मदर टेरेसा, जिन्हें 'Saint Teresa of Calcutta' के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी शख्सियत थीं जिन्होंने मानवता की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनकी सेवा और करुणा की भावना ने न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में लोगों के दिलों को छू लिया।
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मैसेडोनिया के स्कोप्जे शहर में हुआ था। इसलिए हर साल 26 अगस्त को मदर टेरेसा की जयंती मनाई जाती है। इस अवसर पर, हम उनके जीवन के उस पहलू पर चर्चा करेंगे जो शायद कम ही लोगों को पता हो: उनकी शिक्षा और करियर।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
मदर टेरेसा का असली नाम एग्नेस गोंझा बोजाझियु था। बचपन से ही एग्नेस एक धार्मिक और आध्यात्मिक वातावरण में पली-बढ़ी थीं। उनका परिवार कैथोलिक था और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भी कैथोलिक स्कूल में ही प्राप्त की।
जब एग्नेस 18 साल की हुईं, तो उन्होंने नन बनने का निर्णय लिया। इसके बाद उन्होंने आयरलैंड के लोरेटो एब्बे में प्रवेश लिया, जहां उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी और धार्मिक शिक्षा प्राप्त की। इसी दौरान, उनका नाम बदलकर 'टेरेसा' रख दिया गया।
उच्च शिक्षा और भारत आगमन
मदर टेरेसा ने आयरलैंड के बाद, भारत के दार्जिलिंग में लोरेटो कॉन्वेंट में प्रवेश लिया। यहीं पर उन्होंने नन बनने की औपचारिक शिक्षा पूरी की। दार्जिलिंग के लोरेटो एब्बे में शिक्षा प्राप्त करने के बाद, मदर टेरेसा ने कलकत्ता (अब कोलकाता) में सेंट मैरी हाई स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्य करना शुरू किया।
सेवा का मार्ग
मदर टेरेसा का जीवन का असली मकसद तब सामने आया जब उन्होंने 1946 में ट्रेन यात्रा के दौरान "ईश्वर का बुलावा" सुना। यह वह समय था जब उन्होंने यह महसूस किया कि उन्हें केवल स्कूल में पढ़ाने से अधिक कुछ करना है। उन्हें यह प्रेरणा मिली कि उन्हें गरीबों, बीमारों, और बेसहारा लोगों की सेवा करनी चाहिए।
1948 में, उन्होंने लोरेटो कॉन्वेंट छोड़ दिया और कलकत्ता की सड़कों पर जाकर बीमार और गरीब लोगों की देखभाल शुरू की। मदर टेरेसा ने अपनी मेडिकल ट्रेनिंग पूरी की और फिर 1950 में 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' की स्थापना की, जो आज भी पूरे विश्व में सक्रिय है।
करियर और सम्मान
मदर टेरेसा का जीवन गरीबों और बीमारों की सेवा के लिए समर्पित था। उन्होंने न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में सेवा की। उनके इस सेवा कार्य के लिए उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें भारत सरकार द्वारा 1980 में भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।
मदर टेरेसा ने केवल एक शिक्षक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी, लेकिन उनका असली योगदान मानवता की सेवा में था। उनकी शिक्षा ने उन्हें सेवा के उस उच्चतम स्तर तक पहुंचाया जहां उन्होंने अपने ज्ञान और करुणा का इस्तेमाल गरीब और असहाय लोगों की मदद के लिए किया।
बता दें कि मदर टेरेसा की शिक्षा और करियर ने उन्हें एक साधारण शिक्षिका से विश्व विख्यात मानवतावादी बना दिया। उनकी जयंती हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेने का अवसर देती है, ताकि हम भी उनके जैसे समाज की सेवा में अपना योगदान दे सकें। उनका जीवन इस बात का साक्षी है कि शिक्षा का असली उद्देश्य केवल ज्ञान अर्जित करना नहीं, बल्कि उस ज्ञान का उपयोग मानवता की भलाई के लिए करना है।