सनातन धर्म को लेकर पूरी दुनिया में एक बहस छिड़ी हुई है। तमाम राजनेता आये दिन एक के बाद एक बयान दे रहे हैं। सनातन धर्म को मानने वाले लोगों व धर्म में मान्यताओं को लेकर लोगों के अलग-अलग मत हैं, लेकिन सच तो यह है कि सनातन धर्म में हर चीज के पीछे एक लॉजिक है और विज्ञान है। दरअसल आज हम साइंस की बात ही कर रहे हैं। चाहे नमस्ते, पैर छूना हो या कौवे को पहली रोटी देना हर चीज के पीछे साइंस है। समय को बिना व्यर्थ करते हुए हम आगे बढ़ते हैं और शुरू करते हैं अभिवादन से।
1. अभिवादन स्वरूप नमस्कार क्यों करते हैं?
आम धारणा: नमस्ते शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है। "नमः" का अर्थ है "झुकना", "अस" का अर्थ है "मैं" और "ते" का अर्थ है "आप"। इसका अनुवाद "मैं आपको नमन करता हूं" है। नमस्ते भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित अभिवादन का एक सामान्य रूप है। यह अभिवादन करने और विदा लेने से पहले उपयोग की जाने वाले एक भारतीय शैली है। हम इस भाव को कई भारतीय शास्त्रीय नृत्यों, रोजमर्रा के धार्मिक अनुष्ठानों और योग मुद्राओं में भी देख सकते हैं।
वैज्ञानिक कारण: जब आप अपनी दोनों हथेलियों को आपस में जोड़ते हैं तो उस समय सभी अंगुलियों के सिरे एक साथ जुड़ जाते हैं। इससे कान, आंख और दिमाग के बिंदुओं पर दबाव बनता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन्हें एक साथ दबाने से दबाव बिंदु सक्रिय हो जाते हैं, जिससे हमें उस व्यक्ति को लंबे समय तक याद रखने में मदद मिलती है। अन्य वैज्ञानिक कारण के अनुसार, इससे लोगों को हाथ न मिलाने और नमस्कार करने के क्रम में कीटाणु नहीं फैलते।
2. माथे पर चंदन का तिलक या कुमकुम क्यों लगाते हैं?
आम धारणा: पौराणिक कथाओं के अनुसार, कोई भी धार्मिक अनुष्ठान या त्योहार चंदन के तिलक के बिना अधूरा माना जाता है। धार्मिक कार्यों और अनुष्ठानों में तिलक लगाना शुभ माना जाता है।
वैज्ञानिक कारण: वैज्ञानिक कारण की मानें तो माथे पर दोनों भौहों के बीच एक छोटा सा स्थान होता है, जिसे सुषुम्ना,इड़ा और पिंगला नाड़ियों से जुड़ा ज्ञानचक्षु का केंद्र माना जाता है। यह स्थान हमारे शरीर का एक प्रमुख तंत्रिका बिंदु होता है। लाल टीका या चंदन के तिलक को ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। चंदन की खुशबू से मन और मस्तिष्क शांत हो जाता है। इस प्रमुख तंत्रिका बिंदु में चंदन का तिलक लगाने से व्यक्ति में एकाग्रता के विभिन्न स्तर नियंत्रित रहते हैं।
ऐसे कहा जाता है कि माथे पर दोनों भौहों के बीच कुमकुम लगाने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। जब हम माथे के बीचोंबीच कुमकुम लगाते हैं, तो हम स्वचालित रूप से आज्ञा-चक्र को दबाते हैं। यह हमारे चेहरे की मांसपेशियों को रक्त की आपूर्ति को सक्रिय करता है।
इसके विपरीत, हजारों साल पुरानी भारतीय उपचार प्रणाली, आयुर्वेद, चंदन को परम शामक के रूप में वर्णित करती है। चिंता, अनिद्रा या तंत्रिका तंत्र में दर्द की समस्या हो रही है,तो चंदन का तिलक माथे पर लगाने से इन समस्याओं से राहत मिलती है। चंदन का तिलक सिर्फ एक धार्मिक प्रतीक से कहीं अधिक है। यह थकान, तनाव, दर्द का इलाज है।
3. पहली रोटी कौवे के लिए क्यों निकाली जाती है?
आम धारणा: पौराणिक कथाओं के अनुसार, कौवे को पितरों का रूप माना जाता है और कहते हैं कि पहली रोटी कौवे को खिलाने से पितृ प्रसन्न होते हैं।
वैज्ञानिक कारण: तवा लोहे का बना होता है, धुलने के बाद जब सूखने के लिए रखते हैं, तो उस पर फेरस ऑक्साइड (ferrous oxide) की परत जम जाती है। आप कितना भी तवे को पोछ लें, उसके कण रह जाते हैं। पहली रोटी डालते ही वो ऑक्साइड के कण उस पर चिपक जाते हैं। शरीर में जाने पर इससे डायबिटीज़, लिवर संबंधी बीमारी, पेट में जलन होती है। इसकी अधिकता होने पर कैंसर भी हो सकता है। इस वैज्ञानिक कारण से पहली रोटी कौवे के लिए निकाल देनी चाहिये।
4. एक कान में कुंडल क्यों पहनते हैं?
