भारत एक विविधतापूर्ण देश है जहां अनेक भाषाएं बोली जाती हैं। भाषाई विविधता के बावजूद, एक राष्ट्रीय भाषा को अपनाने का मुद्दा हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। भारतीय संविधान ने इस मुद्दे पर गहराई से विचार किया और संविधान के भाग XVII में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया।
इस भाग में भाषा से संबंधित विभिन्न प्रावधानों का वर्णन किया गया है, जिसमें हिंदी को राजभाषा के रूप में अपनाने की प्रक्रिया और अन्य भाषाओं की भूमिका पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है।
भारतीय संविधान और भाषा संबंधी प्रावधान
भारतीय संविधान का भाग XVII (अनुच्छेद 343 से 351 तक) पूरी तरह से भाषा से संबंधित है। इसमें केंद्रीय और राज्य स्तर पर भाषा के उपयोग से जुड़े नियम और दिशा-निर्देश दिए गए हैं। अनुच्छेद 343 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि "संघ की राजभाषा हिंदी होगी और लिपि देवनागरी होगी।" इसके साथ ही, अंग्रेजी को भी 15 वर्षों तक सरकारी कामकाज के लिए सहायक भाषा के रूप में प्रयोग करने का प्रावधान रखा गया था। इसका उद्देश्य यह था कि हिंदी के प्रसार के लिए समय दिया जा सके और धीरे-धीरे हिंदी को पूरी तरह से राजभाषा के रूप में स्थापित किया जा सके।
हिंदी को राजभाषा बनाने की पृष्ठभूमि
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, महात्मा गांधी सहित कई नेताओं ने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकार करने का समर्थन किया। उनका मानना था कि हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसे देश के अधिकांश लोग समझ सकते हैं, और यह एकता का प्रतीक हो सकती है। हालांकि, उस समय भी भारत में भाषाई विविधता एक बड़ा मुद्दा था और कई क्षेत्रों में अन्य भाषाओं की मजबूत उपस्थिति थी। इसलिए, संविधान सभा ने भाषा के मुद्दे पर गहन चर्चा की और निर्णय लिया कि हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया जाएगा, लेकिन साथ ही अन्य भाषाओं को भी उचित सम्मान और स्थान दिया जाएगा।
अनुच्छेद 343 से 351: मुख्य प्रावधान
अनुच्छेद 343: इसमें स्पष्ट रूप से हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया है और देवनागरी लिपि को हिंदी की आधिकारिक लिपि के रूप में मान्यता दी गई है। साथ ही, यह भी कहा गया कि प्रारंभ में 15 वर्षों के लिए अंग्रेजी भाषा का उपयोग सरकारी कामकाज के लिए किया जाएगा ताकि हिंदी को पूरी तरह से स्थापित करने के लिए समय मिल सके।
अनुच्छेद 344: इसमें राजभाषा आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है, जिसका उद्देश्य यह है कि हिंदी के विकास और प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाए। यह आयोग हर पांच वर्ष में सरकार को रिपोर्ट देगा और यह सुनिश्चित करेगा कि हिंदी का प्रयोग धीरे-धीरे बढ़ाया जाए।
अनुच्छेद 345: इसमें राज्यों को यह अधिकार दिया गया है कि वे अपनी राजभाषा का चयन कर सकते हैं। यह प्रावधान भारत की भाषाई विविधता को ध्यान में रखते हुए किया गया, ताकि राज्यों को अपनी क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग करने की स्वतंत्रता मिले।
अनुच्छेद 346: इसमें संघ और राज्यों के बीच सरकारी कामकाज के लिए हिंदी या अंग्रेजी का प्रयोग किया जा सकता है।
अनुच्छेद 347: इसमें यह प्रावधान किया गया है कि यदि किसी राज्य की जनता की एक बड़ी संख्या किसी अन्य भाषा को मान्यता देने की मांग करती है, तो राष्ट्रपति उस भाषा को उस राज्य की अतिरिक्त राजभाषा के रूप में मान्यता दे सकते हैं।
अनुच्छेद 348: इसमें उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के कामकाज के लिए अंग्रेजी को अनिवार्य भाषा के रूप में उपयोग करने का प्रावधान है। इसके अंतर्गत सभी विधायी दस्तावेजों का अंग्रेजी अनुवाद किया जाना अनिवार्य है।
अनुच्छेद 349: इसमें संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वह भाषा के प्रयोग से संबंधित कोई भी कानून पारित कर सकती है, बशर्ते कि उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हो।
अनुच्छेद 350: इसमें नागरिकों को यह अधिकार दिया गया है कि वे किसी भी सरकारी कार्यालय में अपनी भाषा में आवेदन कर सकते हैं। इसके साथ ही, यह सुनिश्चित किया गया है कि भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की जाएगी।
अनुच्छेद 351: इसमें हिंदी के विकास और प्रसार के लिए सरकार पर यह जिम्मेदारी डाली गई है कि वह हिंदी को एक आधुनिक और समृद्ध भाषा बनाने के लिए प्रयास करे। यह भी कहा गया कि हिंदी में भारत की सांस्कृतिक धरोहर का समावेश हो और इसे विभिन्न भारतीय भाषाओं से समृद्ध किया जाए।
हिंदी को राजभाषा बनाने की चुनौतियां
हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने के बाद भी इसे पूरे देश में व्यापक रूप से लागू करने में कई चुनौतियां सामने आईं। दक्षिण भारतीय राज्यों, विशेषकर तमिलनाडु, में हिंदी को लागू करने का विरोध हुआ। उनका मानना था कि हिंदी को जबरदस्ती थोपना उनके सांस्कृतिक और भाषाई अधिकारों का हनन है। इसके चलते, 1965 में हिंदी विरोधी आंदोलन भी हुआ, जिसमें कई लोग सड़कों पर उतरे और सरकार के इस फैसले का विरोध किया।
इस विरोध को ध्यान में रखते हुए सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि हिंदी को अनिवार्य रूप से लागू नहीं किया जाएगा, बल्कि इसे एक वैकल्पिक भाषा के रूप में विकसित किया जाएगा। इसके साथ ही, अंग्रेजी को भी सहायक भाषा के रूप में उपयोग में बनाए रखने का निर्णय लिया गया।
भारतीय संविधान ने भाग XVII में हिंदी को राजभाषा का दर्जा देकर इसे एक महत्वपूर्ण स्थान दिया, लेकिन साथ ही अन्य भाषाओं को भी उचित सम्मान और अधिकार दिए। यह प्रावधान भारत की भाषाई विविधता को ध्यान में रखते हुए बनाए गए हैं, ताकि देश की एकता और अखंडता बनी रहे। हिंदी आज भी सरकारी कामकाज की प्रमुख भाषा है, लेकिन इसके साथ अंग्रेजी और अन्य क्षेत्रीय भाषाएँ भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।