Teachers Day 2023: शिक्षक हमारे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण अंग होते हैं। जैसे मां हमारे जीवन की नींव रखती है वैसे ही शिक्षक हमारी जीवन की सूपर्ण इमारत को खड़ा करता है। ऐसे में वे हमारे लिए कई चुनौतियों का सामना करते हैं तब जाकर वे हमें नई-नई चीजों को सीखा पाते हैं और बता पाते हैं। वैसे तो पूरा का पूरा साल ही शिक्षक का होता है लेकिन साल में एक दिन शिक्षकों के लिए मनाया जाता है। जिसे हम शिक्षक दिवस (5 सितंबर) के रूप में जानते हैं।
लेकिन क्या कभी आपने ये सोचने की कोशिश की, जिनके लिए हम साल का दिन देते हैं वे साल के 365 दिन कितनी चुनौतियों का सामना करते हैं? तो आइए इस शिक्षक दिवस पर हम आपको बताते हैं कि अपने जीवन काल में एक शिक्षक कितनी चुनौतियों की सामना करता है और सामना करते हुए हजारों-लाखों बच्चों को निस्वार्थ शिक्षा देते हैं।
किन चुनौतियों का करना पड़ता है एक शिक्षक को सामना
शिक्षक बनना कोई आसान काम नहीं है। शिक्षण प्रोफेशन आज के समय में कई चुनौतियों अपने साथ लेकर आता है। लगातार कई शिक्षकों से बात कर उनकी भावनाओं को समझते हुए हमने जाना है कि वह अपने जीवन में किस प्रकार की चुनौतियों का सामना करते है। आज हम आपको बताएंगे एक शिक्षक की चुनौतियों की कहानी उसी जुबानी...
प्रश्न - एक शिक्षक के रूप में आपको किस प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
उत्तर - एक शिक्षक के तौर पर हमारे पास पढ़ाने के काम से साथ अन्य कई काम होते हैं, जैसे रिकॉर्ड मेन्टेन करना, स्कूल करिकुलर एक्टिविटीज, जिसके कारण शिक्षकों पर काम का भार अधिक हो जाता है।
अन्य करिकुलर एक्टिविटी का एक्स्ट्रा भार - स्कूल में होने वाली सोशल एक्टिविटीज के कारण शिक्षकों को पढ़ाने से ज्यादा काम चीजों को संभालने का होने लगा है। जिसके कारण बच्चे एक्टिविटी में ज्यादा हिस्सा ले रहे हैं और एकेडमिक्स में कम दिलचस्पी ले रहे हैं।
कक्षा 1 से 8 तक पास होने की अनिवार्यता - कक्षा 1 से 8 तक बच्चों को पास करना अनिवार्य होने के कारण सेकेंडरी और सीनियर सेकेंडरी शिक्षकों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। क्योंकि जब बच्चों को पता है कि उन्हें कक्षा 8 तक किसी भी हालत में नहीं रोका जा सकता है तो वो भी किसी प्रकार की मेहनत नहीं करना चाहते हैं। इसके कारण बच्चों को पढ़ाना और मुश्किलें पैदा कर देता है और शिक्षकों पर भार और बढ़ जाता है। ।
माता-पिता का शिक्षकों के प्रति व्यवहार - खराब होता जा रहा है। एक समय था जब माता-पिता शिक्षक द्वारा बताई बातों पर गौर करते थे। एक आज का समय है, जब बच्चों के अंक कम आते हैं और उनकी कमी के बारे में शिक्षक माता-पिता को जानकारी देता है तो माता-पिता शिक्षक को ही गलत ठहराते हैं और यहां तक की अपशब्दों का प्रयोग भी करते हैं। बच्चों के प्रति उनका अतिसंरक्षित व्यवहार टीचर्स के लिए नेगेटिव हो जाता है। आज से समय में जब माता-पिता ही शिक्षक को सम्मान नहीं देंगे तो उनके बच्चें हमें सम्मान कैसे देंगे।
डांटने और छोटी-मोटी सजा देना का विधान खत्म होना - बच्चों को सजा ने देने, न डांटना और मारने का ये नियम कई मायनों में सही है लेकिन इसका ड्रॉप बैक ये है कि बच्चों को ये बात पता है और इसके कारण उनका व्यवहार शिक्षकों के प्रति बहुत खराब होने लगा है। यदि कोई शिक्षक बच्चे को कुछ समझता है कई ऐसे बच्चे हैं जो शिक्षक मारने के लिए उकसाते हैं, उन पर अकड़ने लगते हैं और उन्हें धमकी देने लगते हैं और शिक्षकों के खिलाफ जाकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे स्थिति में शिक्षक बहुत कमजोर हो जाते हैं और कुछ नहीं कर पाते हैं।
प्रश्न - क्या आपको लगता है बच्चों के फायदे के लिए आए नियमों का गलत इस्तेमाल हो रहा है और इससे शिक्षक के हाथ में अब कोई पावर नहीं है?