आम धारणा: आपने अक्सर देखा होगा देश के कई विभिन्न प्रांतों में छोटे बच्चों को एक कान में कुंडल पहनाने का रिवाज है। गरुड़ पुराण की मानें तो सनातन धर्म में जन्म से लेकर मृत्यू तक, सोलह संस्कारों में से कुंडल पहनना भी एक महत्वपूर्ण संस्कार है। यह स्री और पुरुष दोनों के लिए लागू है। हालांकि इसे आस्था के साथ भी जोड़ा जाता है, लेकिन इसके पीछे भी वैज्ञानिक कारण छीपे हुये हैं।
वैज्ञानिक कारण: शोधकर्ताओं का मानना है कि कान में कुंडल पहनने से हमारी बुद्धि, सोचने की शक्ति और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। हालांकि मानना यह भी है कि यदि कान के कुंडल हटा लिया जाये तो व्यक्ति की सोचने की क्षमता में काफी परिवर्तन आता है। कान में कुछ ऐसे बिंदु होते हैं, जिससे हमारी बौद्धिक क्षमता मजबूत होती है।
ऐसा माना जाता है कि हम जितना अधिक बात करते हैं, हमारी ऊर्जा उतनी ही अधिक नष्ट होती है। कान में कुंडल पहनने से हमारी वाणी पर लगाम लग सकती है। यह हमारे उद्दंड व्यवहार को भी रोकता है। कानों में छेद करने से व्यक्ति के आत्मविश्वास भी बढ़ोत्तरी होती है। यह अभ्यास कान-नाड़ियों को विकारों से भी मुक्त करता है। वैज्ञानिक कारणों से ही आज यह परंपरा दुनिया भर में हर जगह लोगों द्वारा अपनाई जा रही है।
5. सुबह उठकर सूर्य को अर्घ्य क्यों देते हैं?
आम धारणा: सनातन धर्म में पूजा के महत्व का वर्णन है। शास्त्रों में सुबह उठकर सूर्य देवता को अर्घ्य देने के महत्व के बारे में भी बताया गया है। कहते हैं कि नियमित रूप से सुबह उठकर सूर्य देव को जल चढ़ाने या अर्घ्य देने से समाज में सम्मान बना रहता है और सूर्य देव की कृपा बनी रहती है।
वैज्ञानिक कारण: सूर्य से निकलने वाली किरणें सेहत के लिए लाभकारी होती है। अर्घ्य देते वक्त ये किरणें हमारी आंखों और शरीर के विभिन्न हिस्सों पर पड़ती है। सूर्य देव को जल चढ़ाते समय पानी की धारा से होकर सूर्य की किरणें हमारे शरीर पर पड़ती है। कई वैज्ञानिक सिद्धांतों की मानें तो इससे आंखों का रंग नेचुरल बना रहता है।
इतना ही नहीं सुबह-सुबह सूर्य की रोशनी से विटामिन डी की भरपूर मात्रा भी मिलती है। इसीलिए सुबह की पहली किरण सेहत के लिए अच्छी मानी जाती है। सूर्य को जल चढ़ाने से दिल की भी सेहत अच्छी रहती है। इसे ऐसे समझें, जब आप सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो उस समय आपका सीना सूर्य की तरफ होता है, जिसकी रोशनी सीधे हृदय पर पड़ती है, यह गंभीर बीमारियों से बचाने में मदद करती है।
6. पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा क्यों की जाती है?
आम धारणा: हिन्दू धर्म में पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा करने का विशेष रिवाज है। कहते हैं इससे मनचाहा फल मिलता है। इतना ही नहीं इससे घर परिवार में शांति बनी रहती है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
वैज्ञानिक कारण: कई शोधकर्ताओं का मानना है कि पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपने पूरे आकार में होने के कारण उस दौरान चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना अत्यंत लाभकारी होता है।
7. पैर की अंगुली में अंगूठी क्यों पहनते हैं?
