पोंगल हिंदु धर्म का एक फसल उत्सव है जो तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश के साथ-साथ श्रीलंका में भी मनाया जाता है। भारत में इस दिवस को मकर संक्राती के दिन से मनाया जाता है। पोंगल चार दिवसीय उत्सव है। मकर संक्राती की तरह ही पोंगल उत्सव भी सूर्य देवता को समर्पित होता है। इस दिवस पर लडकियां बारिश और अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करती है। मुख्य तौर पर इस उत्सव में चावल के व्यंजन बनाए जाते है। पोंगल सर्दियों के मौसम के अंत में के प्रतीक हैं। भारत में मकर संक्राती, बिहु, लोहड़ी त्योहार ही फसल उत्सव है और पोंगल के साथ ये सारे दिवस एक ही दिन मनाए जाते हैं। बस फर्क इतना है कि ये त्योहार एक दिवसीय हैं और पोंगल चार दिन तक चलने वाला उत्सव है। 2023 में इस दिवस को 15 से 18 जनवरी तक मनाया जाएगा।
पोंगल का इतिहास
इतिहास के पन्नों को खंगालने पर पता लगता है कि पोंगल एक प्रचीन त्योहार है जो संगम काल से चोल वंस के बीच कभी अस्तित्व में आया था। इस उत्सव को द्रविड़ युग के दौरान मनाया जाता था। इतिहासकारों की माने तो संगम युग में आज के पोंगल को थाई निरादल के रूप में मनाया जाता था और ये उत्सव करीब 2000 साल पुराना है। इसके साथ आपको बता दें कि इस उत्सव का जिक्र पुराणों में भी किया गया है। आइए आपको पोंगल की सबसे प्रसिद्ध पौराणिक कथा के बारे में बताएं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस उत्सव में दौरान अविवाहित कन्याएं उपवास किया करती थी और अच्छी फसल और बारिश के लिए प्रथाना किया करती थी, ताकि धन और समृद्धि की प्राप्ती हो। इसके साथ आपको बता दें कि इन्हीं पौराणिक कथाओं में भगावन शिव और उनके एक बैल की कहानी भी बताई जाती है, जिसके अनुसार भगवान शिव का बैल जिसका नाम बसवा था, उसे भगवान ने पृथ्वी पर रह रहे मानवों में एक संदेश फैलाने को कहा थी, जिसमें मनुष्यों को प्रतिदिन तेल मालिश करनी चाहिए और पूरे महीने में केवल एक बार ही स्नान और भोजन करना चाहिए। लेकिन बसवा ने मनुष्यों को शिवजी जी के द्वारा कही बात के विपरीत कहा कि प्रतिदिन भोजन करना चाहिए और महीने में एक बार तेल से स्नान करना है। इस पर बसवा को भगवान शिव द्वारा दंडित किया गया और दंड के रूप में उन्हें मनुष्यों की सहायता के लिए पृथ्वी पर ही भेज दिया गया, ताकि वह खेत की जुताई में सहायता करें और प्रतिदिन भोजन करने के लिए फसलों को उगाया जा सके।
पोंगल का महत्व
भारत में कृषि का बहुत महत्व है, और दुनिया में भारत दूसरे स्थान पर सबसे अधिक कृषि करने वाला देश भी है। भारत की करीब 60 से 70 प्रतिशत की आबादी आज भी कृषि पर निर्भर करती है। ऐसे में कृषि से संबंधिक त्योहारों की भी बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। चाहें वह उत्तर भारत का त्योहार मकर संक्राती या बिहु हो या तमिलनाडु का त्योहार पोंगल हो। दोनों की अपनी अलग मान्यता है लेकिन त्योहार फसलो का ही है। पोंगल दक्षिण भारत में बहुत शुभ मना जाता है। इस दिन फसलों की कटाई की जाती है और नई फसल का त्योहार मनाया जाता है। इस एक धन्यवाद त्योहार के रूप में भी देखा जाता है। अच्छी फसल के लिए भगवान से प्रथाना की जाती है और सूर्य भगवान के साछ इंद्र देव को भी धन्यवाद किया जाता है। किसानों के लिए उत्सव का अलग ही महत्व है।
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