उत्तर - शिक्षकों को इस बात से कभी दिक्कत नहीं है कि बच्चों के फायदे के लिए नियम बनाए जा रहे हैं उन्हें स्ट्रोंग बनाया जा रहा है। लेकिन ये भी सच है इन नियमों का जब गलत इस्तेमाल होता है तो शिक्षकों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। ये काम सभी बच्चे नहीं करते हैं लेकिन कुछ बच्चों को मिली इस पावर का वो इस्तेमाल ही शिक्षकों के खिलाफ करते हैं, इसमें कई बार माता-पिता भी बच्चों का साथ देते हैं उन्हें समझाने के बजाए। उनका मानना है कि शिक्षक हमेशा गलत होता है।
अब शिक्षकों की हालत ऐसी है कि वह बोलें तो भी गलत है न बोलें तो कहा जाता है कि अच्छी मोरल वैल्यू नहीं दे पा रहें है एक अच्छे समाज का निर्माण नहीं कर पा रहे हैं समय के साथ बच्चों में मोरल वैल्यू कम होने लगी है। अब लगता है कि पहले की गुरुकुल व्यवस्था ही बेहतर थी। ऊपर से आज कर मोरल वैल्यूस पूरी तरह से देने तक का काम शिक्षकों पर छोड़ दिया गया है माता-पिता इस पर बिल्कुल ध्यान नहीं देना चाहते हैं और शिक्षकों को इसके लिए कसूरवार ठहराते हैं।
प्रश्न - रिजल्ट में थोड़ा ऊपर नीचे होने पर शिक्षा विभाग, प्रिंसिपल और माता-पिता की तरफ से आने वाला प्रेशर का क्या असर पड़ता है?
उत्तर - देखिए रिजल्ट सही रखने की कोशिश हर शिक्षक की होती है, वे कभी नहीं चाहते हैं कि उनके छात्र फेल हो या उनके अंक कम आए। एक बच्चे के फेल होने पर जितना दुख उसे नहीं होता है उससे ज्यादा शिक्षक को होता है। ऐसे में शिक्षा विभाग, प्रिंसिपल और माता-पिता के प्रति जवाबदेही से अधिक दिक्कत शिक्षकों को तब होती है जब उन्हें सीधे तौर पर ये कहा जाता है की कमी आपके पढ़ाने में है।
हम कैसे समझाएं की 50 बच्चों की क्लास में हम किसी एक ही बच्चे पर ध्यान नहीं दे सकते हैं। जब 49 बच्चे पास हो रहे हैं एक बच्चे के लिए ये कहना की हम गलत है कैसी सही बात है। हम अपना काम पूरी लगन से करते हैं। हमारे लिए हर बच्चा एक समान है, हम उन्हें हमेशा अपने से आगे बढ़ते हुए देखना चाहते हैं लेकिन अगर वो नहीं पढ़ रहा है तो ऐसे में हम उसे कैसे समझाएं।
शिक्षक का पूरा कार्य मानसिक होता है। जब स्थिति इस प्रकार की उत्पन्न होती है तो स्ट्रैस बढ़ता है, यही कारण है की आज की डेट में सबसे ज्यादा बीपी और स्ट्रैस के मरीज शिक्षक ही हैं।
प्रश्न - शिक्षकों के साथ बढ़ती हिंसा पर आपके क्या विचार हैं?
उत्तर - आज कल बच्चे बहुत बगावती स्वभाव (Rebellious Nature) के होते जा रहे हैं। अब बच्चों को कुछ समझाने की कोशिश करो या थोड़ी सीरिस होकर कुछ कहो तो वह सीधा हिंसा पर उतरने लगे हैं और धमकी देने लगते हैं। इस तरह के कई मामले सामने भी आएं है कि स्कूल से बाहर निकलने के बात बच्चों ने अपने शिक्षक को मारा है। इस तरह का दुर्व्यवहार झेलने को मिलता है और इसके लिए कुछ किया भी नहीं जा रहा है। बच्चे अपने अधिकारों को फायदा उठा रहे हैं और इसका नुकसान उन्हें पढ़ाने वाला शिक्षक भी उठा रहा है।
प्रश्न - हिंसा और मानसिक तनाव को देखते हुए क्या शिक्षक बनने के अपने फैसले पर कभी खेद हुआ है?