आम धारणा: प्राचीन भारत में, महिलाओं के लिए उनकी वैवाहिक स्थिति के प्रतीक के रूप में पैर की उंगलियों में अंगूठी पहनना आम बात थी। पैर की उंगलियों में अंगूठी या बिछिया पहनने की प्रथा महिलाओं के लिए यह दिखाने का एक तरीका था कि वे न केवल शादीशुदा हैं, बल्कि यह भी कि उनके समुदाय में उनका सम्मान और आदर किया जाता है। इसे कई नामों से भी जाना जाता है, जिनमें हिंदी में बिछिया, तमिल में मेट्टी, तेलुगु में मेट्टेलु, कन्नड़ में कल-उंगुरा और अन्य शामिल हैं।
वैज्ञानिक कारण: विवाहित भारतीय महिलाएं अपने पैर की दूसरी उंगली में चांदी की बिछिया पहनती हैं। पैर की दूसरी उंगली से एक तंत्रिका गर्भाशय के माध्यम से हृदय से जुड़ी होती है। बिछिया पहनने से गर्भाशय का स्वस्थ रहता है। यह रक्त प्रवाह को भी नियंत्रित करता है और महिलाओं के शरीर में मासिक धर्म चक्र को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करता है। चांदी में पृथ्वी की ध्रुवीय ऊर्जा को अवशोषित करने और हमारे शरीर तक संचारित करने की क्षमता होती है। यह ऊर्जा हमारे शरीर में प्रवाहित होते हुए हमारे संपूर्ण तंत्र को नवीनीकृत करने में मदद करती है।
8. शादीशुदा महिलाएं सिन्दूर क्यों लगाती हैं?
आम धारणा: शादीशुदा महिलाओं के लिए सिन्दूर उनके जीवन में शादीशुदा होने का और पति की उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है। विवाहित महिलाओं द्वारा सिन्दूर लगाने की परंपरा को पौराणिक कथाओं की मदद से समझा जा सकता है। विद्वानों का कहना है कि लाल रंग शक्ति का रंग है, जबकि सिन्दूर पार्वती और सती की नारी शक्ति का प्रतीक है।
वैज्ञानिक कारण: शादीशुदा महिलाओं द्वारा सिन्दूर लगाने के पीछे एक वैज्ञानिक कारण है। सिन्दूर हल्दी-चूने और धातु पारे से बना होता है। पारा न केवल रक्तचाप को नियंत्रित करता है बल्कि शारीरिक संतुलत को बनाए रखता है। वैज्ञानिक कारणों की मानें तो सिन्दूर को पिट्यूटरी ग्रंथि तक लगाया जाता है, जो महिलाओं के शरीर में हार्मोन का उत्पादन करती है, जो उनके शारीरिक विकास को प्रभावित करती है। यह भी माना जाता है कि इससे तनाव को दूर रहता है।
9. हम पीपल के पेड़ की पूजा क्यों करते हैं?
आम धारणा: सनातन धर्म में पीपल के पेड़ को देवताओं का वृक्ष कहा गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस पेड़ के हर पत्ते पर देवताओं का वास होता है। खासतौर पर शनिवार के दिन पीपल के पेड़ पर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु का वास होता है। इसलिए सौभाग्य और सुख की प्राप्ति के लिए पीपल के पेड़ की पूजा अवश्य करनी चाहिय़े।
वैज्ञानिक कारण: पीपल के पेड़ की पूजा करने को लेकर वैज्ञानिक कारणों की बात करें तो आम तौर पर, पेड़ दिन के दौरान ऑक्सीजन पैदा करते हैं और रात के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं। लेकिन हममें से बहुत कम लोग ये जानते हैं कि पीपल का पेड़ दिन और रात दोनों ही प्रहरों में ऑक्सीजन पैदा करता है और इसलिए हमारे पूर्वजों ने पीपल के पेड़ की पूजा करना शुरू कर दिया।
10. हम अपने बड़ों के पैर क्यों छूते हैं?
आम धारणा: बड़ों के पैर छूने की प्रथा भारत में वैदिक काल के दौरान अपनाई गई थी और इसे चरण स्पर्श कहा जाता है। चरण का अर्थ है 'पैर' और स्पर्श का अर्थ है 'स्पर्श'। हिंदू परंपरा के अनुसार, जब आप किसी बड़े व्यक्ति के पैर छूते हैं, तो आपको ज्ञान, बुद्धि, शक्ति और प्रसिद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
वैज्ञानिक कारण: इससे इतर वैज्ञानिक अवधारणा के अनुसार, पैर छूने से ब्रह्मांडीय ऊर्जा हमारे शरीर में एक छोर से दूसरे छोर तक प्रवाहित होती है। यह दो दिमागों और दिलों के बीच जुड़ा हुआ है। यह वह ऊर्जा है जो हाथ मिलाने और गले मिलने से स्थानांतरित होती है; इसके अलावा, ब्रह्मांडीय ऊर्जा हमारी उंगलियों पर एकत्रित होती है और इसलिए, जब हम अपने बुजुर्गों के पैर छूते हैं, तो यह पैर छूने वाले को स्थानांतरित हो जाती है।
11. भारतीय महिलाएं चूड़ियाँ क्यों पहनती हैं?
