नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रभावशाली और प्रेरणादायक नेताओं में से एक थे। उनकी मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताईवान में हुए विमान दुर्घटना के कारण हुई जो कि आज तक रहस्यमयी है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का व्यक्तित्व न केवल उनके साहस और नेतृत्व के गुणों के लिए जाना जाता है, बल्कि उनकी शिक्षा और विद्वत्ता के लिए भी प्रसिद्ध है।
चलिए आज के इस लेख में नेताजी की शिक्षा और उनकी मृत्यु से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा करते हैं।
प्रारंभिक शिक्षा
सुभाष चंद्र बोस की प्रारंभिक शिक्षा उनके गृहनगर कटक में हुई। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के लिए कटक के प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने अपनी बुनियादी शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने रेवेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लिया। वह एक अत्यंत मेधावी छात्र थे और उनकी गहरी रुचि दर्शन, इतिहास और राजनीति में थी।
कॉलेज और उच्च शिक्षा
1913 में, सुभाष चंद्र बोस ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। यहाँ उन्होंने दर्शनशास्त्र में अध्ययन किया। हालांकि, एक विवाद के बाद, उन्हें कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया। बाद में उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की और 1919 में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
उनकी शिक्षा केवल यहीं तक सीमित नहीं रही। सुभाष चंद्र बोस के पिता चाहते थे कि वे भारतीय सिविल सेवा (ICS) में जाएं, जो उस समय ब्रिटिश शासन के अधीन थी। उनके पिता की इच्छानुसार, बोस इंग्लैंड चले गए और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। वहाँ उन्होंने भारतीय सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी की और 1920 में इस परीक्षा को सफलतापूर्वक पास किया।
भारतीय सिविल सेवा से इस्तीफा
सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय सिविल सेवा परीक्षा पास कर ली थी, लेकिन उनके दिल और दिमाग में भारत की स्वतंत्रता का सपना बसा हुआ था। उन्होंने 1921 में भारतीय सिविल सेवा से इस्तीफा दे दिया और भारत वापस लौट आए। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जहां से उन्होंने पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम में खुद को समर्पित कर दिया।
आज़ाद हिंद फौज का गठन
सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि ब्रिटिश शासन को केवल अहिंसात्मक तरीकों से समाप्त करना संभव नहीं है। उन्होंने आज़ाद हिंद फौज (Indian National Army) का गठन किया और 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा' का नारा दिया। उनकी इस क्रांतिकारी सोच ने लाखों भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया।
मृत्यु का रहस्य
नेताजी की मृत्यु भी हमेशा से ही विवादों और रहस्यों से घिरी रही है। 18 अगस्त 1945 को ताइवान के ताइहोकू (अब ताइपेई) में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु की खबर आई थी। हालांकि, उनकी मृत्यु के बारे में स्पष्ट जानकारी कभी सामने नहीं आ पाई। कई लोगों का मानना था कि नेताजी ने दुर्घटना में जान गंवाई, जबकि अन्य लोग इसे नहीं मानते थे और उनका मानना था कि वे जीवित थे और गुप्त रूप से कहीं छिपे हुए थे।
भारत सरकार ने नेताजी की मृत्यु के बारे में सच्चाई जानने के लिए कई जांच आयोग बनाए, लेकिन सटीक जानकारी अभी भी एक रहस्य बनी हुई है। नेताजी के प्रति भारतीय जनता की भावनाएं इतनी गहरी हैं कि आज भी उन्हें भारत की आजादी के सबसे महत्वपूर्ण नायकों में से एक माना जाता है।
अंत में.. सुभाष चंद्र बोस न केवल एक महान नेता थे, बल्कि वे अत्यंत शिक्षित और विद्वान व्यक्ति भी थे। उनकी शिक्षा ने उनके व्यक्तित्व को और निखारा और उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया। नेताजी का जीवन हमें यह सिखाता है कि अगर किसी व्यक्ति के दिल में सच्ची लगन और देशभक्ति हो, तो वह असंभव को भी संभव बना सकता है।