उत्तर - सही बताऊं तो हां हुआ है कई बार हुआ है। मुझे बच्चों को पढ़ाना बहुत पसंद है। मुझे लगता है कि सभी नौकरियों में ये एक ऐसी नौकरी है, जिसमें शिक्षक अपने छात्रों को निस्वार्थ भावना से अपना पूरा ज्ञान देने को तैयार रहता है, ताकि बच्चा आगे बड़े और अपना नाम बनाएं।
एक समय था जब हम अपने शिक्षकों का कहना नहीं टाल पाते थे। अपने शिक्षकों को देख मैंने शिक्षक बनने का फैसला लिया था, लेकिन उस समय न शिक्षकों के प्रति हिंसा हुआ करती थी न ही दूरव्यवहार। लेकिन अब हिंसा और दुर्व्यवहार के साथ-साथ मानसिक तनाव को देखते हुए कई बार हम सोचने पे मजबूर हो जाते हैं। वो दिन ज्यादा दूर नहीं है कि इस स्थिति को देख अब आने वाली पीढ़ी शिक्षण क्षेत्र में करियर नहीं बनाएंगी और देश शिक्षक विहीन हो जायेगा।
प्रश्न - अक्सर ये कहा जाता है कि टीचिंग प्रोफेशन तो केवल 6 घंटे का होता है उसके बाद आपके पास बहुत समय होता है?
उत्तर - ये मिथक है। टीचर्स का काम 6 घंटे से अधिक का होता है। बस फर्क ये है वो काम लोगों को दिखता नहीं है। हमारे परिवार वाले बहुत अच्छे से जानते हैं कि हमारा काम 24 घंटे का होता है। 6 घंटे की स्कूल की नौकरी के बाद घर पर आकर हम बच्चों के लिए प्रश्न पत्र बनाते हैं, नोट्स बनाते हैं, अगले दिन का लेसन प्लान तैयार करते हैं, उनके परीक्षाओं/टेस्ट की कॉपी चेक करते हैं और बीच-बीच में आने वाले दुविधाओं को दूर करते हैं।
जब बच्चे हमें स्कूल के बाद कुछ पूछने के लिए फोन करते हैं तो हम उन्हें नो बॉस कहकर टालते नहीं है या उनका फोन इग्नोर नहीं करते हैं। उनके प्रश्नों के उत्तर देना हमारा कर्तव्य है, जिसे हम पूरी शिद्दत से निभाते हैं। बच्चे परीक्षा के समय कभी भी फोन करते हैं ताकि वह अपने प्रश्नों के उत्तर पा सके ऐसे में हम उन्हें कैसे मना करें तो ये कहना की शिक्षक का काम केवल 6 घंटे का है सही नहीं होगा।
प्रश्न - टीचिंग प्रोफेशन को बेहतर बनाने के लिए क्या बदलाव करने की जरूरत है?
उत्तर - सबसे पहले तो शिक्षकों के भार को कम करें। शिक्षक का काम शिक्षा प्रदान करना है न की दूसरे काम करना। उन्हें सर्वे करने के लिए, डाटा कलेक्ट करने के लिए, जनगणना करने के लिए, मलेरिया से बचाव कैसे करें आदि समझाने के लिए भेजना बंद करें "वो शिक्षक है शोसल सर्विसमैन नहीं" (-शिक्षक रितेश)
- शिक्षकों के लिए नए मानदंड (Norms) लाने की जरूरत है। बच्चों और माता-पिता की बात सुन रहे हैं तो शिक्षक की बात क्यों नहीं, उनके विचारों को भी समझें और उन्हें भी अपना पक्ष रखने का मौका दें।
- शिक्षक के लिए सुरक्षा मानदंड लाने की जरूरत है, ताकि होने वाली हिंसा और दुर्व्यवहार से उन्हें बचाया जा सकें।
प्रश्न - शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षकों सम्मानित किया जाता है और आपको मनाया जाता है, कैसा लगता है आपको?
उत्तर - अच्छा लगता है, जब हमारे काम की कदर होती है। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को ध्यान में रख कर ये दिन मनाया जाता है और शिक्षकों मनाया जाता है और हमारे योगदान को सम्मान मिलता है लेकिन केवल एक दिन ही क्यों? हम केवल शिक्षक दिवस के दिन ही शिक्षक नहीं होते हैं। हर रोज एक शिक्षक होते हैं, बच्चों को पढ़ाते हैं और एक बेहतर कल बनाने की दिशा उन्हें दिखाने का प्रयास करते हैं। तो क्यों हमें 5 सितंबर को इज्जत दी जाती है हर रोज नहीं।
एक शिक्षक के तौर पर हम सिर्फ सम्मान चाहते हैं, जिसके हम हकदार है। हमें रोज चुनौतियों का सामना करना पड़ता है लेकिन हम बिना रुके उनका सामना करते जाते हैं ताकि अपने छात्रों को शिक्षा दे सकें।