Republic Day 2023: संविधान की प्रस्तावना जो होनी चाहिए हर भारतीय को याद

भारतीय संविधान की प्रस्तावना: हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को:

भारत के संविधान की प्रस्तावना के पीछे के आदर्शों को जवाहरलाल नेहरू के उद्देश्य संकल्प द्वारा निर्धारित किया गया था, जिसे 22 जनवरी, 1947 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था। बता दें कि भारतीय संविधान प्रस्तावना इसके निर्माताओं की मंशा, इसके निर्माण के पीछे के इतिहास और राष्ट्र के मूल मूल्यों और सिद्धांतों को प्रस्तुत करती है।

दरअसल, भारत के संविधान की प्रस्तावना एक संक्षिप्त परिचयात्मक कथन है जो संविधान के मार्गदर्शक उद्देश्य, सिद्धांतों और दर्शन को निर्धारित करता है। प्रस्तावना निम्नलिखित के बारे में एक विचार देती है: (1) संविधान का स्रोत, (2) भारतीय राज्य की प्रकृति (3) इसके उद्देश्यों का एक बयान और (4) इसके अपनाने की तिथि।

Republic Day 2023: संविधान की प्रस्तावना जो होनी चाहिए हर भारतीय को याद

भारतीय संविधान की प्रस्तावना से जुड़ी मुख्य बातें एक नजर में...

  • न्यायमूर्ति हिदायतुल्ला ने प्रस्तावना को भारतीय संविधान की आत्मा कहा है।
  • भीमराव अंबेडकर ने अनुच्छेद 32 (संवैधानिक उपचारों का अधिकार) को भारतीय संविधान की आत्मा कहा है।
  • के.एम. मुशी ने प्रस्तावना को 'भारत के संपूर्ण, प्रभुत्व संपन्न व लोकतंत्रात्मक गणराज्य की' जन्म कुंडली कहा है।
  • सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर संविधान के 42वें संशोधन 1976 को प्रस्तवाना को पहली बार संशोधन कर प्रशम पैराग्राफ में समाजवादी, पंथनिरपेक्ष शब्द तथा छठे पैराग्राफ में अखंडता शब्द जोड़ा गया।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में अभी तक कुल 1 बार 1976 में संविधान के 42वें संशोधन के तहत बदलाव किया गया है।
  • 1973 में सर्वोच्च न्यायालय के केशवानंद भारती बनाम केरल राज्यवाद के अनुसार प्रस्तावना भारतीय संविधान का भाग है तथा सांसद इसमें परिवर्तन कर सकती है।
  • प्रस्तावना को न्यायालय में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना

हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को:

सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,

प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्रदान करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए

दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 को एतद् द्वारा संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना के प्रमुख शब्दों का अर्थ

  • हम भारत के लोग- प्रस्तावना की शुरुआत हम भारत के लोग शब्द से हुई है जिसका अर्थ है कि संविधान का मूल स्रोत भारत की जनता है तथा समस्त शक्तियां एक इकाई के रूप में भारतीयों में निहित है।
  • संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न- इसका तात्पर्य यह कि भारत अपने आंतरिक एंह बाह्य मामलों में किसी विदेशी सत्ता या शक्ति के अधीन नहीं है। वह अपने आतंरिक एंव बाह्य विदेश नीति निर्धारित करने के लिए तथा किसी भी राष्ट्र के साथ मित्रता एंव संधि करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र है। इसकी प्रभुता जनता में निहित है।
  • समाजवादी- समाजवादी शब्द भारतीय संविधान के 42वें संशोधन द्वारा 1976 में शामिल किया गया। इसका अर्थ है ' अमीर और गरीब' के मध्य अंतर को समाप्त किया जाएगा तथा शोषण के विरुद्ध कदम उठाया जाएगा।
  • पंथनिरपेक्ष- यह शब्द संविधान के 42वें संशोधन द्वारा 1976 में जोड़ा गया। जिसका अर्थ है राज्य, धर्म के नाम पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।
  • लोकतंत्रात्मक- इस शब्द का अर्थ है जनता का शासन। भारत में जनता अपने द्वार निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन चलाती है जिसे अप्रत्यक्ष लोकतांत्रिक प्रणाली या प्रतिनिधि प्रणाली भी कहा जाता है।
  • गणराज्य- भारत एक गणराज्य है जिसका अर्थ है भारत का राष्ट्रपति निर्वाचित होगा न कि वंशानुगत।
  • एकता और अखंडता- भारतीय नागरिकों के मध्य एकता होनी चाहिए और अखंडता शब्द संविधान के 42वें संशोधन द्वारा 1976 में शामिल किया गया जो भू-भाग से संबंधित है।
  • अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मसमर्पित- संविधान भारतीय द्वारा स्वच्छता से स्वीकार किया गया है तथा यह भारतीयों को ही समर्पित है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना से जुड़ी मुख्य बातें विस्तारपूर्वक...

पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत किए गए 'उद्देश्य प्रस्ताव'को आगे चलकर भारतीय संविधान की प्रस्तावना के रूप में स्वीकार किया गया था। शुरुआत में इस बात को लेकर विवाद था कि प्रस्तावना भारतीय संविधान का अंग है अथवा नहीं और भारतीय संसद इसमें संशोधन कर सकती है अथवा नहीं? लेकिन समय के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया की प्रस्तावना भारतीय संविधान का अंग है और संसद इसमें संशोधन करने के लिए पूर्णतः अधिकृत है। अब तक संसद ने संविधान की प्रस्तावना में एक बार संशोधन किया है।

दरअसल प्रस्तावना को उद्देशिका के नाम से भी जाना जाता है। इसका आशय है कि प्रस्तावना में उन उद्देश्यों का उल्लेख किया गया है, जो हम संविधान के क्रियान्वयन के माध्यम से प्राप्त करना चाहते हैं। इसमें उल्लिखित है कि भारत एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, गणराज्य होगा। इसके नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय मिलेंगे तथा उन्हें विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्राप्त होगी तथा उन सबके लिए प्रतिष्ठा और अवसर की समता सुनिश्चित की जाएगी। भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारतीय संविधान के उद्देश्यों को परिलक्षित करती है।

इसके अलावा, भारतीय संविधान में राज्य के नीति निदेशक तत्वों के रूप में कुछ निर्देशक सिद्धांतों का भी उल्लेख किया गया है, जो राज्य को नीति निर्माण में सहायता प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त, 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से पंचायतों और नगरपालिकाओं को भी संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया, इसका मूल उद्देश्य सत्ता का विकेंद्रीकरण सुनिश्चित करना और गांधीवादी दर्शन को मूर्त रूप प्रदान करना है।

संविधान में ही केंद्र और राज्य के बीच शक्तियों का पृथक्करण भी किया गया है और यदि इन दोनों निकायों में किसी भी तरह का विवाद होता है तो इसके लिए विवाद समाधान की जिम्मेदारी सर्वोच्च न्यायालय को सौंपी गई है। साथ ही, सर्वोच्च न्यायालय को एक स्वतंत्र निकाय के रूप में स्थापित किया गया है, ताकि वह तटस्थ रहकर देश के संघात्मक ढांचे में उभरने वाले किसी भी विवाद को पूर्ण क्षमता के साथ सुलझा सके।

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English summary
Preamble to the Constitution of India: WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC and to secure to all its citizens: JUSTICE, social, economic and political; LIBERTY of thought, expression, belief, faith and worship; EQUALITY of status and of opportunity; and to promote among them all FRATERNITY assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the Nation; IN OUR CONSTITUENT ASSEMBLY this twenty-sixth day of November, 1949, do HEREBY ADOPT, ENACT AND GIVE TO OURSELVES THIS CONSTITUTION
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