आम धारणा: पारंपरिक भारतीय समाज में लड़कियों या महिलाओं को चूड़ियाँ पहनने की अनुमति है, विवाहित महिलाओं से आमतौर पर चूड़ियाँ पहनने की अपेक्षा की जाती है। शादी के बाद चूड़ियाँ पहनना एक परंपरा है, जो स्वास्थ्य, भाग्य और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है।
वैज्ञानिक कारण: कलाई मानव शरीर का सबसे ऊर्जावान हिस्सा है, इसलिए ये बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न करती हैं। घर के कई कामों के दौरान कलाइयां चूड़ियों के संपर्क में आती हैं और घर्षण पैदा करती हैं, जिससे रक्त संचार बढ़ता है। इसके अलावा, आकार में गोल होने के कारण चूड़ियां, बाहरी त्वचा से गुजरने वाली ऊर्जा को फिर से व्यक्ति के शरीर में वापस भेज देती है।
12. हम हल्दी क्यों लगाते हैं?
आम धारणा: वेदों के अनुसार हल्दी, मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करती है। यह समारोह के शुभ शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। यह दिल और आत्मा को शुद्ध करता है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य में हल्दी का उपयोग किया जाता है।
वैज्ञानिक कारण: हर शुभ काम में हल्दी उपयोग किया जाता है। हल्दी एक प्राकृतिक जड़ी बूटी है। यह प्रकृति द्वारा प्रदत्त सर्वोत्तम एंटी-सेप्टिक है। इसे शरीर पर लगाने से त्वचा पर मौजूद सभी कीटाणु मर जाते हैं। इसके अलावा हल्दी त्वचा से सारी गंदगी सोख लेती है और त्वचा को चमक प्रदान करती है।
त्वचा को नमी देने के लिए लोग हल्दी में तेल भी मिलाते हैं और उसका उपयोग करते हैं। यह शरीर को शुद्ध करने में मदद करती है। यह एक शक्तिशाली एक्सफ़ोलीएटिंग एजेंट के तौर पर प्रसिद्ध है। जब हल्दी की रस्म के बाद पेस्ट को धोया जाता है, तो यह मृत त्वचा कोशिकाओं को हटाने में मदद करता है और त्वचा को डिटॉक्सीफाई करता है।
13. सूर्य नमस्कार क्यों करते हैं?
आम धारणा: सूर्य को ऊर्जा के देवता के रूप में पूजा जाता है। हिंदू सूर्य को जल चढ़ाकर प्रार्थना करते हैं। इस अभ्यास के दौरान हम पानी के माध्यम से सूर्य की किरणों को देखते हैं।
वैज्ञानिक कारण: विज्ञान कहता है कि यह अभ्यास आंखों के लिए अच्छा है क्योंकि इससे दृष्टि में सुधार होता है। इसके अलावा, हम सुबह जल्दी उठते हैं और सुबह की सभी रस्में सुबह ही पूरी कर लेते हैं। सूर्य की रोशनी का भरपूर उपयोग करना भी इस परंपरा के पीछे का कारण है। इससे शारीरिक और मानसिक शक्ति, अपने शरीर पर बेहतर नियंत्रण, मन की शांति, संतुलित ऊर्जा और आंतरिक शांति जैसे कई लाभों का अनुभव करें।
यह तो महज़ उदाहरण मात्र हैं। ऐसे तमाम वैज्ञानिक कारण हैं जिनकी वजह से सनातन धर्म के अनुयायी अपने दैनिक घरेलू दिनचर्या में ऐसे कई धार्मिक संस्कार क्रियाओं और परंपराओं का पालन करते हैं।
और तो और भारतीय संस्कृति यानी हमारी सनातन संस्कृति, ऐतिहासिक होने के साथ ही साथ तार्किक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक संस्कृति के रूप में संदर्भित की जाती है। हालांकि इन प्रथाओं की जड़ें प्राचीन वैदिक ग्रंथों में मिलती हैं और समय के साथ ये ब्राह्मण ग्रंथों के प्रभाव से विकसित भी हुई हैं। कई बौद्धिक समुदाय ने इन सदियों पुराने हिंदू रीति-रिवाजों और मान्यताओं के पीछे वैज्ञानिक स्पष्टीकरण की खोज की है।
सनातन धर्म में संस्कार प्राचीन काल से चले आ रहे हैं। इन्हें वेदों और शास्त्रों में उद्धृत किया गया है। इनके और बाद के ग्रंथों, जैसे पुराणों और धर्म शास्त्रों, के द्रष्टाओं ने मनुष्य की सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए, अपने भौतिक वातावरण के साथ सद्भाव में रहने में मदद करने के लिए, अपने दिवंगत पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए, देवताओं को प्रसन्न करने के लिए रिवाजों को बनाया था।
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