायत्तता की मांग को दबाने के लिए पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में क्रूर कार्रवाई का आदेश दिया। जैसे-जैसे अत्याचार सामने आए, शरणार्थियों ने भारत में शरण मांगी, जिससे अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ गया।
कैसे हुई जंग की शुरुआत
भारत-पाकिस्तान जंग में निर्णायक मोड़ 25 मार्च 1971 को आया, जब पाकिस्तान द्वारा ऑपरेशन चंगेज खान का शुरुआत की गई। इस पूर्वव्यापी हवाई हमले में, भारतीय सैन्य हवाई अड्डों को निशाना बनाया गया। आक्रामकता के इस कृत्य ने स्वतंत्रता के लिए लड़ रही बंगाली राष्ट्रवादी ताकतों के समर्थन में भारत के हस्तक्षेप को प्रेरित किया।
भारतीय सशस्त्र बलों का निर्णायक सैन्य अभियान
तत्कालीन जनरल सैम मानेकशॉ के नेतृत्व में भारतीय सशस्त्र बलों ने एक निर्णायक सैन्य अभियान चलाया। इस रणनीति में पूर्व में तेजी से आगे बढ़ना, जेसोर और खुलना जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर कब्जा करना शामिल था। अनावश्यक जोखिमों से बचते हुए, एक तैयार और गणनात्मक दृष्टिकोण सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
3 दिसंबर को संघर्ष हुआ तेज
पाकिस्तानी हवाई हमलों के साथ 3 दिसंबर 1971 को भारतीय सैन्य हवाई अड्डों पर संघर्ष बढ़ने लगा। अगले दिन, प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने युद्ध की आधिकारिक शुरुआत को चिह्नित करते हुए एक आपातकालीन कैबिनेट बैठक की। भारतीय सेना ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थानों पर कब्ज़ा करने की योजना बनाते हुए अपनी प्रगति जारी रखी।
16 दिसंबर 1971 (bangladesh victory day) तक, भारत-पाकिस्तान युद्ध की गति निर्णायक रूप से भारत के पक्ष में बदल गई थी। युद्ध में इस प्रकार के बदलाव को देखते हुए पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाज़ी एक अनिश्चित स्थिति पर पहुंच गये। भारतीय सेना के करीब आने के बाद, उनके पास आत्मसमर्पण करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
क्यों लड़ा गया बांग्लादेश मुक्ति संग्राम (How did Bangladesh get liberation)
1971 में बांग्लादेश ने एक स्वतंत्र देश बनने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश मुक्ति युद्ध लड़ा। इसके परिणामस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान इस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान से अलग हो गया और बांग्लादेश नामक संप्रभु राष्ट्र की स्थापना हुई। 1971 युद्ध ने पूर्वी पाकिस्तान और भारत को पश्चिमी पाकिस्तान के विरुद्ध खड़ा कर दिया, यह नौ महीने तक चला। 20वीं सदी के सबसे हिंसक युद्धों में से एक, इसमें बड़े पैमाने पर अत्याचार, 10 मिलियन शरणार्थियों का पलायन और पाकिस्तानी सशस्त्र बलों द्वारा 3 मिलियन लोगों की हत्या देखी गई।
गौरतलब हो कि पूर्वा पाकिस्तान की मुक्ति के लिए 1971 के युद्ध का प्रारंभ 3 दिसंबर, 1971 में शुरू हुआ। इस दिन पाकिस्तान द्वारा भारतीय वायुसेना के 11 स्टेशनों, मुख्य रूप से पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर, आगरा आदि पर हवाई हमला किया गया था। 3 दिसंबर, 1971 को इंदिरा गांधी तत्कालीन कलकत्ता में एक जनसभा को संबोधित कर रही थीं। घटना की जानकारी मिलते ही वे उसी दिन दिल्ली लौटीं और केंद्रीय मंत्रिमंडल के साथ एक आपातकालीन बैठक की।
इसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में बंगाली राष्ट्रवादी गुटों के सपोर्ट के लिए तैयार हो गई। दरअसल 1970 में पाकिस्तान में चुनाव हुए थे, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान आवामी लीग ने जीत हासिल कर सरकार बनाने का दावा किया, किंतु जुल्फिकार अली भुट्टो इस बात से सहमत नहीं थे, इसलिए उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया था। ऐसे में हालात इतने ज्यादा खराब हो गए कि सेना की मदद लेना पड़ी। तब अवामी लीग के शेख मुजीबुर रहमान जो कि पूर्वी पाकिस्तान के बड़े नेता थे, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और इसी के साथ पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच रिश्ते खराब हो गए।
बांग्लादेश का जन्म- लोकतंत्र, न्याय और आत्मनिर्णय
1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध में ऐतिहासिक क्षण ढाका में सामने आया, जहां जनरल नियाज़ी ने आत्मसमर्पण के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए। इससे आधिकारिक तौर पर युद्ध समाप्त हो गया। इस घटना के महत्व को कम करके आंका नहीं जा सकता। इससे बांग्लादेश का जन्म हुआ, जो लोकतंत्र, न्याय और आत्मनिर्णय के अधिकार की जीत का प्रतीक था।
विजय दिवस केवल सैन्य विजय का दिन नहीं है बल्कि न्याय, मानवाधिकार और उत्पीड़ितों की रक्षा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। यह भारतीय सशस्त्र बलों की वीरता और स्वतंत्रता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति उनके अटूट समर्पण के प्रमाण के रूप में खड़ा है।
हर साल, विजय दिवस पर, राष्ट्र उन बहादुर सैनिकों को श्रद्धांजलि देता है, जिन्होंने एक नेक काम के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। इस दौरान विभिन्न श्रद्धांजलि समारोहों का आयोजन किया जाता है, जिसमें पुष्पांजलि समारोह, परेड और सशस्त्र बलों की अदम्य भावना का सम्मान करने वाले कार्यक्रम शामिल होते हैं। विजय दिवस राष्ट्र की सामूहिक स्मृति में गौरव और श्रद्धा के दिन के रूप में अंकित है। यह न्याय के लिए किए गए बलिदानों और भारतीय सशस्त्र बलों को परिभाषित करने वाली स्थायी भावना की याद दिलाता है।